
तिलहन फसलों में तिल का अपना एक अलग स्थान है. तिल में तेल की मात्रा 50% तक होती है. जिस वजह से इसकी खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा है. तभी तो ये नकदी फसल की गिनती में आता है. असल में किसान तिल की फसल को एक बार लगाकर 3 बार इससे उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. तिल की फसल से लेकर तिल के तेल की मांग बाजर में हमेशा बनी रहती है. गर्म तासीर होने की वजह से सर्दियों में तिल और इससे बने उत्पादों की मांग बढ़ जाती है. ऐसे में अगर किसान चाहें तो इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
तिल से कई प्रकार के मिठाईयों को भी बनाया जाता है जैसे, गजक, तिल का लड्डू, तिल पापड़ी आदि. इसी कड़ी में आज हम किसानों को बताएंगे की कैसे तिल की उन्नत खेती कर वो भी मुनाफा का सकते हैं. साथ ही तिल की उन्नत किस्मों पर भी चर्चा करेंगे. तो आइये जानते हैं खबर विस्तार से.
देश में तिल की खेती महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडू, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व तेलांगाना में की जाती है. उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में तिल का उत्पादन सबसे अधिक किया जाता है.
ये भी पढ़ें: बासमती ने बनाया रिकॉर्ड, पहली बार 6200 रुपये क्विंटल तक पहुंचा धान का दाम, पाकिस्तान भी है वजह
तिल की खेती किसान भाई साल में तीन बार कर मुनाफा कमा सकते हैं. खरीफ के मौसम में इसकी बुवाई जुलाई के महीने में की जाती है. अच्छी उपज के लिए जुलाई के महीने में इसकी बुवाई कर सकते हैं. वहीं रबी के मौसम में अगर आप इसकी बुवाई करते हैं तो अगस्त के अंतिम सप्ताह से लेकर सितंबर के पहले सप्ताह तक आप इसकी बुवाई कर सकते हैं. गर्मी के समय में तिल की बुवाई जनवरी के दूसरे सप्ताह से फरवरी के दूसरे सप्ताह तक की जा सकती है. समय पर फसलों की बुवाई करने से गुणवत्ता और उपज दोनों में बढ़त देखी जाती है.
तिल की खेती के लिए ठंडी जलवायु अच्छी मानी जाती है. ज्यादा बारिश या सूखा पडऩे की वजह से इसकी फसल पर नकारात्मक असर पड़ता है. वहीं इसकी खेती के लिए हल्की तथा दोमट मिट्टी अच्छी होती है. मिट्टी का पी एच 5.5 से 8.2 तक सही माना जाता है. इसके अलावा इसकी खेती बलुई दोमट और काली मिट्टी में भी की जाती है.
ये भी पढ़ें: ठंड से फसलें भी होती हैं बीमार, वैज्ञानिकों से जानें कैसे रखें उनका खयाल
तिल की फसल में खरपतवार का खतरा हमेशा बना रहता है. जिस वजह से फसल को काफी नुकसान पहुंचता है. ऐसे में इसको रोकने के लिए फसल की प्रथम निराई-गुड़ाई का काम बुवाई से 15 से 20 दिन के बाद करना चाहिए. दूसरी बार 30 से 35 दिन के अंतराल पर करना चाहिए.
किसी भी फसल से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उन्नत क़िस्मों का चयन करना बहुत जरूरी होता है. इसमें सभी प्रकार की बीमारियों से लड़ने की क्षमता सामान्य किस्मों से अधिक होती है और उपज भी अच्छी होती है. ऐसे में तिल की उन्नत किस्में जे.टी-12 (पीकेडीएस-12), टीकेजी 308, जेटी-11 (पीकेडीएस-11), जवाहर तिल 306, जेटीएस 8 आदि है. जिसका चयन कर किसान भाई अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.