जुलाई के ज्यादातर दिनों में मॉनसून की धीमी गति के बाद मराठवाड़ा के कुछ हिस्सों में गुरुवार से अच्छी बारिश हुई है. गुरुवार से बारिश में सुधार देखा गया है. यहां के परभणी में 34 मिमी, बीड और जालना में 27 मिमी प्रत्येक और हिंगोली में 14 मिमी की बारिश दर्ज की गई है जो किसानों के लिए राहत लेकर आई है. मराठवाड़ा के कुछ हिस्सों में मॉनसून के फिर से सक्रिय होने से खरीफ फसलों को नया जीवन मिला है. खराब बारिश की वजह से कई क्षेत्रों में फसलों पर दबाव पड़ा था. कुछ किसानों को फसल के चौपट होने का डर भी सताने लगा था.
आठ जिलों वाले मराठवाड़ा में जुलाई में हुई बरिश बढ़कर 57 मिमी हो गई. हालांकि इस क्षेत्र में अभी भी बारिश में 44 फीसदी की कमी देखी जा रही है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 1 जून से मराठवाड़ा में औसतन 163 मिमी वर्षा दर्ज की गई जिसमें मॉनसून में 31 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई. विशेष तौर पर मराठवाड़ा के कई हिस्सों में मॉनसून की खराब स्थिति की वजह से कुछ हिस्सों में बुवाई में देरी भी हुई.
छत्रपति संभाजीनगर कृषि प्रभाग में किसानों ने अभी तक 17 फीसदी क्षेत्र में बुवाई शुरू नहीं की है जो कि तय लक्ष्य के तहत आता है. जबकि लातूर प्रभाग में खरीफ फसलों के लिए लक्षित खेती के 14 फीसदी हिस्से में बुवाई शुरू नहीं हुई है. कार्यकर्ता जयाजी सूर्यवंशी ने कहा कि मराठवाड़ा के कई किसान, जिन्होंने बुवाई शुरू कर दी है, कम बारिश की वजह से अपनी फसलों की सिंचाई स्वयं करने को मजबूर थे. कई जगहों पर तो किसानों ने दोबारा बुवाई करने की भी योजना बनाई है. उन्होंने कहा था कि खरीफ मौसम के लिए मॉनसून का फिर से सक्रिय होना आवश्यक है.
आईएमडी के पूर्वानुमान के अनुसार, मराठवाड़ा के कई हिस्सों में छिटपुट स्थानों पर हल्की से मध्यम वर्षा होने की संभावना है, जिससे मॉनसून के फिर से सक्रिय होने की संभावना है. सिंचाई विभाग ने बुधवार से कमांड क्षेत्रों में खरीफ फसलों को लाभ पहुंचाने के लिए जयकवाड़ी बांध की दोनों नहरों से पानी छोड़ना शुरू कर दिया है.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, मराठवाड़ा में खरीफ के दौरान सोयाबीन, कपास और अरहर की मुख्य फसलें बोई जाती हैं. छत्रपति संभाजीनगर संभाग में करीब 21.4 लाख हेक्टेयर और लातूर संभाग में 28.3 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर बुवाई होती है. आसमान में बादल छाए रहने के बावजूद, कई इलाकों में केवल छिटपुट बूंदाबांदी हुई थी. हालांकि इस क्षेत्र में खरीफ की खेती के तहत 49 लाख हेक्टेयर में से 80 फीसदी में बुवाई हो चुकी है. लेकिन पर्याप्त बारिश की कमी गंभीर परिणामों की तरफ इशारा कर रही है.
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