मोहम्मद अब्दुल सलाम, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के इकलौते मुस्लिम उम्मीदवार हैं, जो आने वाले लोकसभा चुनावों में अपनी किस्मत आजमाएंगे. वह केरल की कालीकट यूनिवर्सिटी के चांसलर रह चुके हैं और मुस्लिम बहुल मलप्पुरम सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. दो मार्च को पार्टी की तरफ से घोषित उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में उनका नाम था. इसके बाद से लगातार कई इंटरव्यू में अब्दुल सलाम कहते आ रहे हैं कि मुसलमानों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की धारणा बदल रही है. ऐसे में समुदाय के पास उससे डरने की कोई वजह नहीं है. सलाम बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं.
सलाम ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा, ' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में मुस्लिम धारणा धीरे-धीरे बदल रही है. क्या प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले एक दशक में किसी मुसलमान को ठेस पहुंचाई है? ऐसे में समुदाय को पीएम मोदी से क्यों डरना चाहिए?' सलाम ने कहा कि उन्होंने कई मुस्लिम माताओं से मुलाकात की है जिन्होंने समुदाय के भीतर तीन तलाक की प्रथा को खत्म करने के लिए पीएम मोदी का समर्थन किया है. 71 साल के सलाम के नाम पर 70 से ज्यादा इंटरनेशनल रिसर्च पेपर पब्लिश करने की उपलब्धि है.
सलाम ने कहा कि अब तक जारी सात उम्मीदवारों की सूची में भाजपा का एकमात्र मुस्लिम चेहरा होने पर वह सम्मानित महसूस कर रहे हैं. सलाम की मानें तो देश के मुस्लिम नेताओं को बीजेपी में शामिल होना चाहिए और भारत को विश्व शक्ति बनाने के पार्टी के मिशन का हिस्सा बनना चाहिए उनका कहना था कि एक शिक्षित मुस्लिम के तौर पर उन्होंने भारत को विश्व शक्ति बनाने के इस मिशन में मोदी के साथ शामिल होना अपना कर्तव्य समझा है. एक औा इंटरव्यू में उनका कहना था कि मुस्लिम नेताओं को उन तत्वों के हाथों की कठपुतली नहीं बनना चाहिए जो भारत के विकास से ईर्ष्या करते हैं.
सलाम ने कांग्रेस और सीपीआई (एम) पर केवल समुदाय के वोट जीतने के लिए नागरिकता संशोधन नियमों (सीएए) को मुसलमानों के प्रति भेदभावपूर्ण के रूप में पेश करने का आरोप लगाया. उनका कहना था कि सीएए का मकसद बंटवारे से प्रभावित अल्पसंख्यक लोगों को न्याय दिलाना है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में मुस्लिम उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों में से नहीं हैं. सीएए विभाजन के समय पाकिस्तान में प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के लिए एक तरह का वादा है.
पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी इस आम चुनाव में केरल सहित दक्षिणी राज्यों में बढ़त बनाने की कोशिश कर रही है. साल 2019 में, कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने राज्य के 20 संसदीय क्षेत्रों में से 19 पर जीत हासिल की थी. सीपीएम के नेतृत्व वाली एलडीएफ, जो राज्य में सत्ता में है, ने केवल एक सीट जीती थी. जबकि बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को केरल में एक भी सीट नहीं मिल सकी थी.