भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग के मामले में यूपी के वाराणसी ने लंबी छलांग लगाई है. वाराणसी के लंगड़ा आम और पान को जीआई टैग मिला है. इसके साथ ही इस शहर के चार और उत्पाद जीआई टैग से लैस हो गए हैं. इनमें जीआई हब के रूप में उभरे बनारस के आदम चीनी चावल और रामनगर का भंटा को पहले ही जीआई टैग मिल गया है. असल में किसी उत्पाद को जीआई टैग मिलने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसके नकली उत्पाद की आवक को रोका जा सकता है. जीआई टैग से लैस उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कॉपीराइट से जुड़े कानून का संरक्षण मिल जाता है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी ने एक बार फिर जीआई के क्षेत्र में अपना परचम लहराया है. वाराणसी की झोली में 4 उत्पादों के जीआई टैग आ गए हैं. जीआई विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ रजनीकान्त ने बताया कि नाबार्ड उप्र एवं योगी सरकार के सहयोग से प्रदेश के 11 उत्पादों को इस साल जीआई टैग मिला है. इनमें 7 उत्पाद ऐसे भी हैं जो यूपी सरकार की एक जिला एक उत्पाद योजना (ओडीओपी) में भी शामिल हैं. इनमें 4 उत्पाद, खेती एवं बागवानी से संबंधित हैं और संयोगवश ये चारों उत्पाद वाराणसी क्षेत्र से हैं.
इसमें बनारसी लंगड़ा आम (जीआई पंजीकरण संख्या : 716), रामनगर भंटा (717), बनारसी पान (730) तथा आदम चीनी चावल (715) शामिल हैं. इसके साथ ही आगामी गर्मी के मौसम में अब बनारसी लंगड़ा आम जीआई टैग के साथ दुनिया के बाजार में दस्तक देगा.
इसके साथ ही काशी क्षेत्र के कुल 22 उत्पादों को अब तक जीआई टैग हासिल हो गया है. यूपी सरकार की ओर से बताया गया कि अब यूपी के जीआई टैग से लैस उत्पादों की संख्या 45 हो गई है.
डॉ रजनीकान्त ने बताया कि जीआई टैग पाने की कतार में मशहूर बनारसी ठंडाई, लाल भरवा मिर्च और तिरंगी बर्फी भी शामिल है. उन्होंने बताया कि बनारस एवं पूर्वांचल के सभी जीआई उत्पादों के उत्पादन से कुल 20 लाख लोग जुड़े हैं. इन उत्पादों का लगभग 25,500 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार होता है.
डॉ रजनीकान्त ने कहा नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) ने यूपी सरकार के सहयोग से कोविड के कठिन समय में राज्य के 20 उत्पादों का जीआई टैग पाने के लिए आवेदन किया था. लम्बी कानूनी प्रक्रिया के उपरांत 11 जीआई टैग प्राप्त हो गए हैं. उन्होंने उम्मीद जताई है कि आगामी मई के अंत तक शेष 9 उत्पाद भी देश की बौद्धिक सम्पदा में शुमार हो जाएंगे. इनमें बनारस का लाल पेड़ा, तिरंगी बर्फी, बनारसी ठंडाई और बनारसी लाल भरवा मिर्च के साथ चिरईगाँव का करौंदा भी शामिल होगा.
इससे पहले बनारस एवं पूर्वांचल के 18 उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है. इनमें बनारसी ब्रोकेड एवं साड़ी, हस्तनिर्मित भदोही कालीन, मिर्जापुर की हस्तनिर्मित दरी, बनारसी मेटल रिपोजी क्राफ्ट, वाराणसी की गुलाबी मीनाकारी, वाराणसी वूडेन लेकर वेयर एंड टॉयज, निजामाबाद की ब्लैक पाटरी, बनारसी ग्लास बीड्स, वाराणसी की सॉफ्ट स्टोन जाली वर्क, गाजीपुर वाल हैगिग, चुनार बलुआ पत्थर, चुनार ग्लेज पॉटरी, गोरखपुर टेराकोटा क्राफ्ट, बनारसी जरदोजी, बनारसी हैण्ड ब्लाक प्रिंट, बनारस वुड कार्विंग, मिर्जापुर के पीतल के बर्तन और मऊ की साड़ी भी शुमार है.
नाबार्ड के एजीएम अनुज कुमार सिंह ने बताया कि जिन उत्पादों को जीआई टैग मिला है, उन्हें बनाने वाले एवं उपजाने वाले किसानों को आधिकारिक तौर पर जीआई यूजर के लिए पंजीकृत किया जाएगा. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में नाबार्ड जीआई उत्पादों को विश्व फलक पर लाने के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू कर रहा है. इसका लाभ इनके उत्पादकों को मिलेगा. साथ ही वित्तीय संस्थाएं भी उत्पादन एवं मार्केटिंग हेतु सहयोग प्रदान करेंगी.
सिंह ने बताया कि बनारसी लंगड़ा आम के लिए "जया सीड्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड", रामनगर भंटा के लिए "काशी विश्वनाथ फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी, आदम चीनी चावल के लिए "ईशानी एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड" चन्दौली, तथा बनारस पान (पत्ता) के लिए " नमामि गंगे फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड" एवं वाराणसी के उद्यान विभाग ने ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन एवं नाबार्ड तथा राज्य सरकार के सहयोग से जीआई टैग के लिए आवेदन किया था. अगले 4 माह के अन्दर इन चारों उत्पादों में 1000 से अधिक किसानों का 'जीआई अथराइज्ड यूजर' के रूप में पंजीकरण कराया जाएगा. जिससे किसान जीआई टैग का प्रयोग कानूनी रूप से कर सकेंगे. इससे बाजार में नकली उत्पादों को रोकने में मदद मिलेगी.
यूपी के 7 ओडीओपी उत्पादों को भी जीआई टैग मिल चुका है. इनमें अलीगढ़ का ताला, हाथरस की हींग, मुजफ्फरनगर का गुड़, नगीना की वुड कार्विंग, बखीरा का ब्रासवेयर, बांदा का शजर पत्थर क्राफ्ट, प्रतापगढ़ का आंवला शामिल है. इन उत्पादों को 31 मार्च को जीआई का टैग प्राप्त हो गया है.
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