चंदन से भी अधिक महंगी बिकती है इस पेड़ की लकड़ी, किसान हो सकते हैं मालामाल

चंदन से भी अधिक महंगी बिकती है इस पेड़ की लकड़ी, किसान हो सकते हैं मालामाल

शीशम की खेती किसानों के लिए दीर्घकालिक आय का स्रोत बन सकती है. यह पेड़ मज़बूत लकड़ी देता है, जिसकी बाज़ार में काफ़ी मांग है. एक बार लगाने के बाद, यह 10-12 साल में पूरी आय देना शुरू कर देता है, और 4-5 साल में रिटर्न भी देता है.

सिर्फ पेड़ नहीं, कमाई का जरियासिर्फ पेड़ नहीं, कमाई का जरिया
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Aug 18, 2025,
  • Updated Aug 18, 2025, 2:02 PM IST

किसानों के लिए आमदनी के नए रास्ते खोलने वाला यह पेड़ सिर्फ छाया ही नहीं देता, बल्कि लाखों की कमाई भी करा सकता है. हम बात कर रहे हैं शीशम (Indian Rosewood) की, जिसकी लकड़ी बाजार में चंदन से भी ज्यादा कीमत पर बिकती है. अगर किसान इसे पारंपरिक खेती के साथ लगाना शुरू करें, तो आने वाले कुछ सालों में वह मालामाल हो सकते हैं.

क्यों खास है शीशम का पेड़?

शीशम की लकड़ी बेहद मजबूत, टिकाऊ और सुंदर होती है. इसका उपयोग फर्नीचर बनाने, घरों के दरवाजे-खिड़कियों, सजावटी सामान और भवन निर्माण में खूब होता है. सबसे खास बात यह है कि इसकी लकड़ी दीमक और पानी से खराब नहीं होती. यही वजह है कि इसकी बाजार में जबरदस्त मांग है और यह कई फसलों की तुलना में ज्यादा कीमत पर बिकती है.

एक बार लगाइए, सालों तक कमाइए

शीशम का पेड़ एक बार लगाने पर 10 से 12 साल में पूरी तरह तैयार हो जाता है. लेकिन इसकी शाखाओं और तनों को बीच-बीच में काटकर भी बेचा जा सकता है, जिससे हर 4-5 साल में अच्छा पैसा मिल सकता है.
अगर किसान एक हेक्टेयर जमीन में 400-500 पेड़ लगाते हैं, तो हर पेड़ से 3 से 5 क्यूबिक फीट लकड़ी मिल सकती है. आज के बाजार भाव के अनुसार, यह लकड़ी लाखों की आमदनी का जरिया बन सकती है.

देखभाल में आसान, खर्च में कम

शीशम के पेड़ को बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती. यह कम पानी में भी अच्छी तरह बढ़ता है और कमजोर मिट्टी में भी उग जाता है. इसे कीटनाशकों की भी कम जरूरत होती है. यानी खर्च कम और फायदा ज्यादा.

पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद

शीशम का पेड़ सिर्फ कमाई का जरिया नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी बहुत लाभकारी है. यह पेड़ हवा को साफ करता है, जमीन की गुणवत्ता बढ़ाता है और मिट्टी के कटाव को रोकता है. अगर किसान खेत की मेड़ या खाली जगह में इसे लगाएं, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए हरियाली की सौगात भी छोड़ सकते हैं.

विशेषज्ञों की राय

पर्यावरण और कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा जलवायु बदलाव के दौर में किसानों को सिर्फ गेहूं, चना या सोयाबीन जैसी पारंपरिक फसलों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. उन्हें ऐसे विकल्प अपनाने चाहिए जो कम मेहनत में ज्यादा मुनाफा दें और लंबे समय तक आमदनी का जरिया बने. शीशम एक ऐसा ही पेड़ है, जिसे पारंपरिक फसलों के साथ मिलाकर (intercropping) भी उगाया जा सकता है.

किसानों के लिए सुनहरा मौका

शीशम का पेड़ किसानों के लिए सिर्फ एक पौधा नहीं, बल्कि एक स्थायी आमदनी का स्रोत है. यह कम खर्च में ज्यादा मुनाफा देता है और पर्यावरण को भी लाभ पहुंचाता है. अब समय आ गया है कि किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ पेड़ आधारित खेती मॉडल को अपनाएं और आर्थिक रूप से मजबूत बनें.

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