गूगल ने भारत में कृषि क्षेत्र को सशक्त बनाने और देश की भाषा और सांस्कृतिक विविधता को ध्यान में रखते हुए नई ओपन-सोर्स एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) तकनीकों की शुरुआत की है. यह कदम न सिर्फ किसानों को बेहतर जानकारी और संसाधन देगा, बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान को भी वैश्विक एआई मॉडल में प्रमुखता से शामिल करेगा.
गूगल द्वारा विकसित Agricultural Monitoring and Event Detection (AMED) API एक ऐसा टूल है जो उपग्रह चित्रों, मशीन लर्निंग और कृषि डेटा के ज़रिए खेतों की निगरानी करता है. यह API यह जानकारी देता है कि भारत के किस खेत में कौन सी फसल उग रही है, खेत का आकार क्या है और उसकी बुआई और कटाई की कब की जानी चाहिए.
यह तकनीक किसानों और कृषि से जुड़ी संस्थाओं को यह जानने में मदद करेगी कि कौन-सी फसल कहां और कब बोई गई थी, साथ ही पिछले तीन सालों का कृषि इतिहास भी दिखाया जाएगा.
AMED API गूगल के पहले के ALU API पर आधारित है, और अब यह और अधिक सटीक जानकारी के साथ तैयार किया गया है. इससे खेती को ज्यादा डेटा-आधारित, कुशल, और जलवायु के अनुसार अनुकूल बनाया जा सकेगा.
इस API के ज़रिए किसान यह जान सकेंगे कि उनकी फसल के लिए कौन-सी मिट्टी और पानी की स्थिति बेहतर है, साथ ही मौसम के हिसाब से फसल की योजना कैसे बनानी है.
गूगल डीपमाइंड ने आईआईटी-खड़गपुर के साथ मिलकर भारत की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता को समझने के लिए स्थानीय डेटा सेट्स तैयार किए हैं. यह काम गूगल की Amplify Initiative के तहत किया गया है, जिससे वैश्विक एआई मॉडल भारत की संस्कृति और भाषाओं को बेहतर तरीके से समझ सकें.
इसका लक्ष्य है कि एआई तकनीक न सिर्फ अंग्रेज़ी में बल्कि भारतीय भाषाओं में भी बेहतर परिणाम दे सके और हर व्यक्ति को इससे फायदा हो.
गूगल डीपमाइंड के वरिष्ठ निदेशक मनीष गुप्ता ने कहा, “हम एआई की शक्ति से भारत के कृषि क्षेत्र और सामाजिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हमने देखा है कि भारत के इनोवेटर्स ने एआई के ज़रिए कैसे अद्भुत समाधान तैयार किए हैं.” गूगल के अनुसार, यह तकनीक किसानों की पैदावार बढ़ाने, जलवायु जोखिम कम करने, और स्मार्ट कृषि समाधान विकसित करने में मदद करेगी.
गूगल की यह नई पहल भारत की कृषि को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में सहायक होगी. आधुनिक एआई तकनीक की मदद से किसान अब समय रहते सही निर्णय ले पाएंगे, जिससे उनकी मेहनत और उपज दोनों का बेहतर लाभ मिल सकेगा. साथ ही, भारत की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक मंच पर पहचान मिलेगी, जो एक सशक्त और समावेशी डिजिटल भविष्य की ओर इशारा करता है.