भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां पर किसान बड़े स्तर पर खेती-किसानी करते हैं. 75 फीसदी से अधिक आबादी की आजीविका खेती पर ही निर्भर है. आजादी से पहले यहां के किसान बड़े स्तर पर मोटे अनाज की खेती करते थे. इनमें मक्के का रकबा सबसे अधिक होता था. लेकिन धान-गेहूं जैसी फसलों को रकबा बढ़ने से मक्के की खेती सिकुड़ गई. लेकिन अब किसान फिर से मोटे अनाज की तरफ रूख कर रहे हैं. बिहार, पंजाब, हरियाणा, असम, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु सहित पूरे देश में किसान बड़े स्तर पर मक्के की खेती कर रहे हैं. इससे किसानों की बंपर कमाई हो रही है. खास बात यह है कि मक्के को स्वीटकॉर्न के रूप में भी जाना जाता है और इसकी तोड़ाई करते समय किसानों को सावधानी बरतनी चाहिए.
स्वीटकॉर्न एक ऐसी फसल है जिसकी बुवाई आप किसी भी मौसम में कर सकते हैं. बंसत और खरीफ मौसम के दौरान बुवाई करने पर स्वीटकॉर्न का बंपर उत्पादन होता है. अगर किसान जुलाई महीने में स्वीटकॉर्न की बुवाई करते हैं, तो अच्छी पैदावार होगी. बड़ी बात यह है कि किसान दूधिया अवस्था में स्वीटकॉर्न की तुड़ाई कर सकते हैं. मार्केट में दूधिया स्वीटकॉर्न की बहुत डिमांड रहती है. अगर किसान चाहें, तो दूधिया अवस्था के 20 से 22 दिन बाद भी तुड़ाई कर सकते हैं. तब इसका इस्तेमाल भुट्टे के रूप में किया जाता है.
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ऐसे स्वीटकॉर्न के बीज के अंकुरण के 45 से 50 दिनों के बाद नर मंजर आती है और इसके 2 से 3 दिनों के बाद मादा मंजर आती है. खरीफ के मौसम में परागण के 15 से 20 दिनों के बाद स्वीटकॉर्न के भुट्टों की तुड़ाई की जा सकती है. भुट्टों की तुड़ाई हमेशा सुबह और शाम में ही करें.
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जानकारों का कहना है कि स्वीटकॉर्न की खेती में सिंचाई की बहुत कम जरूरत होती है. खरीफ स्वीटकॉर्न तो बारिश के पानी से ही सिंचित हो जाता है. यह एक ऐसी फसल है जिससे कम लागत में अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है. खास बात यह है कि किसान स्वीटकॉर्न की फसल को दूधारू मवेशियों के लिए पौष्टिक हरे चारे के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं. ऐसे स्वीटकॉर्न की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी अच्छी मानी गई है. अगर आप इसकी खेती करना चाहते हैं, तो खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था कर लें. क्योंकि खेत में जलभराव से इसकी फसल को नुकसान पहुंचता है.