ये हैं मटर की 3 सबसे उन्नत किस्में, एक फली में मिलते हैं 7-8 हरे मीठे दाने

ये हैं मटर की 3 सबसे उन्नत किस्में, एक फली में मिलते हैं 7-8 हरे मीठे दाने

मटर की खेती के लिए ठंडी जलवायु की जरूरत होती है. अक्टूबर से नवंबर तक का मौसम मटर की बुवाई के लिए सबसे अच्छा होता है. अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ दोमट और बलुई दोमट मिट्टी मटर की खेती के लिए सबसे अच्छी होती है. अगर अच्छे संसाधन उपलब्ध हों तो फसल को सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है.

मटर की उन्नत किस्मेंमटर की उन्नत किस्में
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Aug 29, 2024,
  • Updated Aug 29, 2024, 12:47 PM IST

मटर का उपयोग पूरे भारत में सब्जी के रूप में किया जाता है. कई राज्यों में मटर की खेती बहुत बड़े क्षेत्र में की जाती है. मटर रबी की फसल है और इसकी खेती ठंडी जलवायु में की जाती है. पहाड़ी इलाकों में जहां ठंड होती है, वहां इसकी खेती गर्मियों में भी की जाती है. मटर की खेती देश के कई राज्यों में की जाती है. भारत में मटर की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार और कर्नाटक में की जाती है. ऐसे में आइए जानते हैं मटर की खेती करने के लिए 3 सबसे उन्नत किस्में कौन सी हैं और इससे कैसे अधिक उपज पा सकते हैं.

कब करें मटर की बुवाई

मटर की खेती में अगेती किस्मों की बुवाई अक्टूबर के पहले सप्ताह से नवंबर के पहले सप्ताह तक करनी चाहिए. मध्यम और पछेती किस्मों की बुवाई 15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक करनी चाहिए. बुवाई हल के पीछे 20 से 25 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में करनी चाहिए. पंक्तियों के बीच की दूरी 20 से 25 सेमी रखी जाती है. यदि बुवाई के बाद बीज बहुत घने हों तो उन्हें अंकुरण के बाद पतला कर देना चाहिए.

ये भी पढ़ें: गुजरात में बारिश से नष्ट फसलों का मुआवजा देगी सरकार, 30 से अधिक जिलों के किसान प्रभावित

मटर की उन्नत किस्में

वी.एल. मटर-3: यह मध्य पकने वाली किस्म है. इस किस्म के पौधों की वृद्धि सीमित होती है और पत्ते हल्के हरे रंग के होते हैं. फलियां हल्के हरे रंग की और सीधी होती हैं. इस किस्म की उत्पादन क्षमता 100-105 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

नरेंद्र वेजिटेबल मटर-6: यह मध्य पकने वाली किस्म है. इस किस्म के पौधे 45-55 सेमी लंबे होते हैं और पहला फूल 30-35 दिनों के बाद आता है. इस किस्म की फलियां बुवाई के 60-70 दिन बाद काटी जा सकती हैं. फलियां 8 सेमी लंबी होती हैं और उनमें 7-8 हरे मीठे बीज होते हैं. इस किस्म की उत्पादन क्षमता 85-95 क्विंटल/हेक्टेयर है.

नरेंद्र वेजिटेबल मटर-4: यह मध्य पकने वाली किस्म है. इस किस्म के पौधे 70-75 सेमी लंबे होते हैं. तने 8-9 सेमी लंबे होते हैं और इनमें 7-8 हरे मीठे बीज होते हैं. इस किस्म की उत्पादन क्षमता 100-110 क्विंटल/हेक्टेयर है.

ये भी पढ़ें: बरसाती मूली की फसल पर 3 कीटों का हमला, युवा किसान ने बताया रोग की रोकथाम का तरीका

बुवाई से पहले करें बीज उपचार

बुवाई से पहले बीज उपचार करने से न केवल अंकुरण प्रतिशत में लाभ होता है बल्कि उत्पादन में भी वृद्धि होती है. राइजोजम कल्चर के लिए बीजों को 10 परसेंट गुड़ के घोल से अच्छी तरह उपचारित करके छाया में सुखाना चाहिए. विल्ट रोग से बचने के लिए बीजों को कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम/किग्रा की दर से उपचारित करें. उपचारित बीजों को 5-8 सेमी की गहराई पर बोया जाता है. अगेती किस्मों के लिए बीजों के बीच की दूरी 4-5 सेमी और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25-30 सेमी और मध्य पकने वाली किस्मों के लिए बीजों के बीच की दूरी 5-8 सेमी और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-40 सेमी होनी चाहिए.

पौधों में खाद की जरूरत

मटर की जड़ों में राइजोबियम नामक जीवाणु रहता है जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को पौधों की जड़ों तक पहुंचाता है. नाइट्रोजन की जरूरतों को केवल जीवाणु ही पूरा करने में सक्षम होते हैं. लेकिन ये जीवाणु पौधे की एक निश्चित आयु पर ही अपना काम शुरू कर देते हैं. इसके कारण नाइट्रोजन की थोड़ी मात्रा बुवाई से पहले ही मिट्टी में मिल जाती है. बुवाई से 8 सप्ताह पहले 100-150 क्विंटल/हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए. अधिक उपज पाने के लिए मटर के लिए प्रति हेक्टेयर 50-70 किग्रा नाइट्रोजन, 40-50 किग्रा फास्फोरस और 40-60 किग्रा पोटाश का प्रयोग किया जाता है. फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय दी जाती है और नाइट्रोजन की बची हुई आधी मात्रा बुवाई के 30-40 दिन बाद पहली सिंचाई के बाद प्रयोग की जाती है.

MORE NEWS

Read more!