पपीता एक पौष्टिक और स्वादिष्ट फल है. विटामिन और खनिजों से भरपूर यह फल बहुत स्वादिष्ट होता है. इसका उपयोग औषधीय रूप में भी किया जाता है. आसानी से उपलब्ध होने वाले पपीते के उत्पादन में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखकर इसे बीमारियों से बचाया जा सकता है और बेहतरीन उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. इसकी खेती की लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है और क्षेत्रफल की दृष्टि से यह हमारे देश का पांचवां लोकप्रिय फल है. देश के अधिकांश हिस्सों में घरेलू बगीचों से लेकर खेतों तक इसका बागवानी क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है.
इसकी खेती देश के विभिन्न राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, असम, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर और मिजोरम में की जा रही है. इसके सफल उत्पादन के लिए वैज्ञानिक तरीकों और तकनीकों का प्रयोग कर किसान खुद और देश को आर्थिक लाभ पहुंचा सकते हैं. वहीं इसकी खेती कर रहे किसानों को कुछ खास बातों का खयाल रखना बेहद जरूरी है. गर्मियों में पपीते की खेती कर रहे किसानों कितनी बार सिंचाई करें इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी है.
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पानी की कमी और निराई-गुड़ाई के अभाव से पपीते के उत्पादन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. दक्षिण भारत की जलवायु में सर्दियों में 8-10 दिन और गर्मियों में 6 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए. उत्तर भारत में अप्रैल से जून तक सप्ताह में दो बार और सर्दियों में 15 दिन के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिए. यह ध्यान रखना जरूरी है कि पानी तने को न छुए, नहीं तो पौधे में सड़न रोग लगने की संभावना रहेगी, इसलिए तने के आसपास की मिट्टी ऊंची रखनी चाहिए. पपीते के बगीचे को साफ रखने के लिए प्रत्येक सिंचाई के बाद पेड़ों के चारों ओर हल्की निराई-गुड़ाई करनी चाहिए. पपीते की अच्छी पैदावार के लिए सिंचाई की उचित व्यवस्था बहुत जरूरी है. गर्मियों में 6-7 दिन और सर्दियों में 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. बारिश के मौसम में जब लम्बे समय तक वर्षा नहीं होती तो सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है. पानी तने के सीधे संपर्क में नहीं आना चाहिए. इसके लिए तने के चारों ओर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए.
पपीते के बगीचे में कई खरपतवार उगते हैं और मिट्टी से नमी, पोषक तत्व, हवा और रौशनी आदि के लिए पपीते के पौधे से प्रतिस्पर्धा करते हैं. इससे पौधों की वृद्धि और उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. खरपतवारों से बचाव के लिए आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए. बार-बार सिंचाई करने से मिट्टी की सतह बहुत कठोर हो जाती है और पौधे की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. ऐसे में 2-3 सिंचाई के बाद प्लेटों की हल्की निराई-गुड़ाई करनी चाहिए.