देश के लगभग सभी राज्यों में मॉनसून ने दस्तक दे दी है. इसके साथ ही खरीफ फसलों की खेती की भी शुरुआत हो गई है. धान खरीफ सीजन की मुख्य फसल है. वहीं जून के अंतिम सप्ताह और जुलाई की शुरूआत में कई राज्यों के किसान धान की बुवाई शुरू कर देते हैं. लेकिन, कई राज्य ऐसे हैं जहां पानी की कमी होने के कारण किसान धान की खेती देरी से शुरु करते हैं, क्योंकि धान की फसल को तैयार करने के लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है. ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों ने धान की कई ऐसी किस्में तैयार की हैं, जो कम पानी और सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भी अच्छी उपज देती हैं. कई राज्यों के किसान बारिश को ध्यान में रखते हुए धान की खेती करते हैं. उन किसानों के लिए धान की ये 5 बौनी किस्में किसी वरदान से कम नहीं है. आइए जानते हैं कौन सी हैं वो किस्में और क्या है उनकी खासियत.
पूसा बासमती PB-1847: ये पूसा बासमती-1509 का नया संस्करण है. यह किस्म झुलसा और झौंका रोग प्रतिरोधी है, जो किसानों द्वारा खूब पसंद की जाने वाली किस्म है. यह एक एकड़ में 25 से 32 क्विंटल तक उत्पादन देती है. इस किस्म को कम पानी वाले जगह पर भी उगाया जा सकता है.
पूसा बासमती PB-1401: यह धान की बौनी किस्म है. यह पकने के बाद भी गिरती नहीं है. बासमती की ये किस्म 135 से 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है. ये किस्म 40 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपज देती है. इस किस्म की बुवाई 25 जून के बाद और पूरे जुलाई तक की जाती है. इसका दाना पकने के बाद भी एक समान रहता है. यह बासमती की पसंदीदा किस्मों में से एक है.
PB 1509 किस्म: धान की खेती के लिए अगर आपके पास सिंचाई के सीमित संसाधन है तो आपको पूसा बासमती PB 1509 किस्म का चयन करना चाहिए. इसकी क्वालिटी बहुत अच्छी होती है. धान की इस किस्म के पौधे बौने रहते हैं. इसकी खास बात यह है कि इसकी उत्पादन बेहद अच्छी होती है.
पूसा बासमती PB-1886: 150 से 155 दिनों में पक कर तैयार होने वाली है पूसा बासमती PB-1886. बासमती की यह किस्म झुलसा और झौंका रोग के लिए प्रतिरोधी है. यह किस्म हरियाणा और उत्तराखंड के लिए बेस्ट है. इसकी बुवाई 15 जून पूरे जुलाई तक की जा सकती है. यह किस्म एक हेक्टेयर में करीब 50 क्विंटल तक का उत्पादन देती है.
पूसा बासमती PB 1728: इस किस्म में बैक्टीरियल ब्लाइट बीमारी से लड़ने की क्षमता पाई जाती है. यह पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी यूपी और उत्तराखंड में उगाई जाने वाली किस्म है. इसकी बिजाई 20 में से 22 जून तक की जाती है. खास बात यह है कि 1 एकड़ में इसकी बिजाई के लिए 5 किलो बीज की आवश्यकता होती है.