केंद्र सरकार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के जरिए किसानों को फसल नुकसान से राहत की ‘गारंटी’ देती है. वर्तमान में खरीफ सीजन के लिए इस योजना के तहत बीमा कराया जा रहा है और इसकी आखिरी तारीख 31 जुलाई 2025 तय की गई है. सरकार किसानों से अपील कर रही है कि वे समय रहते फसल बीमा करवा लें, ताकि बाढ़ या अन्य आपदा के समय नुकसान से बचा जा सके.
हालांकि, बीते कुछ वर्षों में इस योजना में बड़ा बदलाव आया है. बीमा कंपनियों की ओर से तय किए जाने वाली एक्चुरियल रेट में कई जगहों पर गिरावट आई है. साल 2022 तक आजमगढ़ में जहां धान की फसल पर यह दर 6.37 प्रतिशत थी, वहीं अब 2023 से इस साल तक 3.5 प्रतिशत रह गई है. एक्चुरियल रेट वह दर होती है, जिस पर बीमा कंपनियां संभावित जोखिम के आधार पर कुल प्रीमियम तय करती हैं.
योजना के नियमों के तहत किसानों से खरीफ फसलों के लिए कुल बीमा राशि का सिर्फ 2 प्रतिशत प्रीमियम ही लिया जाता है. बाकी राशि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर सब्सिडी के रूप में देती हैं. यानी एक्चुरियल रेट चाहे जितनी भी हो, किसानों का हिस्सा स्थिर रहता है.
साल 2022 में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में धान की फसल के लिए प्रति हेक्टेयर 62,258 रुपये का बीमा कवर मिला था. इसमें किसान ने केवल 1245.16 रुपये (2%) प्रीमियम चुकाया और 2720.67 रुपये की राशि सरकार ने दी.
वहीं, अब 2025 में, इसी जिले में प्रति हेक्टेयर बीमा कवरेज बढ़कर 74,100 हो गया है. लेकिन एक्चुरियल रेट घटकर 3.5% हो गया है, जिससे कुल प्रीमियम 2593.5 रुपये बनता है. इसमें किसान को फिर से सिर्फ 2 प्रतिशत यानी 1482 रुपये ही देने हैं, जबकि सरकार को अब सिर्फ 1.5 प्रतिशत 1111.5 रुपये प्रीमियम पर खर्च करने होंगे.
इससे पता चलता है कि जिले में फसल खराबे का जोखिम कम हुआ है, इसकी वजह से प्रति हेक्टेयर प्रीमियम की राशि घटी है. लेकिन यहां किसानों को फिक्स 2 प्रतिशत प्रीमियम चुकाना पड़ रहा है, जबकि सरकार को सब्सिडी में सीधा फायदा हुआ है.
बता दें कि सरकार PMFBY के तहत धान, मक्का, बाजरा, ज्वार सहित अन्य कुछ फसलों के बीमा की सुविधा देती है. अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग जिलों में फसलों के प्रीमियम भुगतान का प्रतिशत समय के साथ बदलता (कम या ज्यादा) होता रहता है.