अमेरिका (USA) की नीतियों में डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद कई बदलाव किए जा रहे हैं. इनमें से एक मामला टैरिफ से जुड़ा है. अमेरिका ने व्यापारिक देशों पर रेसीप्रोकल टैरिफ लगा दिया है यानी जो देश अमेरिका के सामान पर जितना टैक्स लगाएगा, अमेरिका भी उस पर उतना ही टैरिफ लगाएगा. ऐसे में इस टैरिफ वॉर से भारत के चावल उद्योग को तगड़ा फायदा हो सकता है. बस भारत को इसे अपने पक्ष में भुनाने की जरूरत है. दरअसल, मैक्सिको, कनाडा समेत कई देश अमेरिका से चावल आयात करते हैं, लेकिन टैरिफ बढ़ने के चलते दूसरे देश से आयात शुरू कर सकते हैं, ऐसे में भारत के पास इन देशों को चावल निर्यात करने का बड़ा मौका है.
‘बिजनेसलाइन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लोबल राइस एक्सपर्ट समरेंदु मोहंती कहते हैं कि रेसीप्रोकल टैरिफ सिस्टम अमेरिका के चावल निर्यात पर असर डाल सकता है. इसलिए यह भारत के लिए एक बड़ा मौका हो सकता है, क्योंकि हमारे पास चावल का बफर स्टॉक मौजूद है.
मोहंती के मुताबिक, अमेरिका मेक्सिको और कनाडा के अलावा मध्य और दक्षिण अमेरिका, कैरेबियन देश, जापान और खाड़ी देशों में भी निर्यात करता है, लेकिन सबसे बड़े खरीदार कनाडा और मेक्सिको ही हैं. ये दोनों देश क्रमश: 250,000 टन और 638,000 टन चावल आयात करते हैं. टैरिफ वॉर से ये दो देश ही सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. वैसे तो टैरिफ सामान्य तौर पर नकारात्मक असर डालता है, लेकिन भारत के चावल उद्योग को इससे फायदा हो सकता है.
मोहंती कहते हैं कि कनाडा और मैक्सिको सिर्फ चावल ही नहीं, बल्कि बहुत से कृषि उत्पादों के लिए अमेरिका पर निर्भर हैं और इनके बड़े आयातक भी हैं. ऐसे में अगर टैरिफ के चलते अमेरिकी चावल महंगा होता है तो दोनों देश भारत, पाकिस्तान और वियतनाम जैसे एशियाई देशों से चावल खरीदने के लिए रुख कर सकते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने आगे कहा कि ट्रंप के टैरिफ वॉर से भारत के बासमती चावल के निर्यात पर भी कोई बड़ा असर देखने को नहीं मिलेगा. अमेरिका में इसकी लगभग पहले जैसे ही मांग बनी रहेगी, क्योंकि वहां का प्राथमिक उपभोक्ता अपेक्षाकृत धनी हैं. मोहंती ने कहा कि भारत वैश्विक चावल क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरकर सामने आया है. भारत का निर्यात 20 मिलियन टन को पार कर चुका है, जो इसके वैश्विक व्यापार की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है.
एक ट्रेड एनालिस्ट ने कहा कि अमेरिका कनाडा, मैक्सिको और अन्य दक्षिण अमेरिकी देशों को 700 डॉलर प्रति टन से अधिक के भाव से चावल बेच रहा है. डिमांड और सप्लाई में अंतर के आधार पर इससे भारत के चावल उद्योग को फायदा हो सकता है. हालांकि, दाम मौजूदा बाजार की स्थिति पर निर्भर करेंगे.