गेहूं की सरकारी खरीद में पिछले साल की तरह इस बार भी केंद्र सरकार पिछड़ गई है. वो अपने खरीद के टारगेट से अभी करीब 79 लाख मीट्रिक टन पीछे है. जिसे पूरा होने की उम्मीद अब नहीं के बराबर रह गई है. हालात ये हैं कि पिछले एक सप्ताह के दौरान पूरे देश में सिर्फ 20,540 मीट्रिक टन गेहूं ही एमएसपी पर खरीदा जा सका है. अप्रैल में जब खरीद प्रक्रिया शुरू हुई थी तब ऐसा लग रहा था कि इस बार सरकार 341.5 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का अपना लक्ष्य आसानी से पूरा कर लेगी. लेकिन मई के अंत तक किसानों ने सरकार की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. क्योंकि देश के कई शहरों में गेहूं का दाम एमएसपी यानी 2125 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर पहुंच गया. सरकार मई खत्म होते-होते सिर्फ 261.89 लाख मीट्रिक टन ही गेहूं खरीद सकी है.
किसान इस बार भी सरकार की बजाय व्यापारियों को गेहूं बेचना पसंद कर रहे हैं. साथ ही अच्छे दाम की उम्मीद में कुछ लोगों ने अनाज स्टोर किया हुआ है. अब मंडियों में किसान एमएसपी पर गेहूं बेचने नहीं जा रहे हैं. बाजार के जानकारों का कहना है कि अब सरकार अपना टारगेट पूरा करने की स्थिति में नहीं है. क्योंकि, बफर स्टॉक यानी सेंट्रल पूल के लिए सबसे ज्यादा योगदान करने वाले पंजाब और हरियाणा में खरीद बंद हो चुकी है. रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 में बहुत जोर लगाने पर 265 लाख टन की खरीद हो सकती है. कम खरीद की वजह से अब गेहूं एक्सपोर्ट खुलने की संभावना भी न के बराबर रह गई है. गेहूं एक्सपोर्ट पर सरकार ने 13 मई 2022 से बैन लगाया हुआ है.
इसे भी पढ़ें: Mustard Price: बंपर उत्पादन के बाद 'तेल के खेल' में क्यों पिस रहे सरसों की खेती करने वाले किसान?
केंद्र सरकार को भरोसा था कि पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश की वजह से उसका खरीद का लक्ष्य पूरा हो जाएगा. लेकिन इन तीनों राज्यों ने भी अपना टारगेट पूरा नहीं किया. उत्तर प्रदेश तो इस मामले में सबसे पीछे रहा है. पिछले साल की तरह एक भी राज्य इस साल भी अपना खरीद लक्ष्य पूरा नहीं कर पाया है. सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में देने और किसी संकट के हालात के लिए गेहूं का बफर स्टॉक रखती है.
कमोडिटी एक्सपर्ट इंद्रजीत पॉल का कहना है कि किसानों ने बारिश में खराब हुआ गेहूं सरकार को बेच दिया और अच्छा गेहूं रोक लिया है. ताकि आगे चलकर अच्छा दाम मिल सके. इस समय भी कई शहरों में गेहूं का दाम 22 से 24 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है, जो एमएसपी से अधिक है. इस साल भी गेहूं के दाम में पिछले साल की तरह तेजी रहने का अनुमान है. जिन किसानों के पास स्टोरेज की क्षमता है वो गेहूं अपने पास रख सकते हैं.
इस साल मार्च के अंतिम और अप्रैल के पहले सप्ताह के दौरान बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की वजह से गेहूं की फसल खराब हो गई थी. ऐसे में सरकार ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में खराब गुणवत्ता के गेहूं को भी खरीदने की अनुमति दी. लेकिन एमएसपी पर प्रति क्विंटल 5.31 रुपये से लेकर अधिकतम 31.87 रुपये तक की कटौती की शर्त रखी गई. किसानों को यह डील अच्छी लगी.
पंजाब और हरियाणा की सरकारों ने तो इस कटौती का पैसा भी अपने फंड से दिया. यानी अपने राज्य के किसानों को खराब गेहूं पर भी पूरा एमएसपी दिलाया. ऐसे में किसानों ने खराब गेहूं एमएसपी पर बेच दिया और अच्छा गेहूं अपने पास रख लिया या एमएसपी से ऊंचे दाम पर व्यापारियों को बेच दिया. कमोडिटी एक्सपर्ट इंद्रजीत पॉल का कहना है कि अगर सरकारी खरीद के लिए गेहूं के फेयर एंड एवरेज क्वालिटी के मानदंडों में छूट नहीं दी गई होती तो इस साल खरीद का और बुरा हाल होता.
पिछले वर्ष यानी रबी मार्केटिंग सीजन 2022-23 में सरकार ने रिकॉर्ड 444 लाख मिट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था. लेकिन, किसानों ने व्यापारियों को गेहूं बेचना शुरू कर दिया था. क्योंकि ओपन मार्केट में एमएसपी से अच्छा दाम मिल रहा था. इसकी वजह हीटवेव से फसल को नुकसान और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भारत से रिकॉर्ड गेहूं एक्सपोर्ट था. तब केंद्र ने 18 प्रतिशत तक सूखे, मुरझाए और टूटे अनाजों की खरीद की भी अनुमति दे दी. जबकि उससे पहले यह सीमा सिर्फ 6 प्रतिशत थी. फिर भी किसानों ने सरकार को गेहूं नहीं बेचा.
ऐसे में केंद्र को अपना खरीद लक्ष्य संशोधित करके 195 लाख मीट्रिक टन करना पड़ा. लेकिन, रिवाइज्ड लक्ष्य भी पूरा नहीं हो सका. खरीद सिर्फ 187.9 लाख टन पर सिमट गई. इसलिए इस बार सरकार ने खुद ही खरीद लक्ष्य को पिछले साल के मूल टारगेट 444 लाख टन के मुकाबले घटाकर 341.50 लाख टन कर दिया था. इसके बावजूद लक्ष्य पूरा नहीं हुआ.
इसे भी पढ़ें: सूरजमुखी बेचने पर 1000 रुपये प्रति क्विंटल की मदद देगी सरकार, फिर क्यों विरोध में उतरे किसान?