देश में सरसों की सरकारी खरीद का लक्ष्य अभी पूरा नहीं हो सका है. अब तक सिर्फ 10,19,845 मीट्रिक टन की ही खरीद हो पाई है. जबकि केंद्र सरकार के बनाए गए नियमों के मुताबिक करीब 31 लाख मीट्रिक टन की खरीद होनी चाहिए. कुछ राज्यों का तो हाल बहुत ही खराब है. हालांकि इस साल पहली बार राजस्थान ने खरीद के मामले में हरियाणा को पीछे छोड़ दिया है. किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर सरसों खरीदने के मामले में अब तक हरियाणा नंबर वन था. यहां पर कुल 3,47,105 मीट्रिक टन सरसों खरीदा गया था. लेकिन, अब राजस्थान 3,91,508 मीट्रिक टन की खरीद के साथ नंबर वन पर आ गया है. हालांकि, यह अलग बात है कि वो अपने टारगेट से अभी 11 लाख मीट्रिक टन दूर है, जिसे पूरा होने की उम्मीद नजर नहीं आ रही.
इस साल देश भर में 4,20,082 किसानों को सरसों की एमएसपी का लाभ मिला है. यानी इतने किसान ही अब तक सरकारी रेट पर सरसों बेच सके हैं. इसके बदले उन्हें 5558 करोड़ रुपये मिलेंगे. रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 में सरसों का एमएसपी 5450 रुपये प्रति क्विंटल है. रबी फसल वर्ष 2022-23 में 125 लाख मीट्रिक टन सरसों उत्पादन होने का अनुमान है. जिसके हिसाब से कम से कम 31 लाख मीट्रिक टन सरसों की सरकारी खरीद होनी चाहिए. कुल उत्पादन का 25 फीसदी एमएसपी पर खरीदने का प्रावधान है, उसे भी राज्य सरकारें पूरा नहीं कर पा रही हैं. जिससे किसानों को नुकसान और व्यापारियों को फायदा पहुंच रहा है.
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देश में सबसे ज्यादा सरसों खरीदने के बावजूद राजस्थान पर सवाल उठाए जा रहे हैं. इसकी एक बड़ी वजह है. राजस्थान देश का सबसे बड़ा सरसों उत्पादक है. जिसका कुल सरसों उत्पादन में 48.2 फीसदी का योगदान है. इसे 15 लाख मीट्रिक टन सरसों खरीदने का टारगेट दिया गया है. लेकिन, अब तक 4 लाख मीट्रिक टन भी नहीं खरीदा गया है. यहां के किसान 3,91,508 मीट्रिक टन सरसों ही बेच पाए हैं. जिसके बदले उन्हें 2134 करोड़ रुपये एमएसपी के तौर पर मिले हैं. आरोप है कि यहां पर खरीद में काफी देर की गई. इसलिए किसान व्यापारियों को अपनी उपज 4000 से 4500 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बेचने को मजबूर हुए.
हरियाणा देश का तीसरा सबसे बड़ा सरसों उत्पादक है. कुल उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 13.1 फीसदी की है. जबकि यहां पर 3,47,105 मीट्रिक टन की खरीद की गई है. जिसके बदले राज्य के किसानों को 1892 करोड़ रुपये एमएसपी के तौर पर मिले हैं. हरियाणा में सरसों की खरीद बंद हो चुकी है. यह अपने लक्ष्य की खरीद पूरी कर चुका है. आमतौर पर हरियाणा हर साल अपने कुल उत्पादन का 20 फीसदी से अधिक सरसों खरीदता रहा है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार 2020-21 के दौरान हरियाणा में 3.1 लाख मीट्रिक टन की खरीद हुई थी, जो कुल उत्पादन का 24.6 फीसदी था. इसके बाद ओपन मार्केट में सरसों का दाम एमएसपी से ज्यादा हो गया, इसलिए दो साल तक सरसों खरीद नहीं हुई थी. इस साल फिर राज्य ने अपना टारगेट पूरा कर लिया है.
मध्य प्रदेश देश का दूसरा सबसे बड़ा सरसों उत्पादक है. देश के कुल उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 13.3 फीसदी है. यहां पर अब तक 1,67,591 मीट्रिक टन की खरीद हुई है. इस हिसाब यहां भी तय टारगेट जितनी खरीद नहीं हो सकी है. उत्तर प्रदेश 10.4 फीसदी उत्पादन के साथ देश का चौथा सबसे बड़ा सरसों उत्पादक है. लेकिन अब तक यहां पर महज 28,958 मीट्रिक टन ही सरसों खरीदा गया है, जो उत्पादन के मुकाबले बेहद कम है. गुजरात देश का छठा सबसे बड़ा सरसों उत्पादक है. कुल सरसों उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 4.2 फीसदी की है. राज्य में अब तक 84,355 मीट्रिक टन सरसों खरीदा गया है.
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि अगर राज्य सरकारें कुल उत्पादन का 25 फीसदी भी फसल नहीं खरीद रही हैं तो यह बहुत ही दुखद है. पहले ही कुल सरसों उत्पादन में से 75 फीसदी उपज सरकारी खरीद के दायरे से बाहर है. ऐसे में बाजार पर सरकारी दाम का कोई दबाव नहीं बनता. अब ऊपर से दिक्कत यह है कि राज्य सरकारें वो 25 फीसदी भी खरीद नहीं कर रही हैं. इसकी वजह से किसान औने-पौने दाम पर व्यापारियों को अपनी फसल बेचने के लिए मजबूर हैं. सरसों किसानों को दबाने में केंद्र सरकार की भी बड़ी भूमिका है. क्योंकि उसने खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी इतनी कम कर दी है कि सरसों सस्ता हो गया है.
इस साल किसानों को सरसों का एमएसपी भी नहीं मिल रहा है. क्योंकि खाद्य तेलों की इंपोर्ट ड्यूटी लगभग खत्म हो गई है और राज्य सरकारें अपने टारगेट का सरसों नहीं खरीद रही हैं. इसके खिलाफ केंद्र सरकार राज्यों पर कोई कार्रवाई तक नहीं कर रही है. इसका सीधा फायदा व्यापारियों को मिल रहा है और किसानों को नुकसान पहुंच रहा है. ई-नाम के मुताबिक 10 जुलाई को राजस्थान की हनुमानगढ़ मंडी में सरसों का न्यूनतम दाम 4346, अधिकतम 5040 और मॉडल प्राइस 4925 रुपये प्रति क्विंटल रहा. हरियाणा की सिरसा मंडी में न्यूनतम भाव 4370 और अधिकतम दाम 4850 रुपये प्रति क्विंटल रहा.
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