संसद की प्राक्कलन समिति ने देश में टिकाऊ खेती को मुख्यधारा में लाने के लिए एक विस्तृत रोडमैप तैयार किया है, जिसमें कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) की भूमिका पर ज़ोर दिया गया है, ताकि जलवायु परिवर्तन और रसायनों के अधिक इस्तेमाल से बढ़ने वाले खतरों के बीच उनमें बदलाव का प्रमुख माध्यम बनाया जा सके. समिति ने सरकार को प्राकृतिक और जैविक खेती को आर्थिक रूप से अपनाने का सुझाव दिया है. कृषि मंत्रालय पर अपनी रिपोर्ट में समिति ने कई सुझाव दिए हैं, जिनमें चुनिंदा जैविक फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की घोषणा और केवीके की उनके प्रदर्शन के आधार पर रैंकिंग को फिर से शुरू करना शामिल है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि उचित मूल्य निर्धारण को औपचारिक रूप देने के लिए समिति यह सिफारिश करती है कि जैविक उत्पादों के लिए मौजूदा 20-30 प्रतिशत प्रीमियम को प्रमुख जैविक फसलों के लिए एमएसपी के माध्यम से संस्थागत किया जाए, जिससे यह तय हो सके कि किसानों को उनके प्रयासों के लिए पर्याप्त मुआवजा मिले.
रिपोर्ट में बताया गया है कि खेती में अधिक लागत, बिना खेती योग्य जमीन, सीमित बाज़ार पहुंच और जैविक खादों की कमी जैसी चुनौतियां जैविक खेती की फायदे में बाधा बन रही हैं. इसके अलावा क्वालिटी वाले जैविक खादों की कमी एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है, क्योंकि यह जैविक खेती की उत्पादकता को प्रभावित करती है.
पैनल ने कृषि मंत्रालय से अनुरोध किया है कि वह पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन (MOVCDNER) जैसी योजनाओं के तहत जैविक संसाधन, और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए वित्तीय सहायता बढ़ाएं. मंत्रालय को मशीनों की तुलना में मानव श्रम पर अधिक निर्भरता को सब्सिडी देने और जैविक खादों की कमी को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. इसके अलावा मंत्रालय को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से बाजार संपर्कों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. साथ ही बाजार तक पहुंच में सुधार लाने और जैविक उत्पादों के लिए उचित मूल्य तय करने के लिए शहरी केंद्रों में समर्पित जैविक खुदरा दुकानें बनानी चाहिए.
समिति ने जलवायु परिवर्तन से कृषि के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों से निपटने में जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील कृषि में राष्ट्रीय नवाचार (एनआईसीआरए) के माध्यम से मंत्रालय के प्रयासों की सराहना की है. समिति ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील फसल किस्मों के विकास और बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल ढलने की किसानों की क्षमता में एनआईसीआरए ने उल्लेखनीय वृद्धि की है.
डिजिटल तकनीकों, विशेष रूप से एआई से चलने वाले पूर्वानुमान मॉडलों को एकीकृत करने के लिए मंत्रालय की सराहना करते हुए, पैनल ने कहा कि इस कदम का समर्थन किया जाना चाहिए. साथ ही इसके संभावित लाभों को बढ़ाने के लिए इसका विस्तार किया जाना चाहिए. पैनल का मानना है कि कृषि में एआई और मशीन लर्निंग का उपयोग मौसम के मिजाज, कीटों के प्रकोप और फसल स्वास्थ्य के बारे में वास्तविक समय की जानकारी देना किसानों को बहुत लाभ पहुंचा सकता है.
पैनल ने मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह दूरदराज और वंचित क्षेत्रों में किसानों के लिए एआई मशीनों को अधिक सुलभ, सस्ती और इस्तेमाल के अनुकूल बनाने के लिए तकनीकी कंपनियों, कृषि विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों के साथ साझेदारी का पता लगाए, ताकि यह तय किया जा सके कि सभी किसान, चाहे वे किसी भी स्थान पर हों, इन तकनीकों से लाभ ले सकें.