Sugarcane Part-1: राजनीति थमी तो शुगर मिलें चमकीं, गन्ना उद्योग ऐसे पकड़ रहा है रफ्तार

Sugarcane Part-1: राजनीति थमी तो शुगर मिलें चमकीं, गन्ना उद्योग ऐसे पकड़ रहा है रफ्तार

गन्ना फसल के साथ झंझट भी तमाम होते हैं. किसानों और चीनी मिलों के मालिकों के बीच टकराव भी होते रहे हैं. लेकिन अब देश के विकास में एक बार फिर गन्ना केंद्र बिंदु में आ गया है. ये चीनी मिल आपकी चाय की प्याली में मिठास बनकर तो पहुंच ही रहे हैं, बिजली बनाकर आपके घरों को भी रौशन कर रहे हैं, तो इथेनॉल बनाकर गाड़ियां भी चला रहे हैं. अब गन्ना मिलें देश और देशवासियों के विकास में कैसे अहम रोल निभा रही हैं, इसे समझने के लिए किसान तक का पूरा विश्लेषण पढ़िए.

गन्ना किसानों और शुगर मिल मालिकों के बीच विवादों में कमी आई है. Graphics-Sandeep Bharadwajगन्ना किसानों और शुगर मिल मालिकों के बीच विवादों में कमी आई है. Graphics-Sandeep Bharadwaj
जेपी स‍िंह
  • NEW DELHI,
  • Jul 07, 2023,
  • Updated Jul 07, 2023, 1:55 PM IST

गन्ना किसानों की राजनीति से केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को हमेशा खतरा रहा है. गन्ने की खेती की राजनीति ने देश में कई किसान नेताओं को जन्म भी दिया है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह, महेंद्र सिंह टिकैत, पूर्वी उत्तर प्रदेश में गेंदा सिंह जिन्हें गन्ना सिंह कहा जाता है, वहीं महाराष्ट्र में शरद पवार और नितिन गडकरी जैसे नेता भी गन्ना किसानों की राजनीति से निकले नेता हैं, जो ऊंचे शिखर पर पहुंचे हैं. गन्ने की फसल के साथ झंझट भी तमाम होते हैं. किसानों और चीनी मिलों के मालिकों के बीच होते रहे बवाल से तो हर कोई वाकिफ हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से ये बवाल कम होते जा रहे हैं. मिल मालिकों की ओर से किसानों के भुगतान में अब बहुत ज्यादा देरी नहीं हो रही है. क्योंकि गन्ने की खेती राजनीति से निकल कर किसान और उभोक्ता दोनों के जीवन में अहम रोल निभाने के लिए तैयार है.

आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में अहम भूमिका

देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने और करोड़ों किसानों को धन से मजबूत करने में गन्ने की खेती और चीनी तथा गुड़ उद्योगों का महत्वपूर्ण योगदान है. इससे देश के करोड़ों किसानों और मजदूरों को रोजगार मिल रहा है. आज लगभग 5 करोड़ गन्ना किसानों और चीनी मिलों में सीधे तौर पर कार्यरत लगभग 5 लाख श्रमिकों की ग्रामीण आजीविका को प्रभावित करता है. आज भारतीय चीनी उद्योग का वार्षिक उत्पादन लगभग 80,000 करोड़ रुपये है. पांच साल पहले चीनी की मांग-आपूर्ति में असंतुलन के कारण भारतीय चीनी उद्योग में स्थिरता नहीं दिखती थी. जिसके कारण किसानों को गन्ने के भुगतान के लिए लम्बे समय तक इंतजार करना पड़ता था. चीनी मिलों का घाटे में चला जाना और चीनी मिलों की बंद करने जैसी समस्याएं आती रही हैं.

किसान को गन्ने में बेहतर भविष्य नजर आ रहा है

लगभग बीस सालों में कुल उत्पादन 25 फीसदी बढ़ा है और एरिया लगभग 12 फीसदी के लगभग बढ़ा है. वहीं प्रति हेक्टयर उत्पादन की बात करें तो देश में साल 2001 में प्रति हेक्टयर गन्ने का औसत उत्पादन 68 टन था. अब औसत उत्पादन 83 टन हो गया है. ये आकड़े दर्शाते हैं कि गन्ने की खेती में हर तरह से सुधार हुआ है. भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है. चालू वित्त वर्ष 2022-23 में देश में 320 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था. दुनिया के कुल उत्पादन में लगभग 18 फीसदी का योगदान दे रहे हैं. 

मीठी फसल अब ऊर्जा फसल के रूप उभर रही है

अब चीनी गुड़ और गन्ने की खोई को अन्तिम उत्पाद नहीं माना जा सकता है. क्योंकि एकल वस्तु चीनी पर निर्भर रहकर चीनी उद्योग और गन्ना किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत नही की जा सकती है. अब चीनी उद्योग का समग्र रूप से कई उत्पादों परिवर्तनों के लिए तैयार रहना पड़ेगा. यानि अब गन्ने से जैव-बिजली, जैव-इथेनॉल, जैव-गैस/जैव-सीएनजी, जैव-खाद, जैव-प्लास्टिक और जैव रसायन आदि के विकास में ही गन्ना की खेती का विकास निहित है. देश की 50 फीसदी चीनी मिलें अब बिजली बेचने लगी हैं. चीनी मिलें अपनी उत्पादित बिजली का लगभग 40 फीसदी उपयोग करके 60 फीसदी बिजली बेच रही हैं. जबकि देश की चीनी हर साल सीजन में नेशनल शूगर इंस्टीयूट के डॉ नरेन्द्र मोहन के अनुसार 958 लाख यूनिट बिजली उत्पादन की क्षमता है, जिससे हर साल  4794 लाख रुपये का राजस्व चीनी मिलें कमा सकती हैं.

देश का पेट भरने के साथ पेट्रोल का भी इंतजाम करेंगे किसान

भारत की कच्चे तेल की 85 फीसदी जरूरत आयात से पूरी होती है. लेकिन कच्चे तेल पर आयात बिल को कम करने, प्रदूषण को कम करने और पेट्रोलियम क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से, सरकार पेट्रोल के साथ इथेनॉल मिश्रित कार्यक्रम के तहत पेट्रोल के साथ इथेनॉल के मिश्रण और उत्पादन को बढ़ाने के लिए सक्रिय रूप से आगे बढ़ रही है. सरकार चीनी मिलों को अतिरिक्त गन्ने को इथेनॉल में बदलने के लिए प्रोत्साहित कर रही है जिसे पेट्रोल के साथ मिलाया जाता है, जो न केवल हरित ईंधन के रूप में काम करता है बल्कि कच्चे तेल के आयात के कारण विदेशी मुद्रा भी बचाता है. सरकार ने 2022 तक पेट्रोल के साथ ईंधन ग्रेड इथेनॉल के 10 फीसदी  मिश्रण रखा था. पेट्रोल में 10 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य जून 2022 में हासिल कर लिया गया, इसकी सफलता से उत्साहित होकर सरकार पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिलाने के कार्यक्रम को आगे बढ़ा रही है. वर्तमान में पेट्रोल में 10 प्रतिशत इथेनॉल (10 प्रतिशत इथेनॉल, 90 प्रतिशत गैसोलीन) मिलाया जाता है और सरकार 2025 तक इस मात्रा को दोगुना करने पर विचार कर रही है और 2025 तक 20 फीसदा मिश्रण का लक्ष्य तय किया है .

विदेशी मुद्रा बचत और पर्यावरण सुरक्षा में अहम रोल

ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के साथ-साथ विदेशी मुद्रा-अर्जन और आयात पर निर्भरता के कम करने के  लिए जैव ईंधन के उपयोग को बढ़ाने के लिए यह मिशन बहुत अहम माना जा रहा है. साल 2014 तक गुड़ आधारित भट्टियों की इथेनॉल आसवन क्षमता केवल 215 करोड़ लीटर थी. साल 2022 में इथेनॉल आसवन क्षमता क्षमता बढ़कर 595 करोड़ लीटर हो गई है. अनाज आधारित भट्टियों की क्षमता जो 2014 में लगभग 206 करोड़ लीटर थी, अब बढ़कर 298 करोड़ लीटर हो गई है. इस प्रकार, पिछले 8 वर्षों में इथेनॉल उत्पादन की कुल क्षमता 2014 में 421 करोड़ लीटर से दोगुनी होकर जुलाई 2022 में 893 करोड़ लीटर हो गई है. सरकार इथेनॉल उत्पादन को बढ़ाने के लिए बैंकों से लिए गए ऋण के लिए चीनी मिलों और डिस्टिलरीज को ब्याज छूट भी दे रही है. 

नौ साल में 10 गुना इथेनाल की आपूर्ति बढ़ी

इथेनॉल क्षेत्र में लगभग 41,000 करोड़ का निवेश किया जा रहा है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा होइथेनॉल आपूर्ति साल (ईएसवाई) 2013-14 में, ओएमसी को इथेनॉल की आपूर्ति केवल 38 करोड़ लीटर थी और मिश्रण का स्तर केवल 1.53% था. ईंधन ग्रेड इथेनॉल का उत्पादन और ओएमसी को इसकी आपूर्ति 10 गुना बढ़ गई है. इथेनॉल आपूर्ति 2021-22 में पेट्रोल के साथ मिश्रण के लिए चीनी मिलों/डिस्टिलरियों द्वारा 400 करोड़ लीटर से अधिक इथेनॉल की आपूर्ति हो रहा है, जो साल 2013-14 में आपूर्ति की तुलना में 10 गुना  है. .

आत्मनिर्भर बन रहा  है चीनी उद्योग

पहले, चीनी मिलें राजस्व उत्पन्न करने के लिए मुख्य रूप से चीनी की बिक्री पर निर्भर थीं. इससे किसानों का गन्ना मूल्य बकाया जमा हो जाता है. पिछले कुछ वर्षों में अधिशेष चीनी के निर्यात को प्रोत्साहित करने और चीनी को इथेनॉल में बदलने सहित केंद्र सरकार की सक्रिय नीतियों के कारण, चीनी उद्योग अब आत्मनिर्भर बन गया है. 2013-14 से लगभग रु. तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) को इथेनॉल की बिक्री से चीनी मिलों को 49,000 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ इसकी तुलना में साल  2021-22 में लगभग रु. ओएमसी को इथेनॉल की बिक्री से चीनी मिलों द्वारा 20,000 करोड़ रुपये का राजस्व उत्पन्न किया; जिससे चीनी मिलों की राजस्व में सुधार हुआ है. जिससे वे किसानों का गन्ना बकाया चुकाने में सक्षम हुई हैं. चीनी और उसके सह-उत्पादों की बिक्री से राजस्व, ओएमसी को इथेनॉल की आपूर्ति, खोई आधारित सह-उत्पादन संयंत्रों से बिजली उत्पादन और प्रेस मड से उत्पादित पोटाश की बिक्री से चीनी मिलों की टॉपलाइन और बॉटम लाइन वृद्धि में सुधार हुआ है. इस प्रकार, सबसे सामान्य तरीके से भी उप-उत्पादों का उपयोग न केवल चीनी उद्योग के वित्तीय स्वास्थ्य को बेहतर बना सकता है, बल्कि जरूरतों को पूरा भी कर सकता है. 

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