Paniyala Fruit: पूर्वांचल के पनियाला को मिलेगी नई पहचान, लाखों किसान परिवारों को होगा बड़ा फायदा, जानें कैसे?

Paniyala Fruit: पूर्वांचल के पनियाला को मिलेगी नई पहचान, लाखों किसान परिवारों को होगा बड़ा फायदा, जानें कैसे?

डॉक्टर दुष्यंत ने बताया कि पिछले साल जब हम गए थे तो सीजन ऑफ हो गया था. फलों की गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं थी. फिर भी जो फल और पौधे लाए गए थे उनका एक ब्लॉक बनाकर विकास किया जा रहा है.

पूर्वांचल के पनियाला को मिलेगा पुनर्जीवन (File Photo)पूर्वांचल के पनियाला को मिलेगा पुनर्जीवन (File Photo)
नवीन लाल सूरी
  • Lucknow,
  • Jul 25, 2024,
  • Updated Jul 25, 2024, 10:49 AM IST

Paniyala Fruit Story: लुप्तप्राय हो रहे पूर्वांचल के पनियाले को मिलेगा पुनर्जीवन. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध लखनऊ स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान पिछले साल से इस बाबत पहल कर रहा है। इस कार्य में गोरखपुर स्थित जिला उद्यान विभाग और स्थानीय स्तर के कुछ प्रगतिशील किसान भी बागवानी संस्थान की मदद कर रहे हैं. केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक टी दामोदरन ने बताया कि संस्थान का प्रयास होगा कि यहां से विकसित किए जाने वाले पौधों की फलत अधिक हो. लगने वाले फलों की गुणवत्ता भी बेहतर हो. बागवानों को कैनोपी प्रबंधन का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा. इससे बागों का रखरखाव भी आसान होगा.

5-6 दशक पूर्व पूर्वांचल में खूब मिलता था पनियाला

उल्लेखनीय है कि पनियाला के पेड़ उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज क्षेत्रों में पाये जाते हैं. पांच छह दशक पहले इन क्षेत्रों में बहुतायत में मिलने वाला पनियाला अब लुप्तप्राय है. स्वाद में यह खट्टा कुछ मीठा और थोड़ा सा कसैला होता है. जामुनी रंग के इसके कुछ गोल और चपटे पके फल को हाथ में लेकर थोड़ा घुलाने से इसका स्वाद थोड़ा मीठा हो जाता है. स्वाद में खास होने के साथ यह औषधीय गुणों से भरपूर होता है.

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पनियाला को लुप्त होने से बचाने और बेहतर गुणवत्ता के पौध तैयार करने के लिए पिछले साल भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों ने गोरखपुर और पड़ोसी जिलों के पनियाला बाहुल्य क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया. इस दौरान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. दुष्यंत मिश्र और डॉ. सुशील कुमार शुक्ल ने कुछ स्वस्थ पौधों से फलों के नमूने लिए. दोनों वैज्ञानिकों ने बताया कि अब संस्था की प्रयोगशाला में इन फलों का भौतिक एवं रासायनिक विश्लेषण कर उनमें उपलब्ध विविधता का पता किया जा जाएगा. उपलब्ध प्राकृतिक वृक्षों से सर्वोत्तम वृक्षों का चयन कर उनको संरक्षित करने के साथ कलमी विधि से नए  पौधे तैयार कर इनको किसानों और बागवानों को उपलब्ध कराया जाएगा. 

किसानों को दी जाएगी पनियाला की नर्सरी 

डॉक्टर दुष्यंत ने बताया कि पिछले साल जब हम गए थे तो सीजन ऑफ हो गया था. फलों की गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं थी. फिर भी जो फल और पौधे लाए गए थे उनका एक ब्लॉक बनाकर विकास किया जा रहा है. इस साल दशहरे के आस पास जब पनियाला का पीक सीजन होता है उस समय संस्था की टीम जाकर गुणवत्ता के फल लाकर उनकी गुणवत्ता चेक करेगी. जो सबसे बेहतर गुणवत्ता के फल होंगे उनसे ही नर्सरी तैयार कर किसानों को दी जाएगी. निदेशक टी दामोदरन का कहना है कि संस्था किसानों को तकनीक के अलावा बाजार उपलब्ध कराने तक सहयोग करेगी.

औषधि गुणों से भरपूर है पनियाला

मालूम हो कि पनियाला के पत्ते, छाल, जड़ों एवं फलों में एंटी बैक्टिरियल प्रापर्टी होती है. इसके नाते पेट के कई रोगों में इनसे लाभ होता है. स्थानीय स्तर पर पेट के कई रोगों, दांतों एवं मसूढ़ों में दर्द, इनसे खून आने, कफ, निमोनिया और खरास आदि में भी इसका प्रयोग किया जाता रहा है. फल, लीवर के रोगों में भी उपयोगी पाया गया है. पनियाला के फल में विभिन्न एंटीऑक्सीडेंट भी मिलते हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश के छठ त्योहार पर इसके फल 300 से 400 रुपये किलो तक बिक जाते हैं.  इन्हीं कारणों से इस फल को भारत सरकार द्वारा गोरखपुर का भौगोलिक उपदर्श (जियोग्राफिकल इंडिकेटर) बनाने का प्रयास जारी है. पनियाला के फलों को जैम, जेली और जूस के रूप में संरक्षित कर लंबे समय तक रखा जा सकता है. लकड़ी, जलावन और कृषि कार्यो के लिए उपयोगी है.

 पनियाला को मिला GI टैग

औषधीय गुणों से भरपूर पनियाला के लिए जीआई टैगिंग संजीवनी साबित होगी. इससे लुप्तप्राय हो चले इस फल की पूछ बढ़ जाएगी. सरकार द्वारा इसकी ब्रांडिंग से भविष्य में यह भी टेराकोटा की तरह गोरखपुर का खास ब्रांड होगा.

पूर्वांचल के लाखों किसान परिवार होंगे लाभान्वित

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के वरिष्ठ हॉर्टिकल्चर वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह ने बताया कि जीआई टैग मिलने का लाभ न केवल गोरखपुर के किसानों को बल्कि देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, बहराइच, गोंडा और श्रावस्ती के बागवानों को भी मिलेगा. ये सभी जिले समान एग्रोक्लाइमेटिक जोन (कृषि जलवायु क्षेत्र) में आते हैं. इन जिलों के कृषि उत्पादों की खूबियां भी एक जैसी होंगी.

जीआई टैग के फायदे

जीआई टैग किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले कृषि उत्पाद को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है. जीआई टैग द्वारा कृषि उत्पादों के अनाधिकृत प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है. यह किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होने वाले कृषि उत्पादों का महत्व बढ़ा देता है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में जीआई टैग को एक ट्रेडमार्क के रूप में देखा जाता है. इससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है, साथ ही स्थानीय आमदनी भी बढ़ती है. विशिष्ट कृषि उत्पादों को पहचान कर उनका भारत के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात और प्रचार-प्रसार करने में आसानी होती है.

पनियाला की बागवानी से आर्थिक लाभ

पनियाला परंपरागत खेती से अधिक लाभ देता है. कुछ साल पहले करमहिया गांव सभा के करमहा गांव में पारस निषाद के घर यूपी स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड केआर दूबे गये थे. पारस के पास पनियाला के नौ पेड़ थे. अक्टूबर में आने वाले फल के दाम उस समय प्रति किग्रा 60-90 रुपये थे. प्रति पेड़ से उस समय उनको करीब 3300 रुपये आय होती थी. अब तो ये दाम पांच से छह गुने तक हो गए हैं. लिहाजा आय भी इसी अनुरूप बढ़ गई. खास बात ये है कि पेड़ों की ऊंचाई करीब नौ मीटर होती है. लिहाजा इसका रखरखाव भी आसान होता है.

 

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