सर्दी का मौसम हो और खाने में मटर का उपयोग न हो, ये लगभग असंभव लगने जैसी बात है. भारत में मटर को सब्जी, समोसे-कचौरी, अचार, सूखी मटर आदि विभिन्न प्रकार से खाने में उपयोग में लिया जाता है. अब तो हरी मटर के दाने फ्रीजर में स्टोर कर सालभर बेचे और उपयोग किए जाते हैं. ठंड के पूरे सीजन में शुरू से आखिरी तक इसकी मांग बाजार में बनी रहती है. ऐसे में इसकी खेती किसानों के लिए बड़ी ही लाभदायक रहती है. इसके लिए सितंबर से अक्टूबर मध्य का समय एकदम उपयुक्त रहता है. ऐसे में इसकी अच्छी उपज देने वाली किस्मों की खेती करके बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है. जानिए इसकी उन किस्मों के बारे में जो खेती के लिहाज से फायदेमंद साबित हो सकती हैं.
2013 में जारी की गई पूसा 3 मटर वैरायटी मटर की एक अगेती किस्म हैं, जो उत्तर भारत में खेती के लिहाज से बनाई गई है. इस किस्म को बोने के बाद 50 से 55 दिनों में उपज मिलने लगती है. इसकी हर फली में 6 से 7 दाने होते हैं. यह किस्म प्रति एकड़ 20 से 21 क्विंटल पैदावार देने में सक्षम है.
मटर की काशी नंदिनी वैरायटी को भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी ने बनाया है, जिसकी फसल जल्दी पककर तैयार हो जाती है. इसका पौधा 47-51 सेमी ऊंचा होता है और बुवाई के 32 दिन के बाद इसमें पहला फूल आ जाता है। इसकी फलियों की लंबाई 8 से 9 सेमी तक होती है, जिसमें 8 से 9 दाने होते हैं.
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इस किस्म की मटर से बुवाई के 60 से 65 दिन बाद उपज प्राप्त होती है. इसकी पत्तियां खनिक और फल छेदक रोगों के प्रति प्रतिराेधी होती हैं. वहीं, पैदावार की बात करें तो इसकी किस्म खेती से प्रति हैक्टेयर 110-120 क्विंटल तक उपज हासिल की जा सकती है. काशी नंदिनी किस्म हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में खेती के लिए बनाई गई है.
पंत मटर 155 एक हाइब्रिड मटर वैरायटी है. इस वैरायटी को पंत मटर 13 और डीडीआर-27 के संकरण से बनाया गया है. इस किस्म से रोपाई के 50 से 60 दिनों बाद मटर की फलियां तोड़ी जा सकती है. यह किस्म 15 टन प्रति हैक्टेयर तक उपज देती है. साथ ही यह कई रोगों के प्रति प्रतिरोधी होती है.