भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है फिर भी इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं है. इसके लिए सरकारी नारा लगाया जा रहा है लेकिन किसान दूसरी फसलों की ओर शिफ्ट हो रहे हैं. जिससे आयात पर निर्भरता बढ़ रही है? जबकि दलहन फसलों में पानी की कम खपत होती है. यह सूखे वाले क्षेत्रों और वर्षा सिंचित एरिया में उगाई जा सकती है. दलहन फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन फिक्स करके उसकी उर्वरता में सुधार करती हैं. इसलिए प्रकृति के लिहाज से यह बेहतर फसल है. फिलहाल, तमाम कोशिशों के बावजूद भारत दलहन फसलों (Pulses Crops) के मामले में अब तक आत्मनिर्भर नहीं बन सका है. साल 2020-21 में हमने 11938 करोड़ रुपये की दालें इंपोर्ट की हैं.
केंद्र सरकार का दावा है कि बीते पांच-छह साल में भारत ने दलहन उत्पादन को 140 लाख टन से बढ़ाकर 240 लाख टन तक कर लिया है. साल 2019-20 में भारत में 23.15 मिलियन टन दलहन उत्पादन हुआ, जो विश्व के कुल उत्पादन का 23.62 परसेंट है. इसके बावजूद भारत को दाल इंपोर्ट करनी पड़ रही है. साल 2050 तक करीब 320 लाख टन दलहन की जरूरत होगी. जितना उत्पादन बढ़ता है उतनी ही तेजी से खपत भी बढ़ रही है. ऐसे में अगर इसकी बुवाई का दायरा बढ़ा नहीं तो आयात पर निर्भरता कम नहीं होगी.
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दालें प्रोटीन का महत्वपूर्ण स्रोत है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक 1951 में प्रति दिन प्रति व्यक्ति दालों की उपलब्धता 60.7 ग्राम थी, जो 2020 में घटकर सिर्फ 47.9 ग्राम रह गई है. इससे आप हालात का अंदाजा लगा सकते हैं. साल 1951 में दालों की उपलब्धता प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 22.1 किलोग्राम की उपलब्धता थी जो अब 2021 में घटकर 16.4 किलो रह गई है.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) में चीफ टेक्निकल एडवाइजर रह चुके कृषि वैज्ञानिक प्रो. रामचेत चौधरी कहते हैं कि दलहन की फसल न सिर्फ धरती की सेहत के लिए बहुत अच्छी है बल्कि शाकाहारी लोगों के लिए यह बहुत जरूरी भी है. क्योंकि यह प्रोटीन का बड़ा स्रोत है. लेकिन, दुर्भाग्य से इसकी खेती का दायरा पहले के मुताबिक सिमट गया है. पहले पूरे पूर्वांचल में अरहर की खेती होती थी, लेकिन देखते ही देखते यहां की खेती का पूरा पैटर्न बदल गया. अब अरहर के खेत दिखते ही नहीं. इसकी सबसे बड़ी वजह छुट्टा पशु और नीलगाय हैं. इसकी वजह से फसल बचती ही नहीं. फली लगते ही ये खेत को साफ कर देते हैं.
जहां तक दलहन फसलों की बुवाई की बात है तो देश में इसका सामान्य एरिया 150 लाख हेक्टेयर है. जबकि 2023 में 167.86 लाख हेक्टेयर में दलहन फसलों की बुवाई हुई है. जिसमें सबसे ज्यादा 112 लाख हेक्टेयर में चना बोया गया है. दलहन फसलों में चने की भागीदारी सबसे अधिक है. लेकिन पिछले साल एमएसपी से कम भाव मिलने की वजह से इस बार इसका एरिया 2.16 लाख हेक्टेयर कम हो गया है. मसूर की खेती 18.52 लाख हेक्टेयर में हुई है. आज विश्व दलहन दिवस है. जिसकी थीम “एक सतत भविष्य के लिए दलहन है.
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