दिल्‍ली के इंजीनियर का कमाल, पराली और मशरूम से बनाया थर्माकोल से छुटकारा दिलाने वाला प्रोडक्‍ट, पढ़ें डिटेल

दिल्‍ली के इंजीनियर का कमाल, पराली और मशरूम से बनाया थर्माकोल से छुटकारा दिलाने वाला प्रोडक्‍ट, पढ़ें डिटेल

दिल्ली के इंजीनियर अर्पित धूपड़ पराली से माईसीलियम पैकेजिंग बना रहे हैं, जो थर्माकोल का पर्यावरण-हितैषी विकल्प है. उनकी कंपनी हर साल 1200 टन पराली जलने से बचाती है. पढ़ें सफलता की कहानी...

Parali Product Replacing thermocolParali Product Replacing thermocol
क‍िसान तक
  • फरीदाबाद,
  • Nov 21, 2025,
  • Updated Nov 21, 2025, 12:44 PM IST

दिल्ली के मैकेनिकल इंजीनियर अर्पित धूपड़ ने पराली जलाने की समस्या का ऐसा हल खोजा है, जो न सिर्फ पर्यावरण को बचा रहा है, बल्कि पैकेजिंग इंडस्ट्री में थर्माकोल का टिकाऊ विकल्प भी बन रहा है. साल 2020 में अर्पित ने ‘धराक्षा’ नाम की कंपनी शुरू की, जिसे उन्‍होंने दो शब्‍दों धरा और रक्षा को जोड़कर (धरती की रक्षा) के अर्थ में बताया है. धराक्षा में पराली और मशरूम के मेल से ऐसा प्रोडक्ट तैयार होता है, जिसे माईसीलियम कहा जाता है. यह दिखने और इस्‍तेमाल में थर्माकोल जैसा है, लेकिन पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल है और पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता.

लैब में तैयार किए जाते हैं खास तरह के मशरूम

अर्पित बताते हैं कि शुरुआत में उन्होंने सीधे पराली से मशरूम उगाने की कोशिश की, लेकिन यह तरीका न तो ज्यादा सफल रहा और न ही व्यवहारिक. इसके बाद उन्होंने पराली और मशरूम के मिश्रण पर गहराई से रिसर्च की. इसी शोध ने उन्हें माईसीलियम आधारित पैकेजिंग बनाने का रास्ता दिखाया. आज उनकी लैब में खास तरह के मशरूम के बीज तैयार किए जाते हैं जिन्हें पराली में मिलाकर मोल्ड्स में सेट किया जाता है. कुछ दिनों में यह मिश्रण थर्माकोल जैसे मजबूत और हल्के प्रोडक्ट का रूप ले लेता है.

हर साल 1200 टन पराली का इस्‍तेमाल

अर्पित ने बताया कि धराक्षा हर महीने करीब 100 टन पराली को जलने से बचाती है. यानी सालभर में 1200 टन पराली का सुरक्षित उपयोग हो जाता है. इससे लगभग 3100 करोड़ लीटर हवा को प्रदूषित होने से बचाया जा रहा है. यह पैकेजिंग न सिर्फ पर्यावरण हितैषी है, बल्कि कार्पोरेट कंपनियों के लिए भी किफायती साबित हो रही है.

अर्पित बताते हैं कि अगर किसी ग्लास प्रोडक्ट की कीमत 4000 रुपये है और वह थर्माकोल की पैकेजिंग के बावजूद टूट जाए तो उसके ट्रांसपोर्टेशन और नुकसान मिलाकर कंपनी को 8 से 10 हजार रुपये तक का घाटा होता है. लेकिन माईसीलियम पैकेजिंग में ग्लास सुरक्षित रहता है, जिससे कंपनियां बड़े नुकसान से बच जाती हैं.

आग नहीं पकड़ता माईसीलियम

उनका प्रोडक्ट आग नहीं पकड़ता और इसमें नमी भी नहीं आती. यही वजह है कि मार्केट में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है. साथ ही, इसमें पर्यावरण संरक्षण का एक और अनोखा तत्व जोड़ा गया है. जहां भी माईसीलियम पैकेजिंग की जाती है, उसमें एक पौधे का बीज रख दिया जाता है. ग्राहक चाहे तो इस पैकेजिंग को गमले में डालकर पौधा उगा सकता है. अगर यह लैंडफिल में भी चला जाए तो पूरी तरह गलकर खाद में बदल जाता है.

अर्पित शार्क टैंक इंडिया में भी गए थे, लेकिन फंडिंग के लिए नहीं. उन्होंने वहां मौजूद एक्सपर्ट्स से 100 घंटे की सलाह मांगी, जो उन्हें मिली भी. अब अर्पित तेजी से अपने प्लांट्स का विस्तार कर रहे हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा पराली का उपयोग उत्पादन में किया जा सके. उनका सपना है कि एक दिन ऐसा आए जब देश में पराली का ज्‍यादातर हिस्सा ऐसे ही प्रोडक्ट बनाने में खर्च हो और हवा पूरी तरह जहरीली धुएं से मुक्त हो सके. (मनीष चौरसिया की रिपोर्ट)

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