केंद्र सरकार इस साल भी गेहूं खरीद का लक्ष्य पूरा करते हुए नहीं दिख रही है. अब तक सरकारी भंडार के लिए गेहूं खरीदने का सिर्फ 70.5 फीसदी लक्ष्य ही हासिल हो पाया है. इसकी वजह से बाजार में गेहूं के दाम बढ़ने की संभावना प्रबल गई है. सरकार ने 372.9 लाख टन गेहूं खरीदने का टारगेट रखा हुआ है, जबकि 27 मई सुबह तक खरीद सिर्फ 263 लाख मीट्रिक टन ही हो सकी थी. यानी सरकार अपने लक्ष्य से अभी 110 लाख टन पीछे है. इस बीच खरीद प्रक्रिया अब खत्म होने की ओर है. कई सूबों की मंडियों में अब गेहूं की आवक बंद हो गई है, इसलिए खरीद के आंकड़ों में उस तरह से वृद्धि नहीं हो रही है जिस तरह अप्रैल में हो रही थी. अब सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर वो कौन से राज्य हैं जिनकी वजह से केंद्र अपने लक्ष्य से बहुत पीछे है. इनमें सबसे ऊपर उत्तर प्रदेश का नाम आता है, जो देश का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक होने के बावजूद अब तक अपने लक्ष्य का सिर्फ 15 फीसदी ही खरीद पाया है.
केंद्र ने उत्तर प्रदेश सरकार को इस बार 60 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य दिया है, लेकिन यहां अब तक सिर्फ 9 लाख मीट्रिक टन की ही खरीद हो पाई है. बाकी बड़े गेहूं उत्पादक सूबे या तो टारगेट के बहुत नजदीक हैं या फिर 50 फीसदी से ऊपर लक्ष्य अचीव कर लिया है. यूपी एमएसपी पर गेहूं खरीदने के मामले में फिसड्डी साबित हुआ है, जिसकी वजह से केंद्र दबाव में है. यूपी में खरीद का यह हाल तब है जब यहां 1 मार्च से ही गेहूं की सरकारी खरीद प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी, जो बाकी राज्यों में एक अप्रैल से हुई थी. राज्य में 6,500 खरीद केंद्र बनाए गए हैं और अभी खरीद प्रक्रिया 15 जून तक चलेगी. देखना यह है कि राज्य सरकार और कितनी खरीद कर पाती है.
इसे भी पढ़ें: डेटा बोलता है: भारत में कितनी है प्याज की डिमांड और सप्लाई, किस आधार पर खोला गया एक्सपोर्ट?
उत्तर प्रदेश में देश का करीब 35 फीसदी गेहूं पैदा होता है. इसके बावजूद तीन साल से यहां एमएसपी पर पर्याप्त गेहूं खरीद नहीं हो पा रही है. इस साल राज्य के 4,02,442 किसानों ने एमएसपी पर गेहूं बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया था, जबकि अब तक सिर्फ 1,25,485 लोगों ने ही सरकार को गेहूं बेचा है. आखिर इसकी वजह क्या है?
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार टीपी शाही का कहना है कि किसान पिछले तीन साल से व्यापारियों को गेहूं बेचने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं, क्योंकि बाजार में दाम एमएसपी से अधिक मिल रहा है. एमएसपी 2275 रुपये प्रति क्विंटल है. इस दाम पर सरकार को गेहूं बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है. मंडी तक किसान को ही गेहूं लेकर भी जाना है. जबकि व्यापारी घर आकर 2350 रुपये का दाम दे रहे हैं. अगर एक महीने बाद पेमेंट चाहिए तो 2500 रुपये का भाव भी मिल जा रहा है.
ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में ओपन मार्केट में गेहूं के दाम 300-400 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ सकते हैं. इसलिए कुछ किसानों ने अच्छे दाम की उम्मीद में गेहूं को अपने पास रोक भी रखा है. यूपी गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक है तो उपभोक्ता भी उतना ही बड़ा है, इस बात को भी ध्यान में रखने की जरूरत है.
उत्तर प्रदेश में पिछले तीन साल से गेहूं की सरकारी खरीद नाम मात्र की रह गई है. एफसीआई के अधिकारियों के अनुसार रबी मार्केटिंग सीजन 2022-23 के दौरान यूपी में 60 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का टारगेट रखा गया था, जबकि सिर्फ 3.36 लाख मीट्रिक टन की ही खरीद हो सकी थी. इसके बाद सरकार ने 2023-24 के दौरान उत्तर प्रदेश का लक्ष्य घटाकर सिर्फ 35 लाख टन कर दिया. इतना कम लक्ष्य भी सरकार हासिल नहीं कर पाई और पूरी खरीद 2.20 लाख टन पर सिमट गई. पिछले एक दशक में यूपी में हुई यह सबसे कम खरीद थी.
हालांकि इस बार यानी रबी मार्केटिंग सीजन 2024-25 में यूपी सरकार ने खरीद थोड़ी बेहतर की है. एफसीआई के अनुसार यूपी ने 27 मई तक 8,97,739 मीट्रिक टन गेहूं खरीद लिया है, जबकि टारगेट 60 लाख टन का दिया गया है. पिछले एक दशक में सिर्फ दो बार यूपी में गेहूं की सरकारी खरीद 50 लाख मीट्रिक टन के पार हुई है. जिसमें 2021-22 में सबसे अधिक 56.41 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया था.
इसे भी पढ़ें: Toor Dal Price: अरहर दाल के भाव में लगा महंगाई का तड़का, एमएसपी से डबल हुआ दाम