भारत में धान की खेती मुख्य रूप से खरीफ सीजन में की जाती है. देश के लाखों किसान धान की खेती करते हैं. भारत में सबसे ज्यादा धान की खेती पश्चिम बंगाल में होती है. यहां करीब 54.34 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है. यहां करीब 146.06 लाख टन धान का उत्पादन होता है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ में भी धान की खेती प्रमुखता से की जाती है. खरीफ सीजन आने वाला है और किसान बारिश से पहले धान की खेती की तैयारी शुरू कर देंगे. फसल उत्पादन में सबसे अहम भूमिका बीजों की होती है. अगर अच्छी क्वालिटी के बीजों का इस्तेमाल किया जाए तो ज्यादा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. ऐसे में धान का ज्यादा उत्पादन पाने के लिए किसानों को उन्नत किस्म के बीजों का इस्तेमाल करना चाहिए.
पूसा सुगंध 3 एक बौनी और अधिक उपज देने वाली सुगंधित बासमती धान की किस्म है. इसे उत्तर भारत के राज्यों के लिए उपयुक्त पाया गया है. इसकी खेती मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में की जाती है. धान की यह किस्म 120 दिनों में पक जाती है. इस किस्म से प्रति एकड़ औसतन 40 से 45 क्विंटल उपज प्राप्त की जा सकती है.
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धान की यह किस्म 125 दिन में पक जाती है. इसकी चमक बहुत अच्छी होती है. इसमें प्रोटीन की मात्रा 10.3 प्रतिशत पाई जाती है. धान की इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 45 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. इस किस्म को मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और ओडिशा के लिए स्वीकृत किया गया है.
धान की मकरान किस्म के दाने मध्यम और लंबे होते हैं. इसे अर्ध बौनी किस्म माना जाता है. इस किस्म की खास बात यह है कि इस पर रोग और चूसने वाले कीटों का असर नहीं होता. अब अगर इसके उत्पादन की बात करें तो इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 52 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है. यह किस्म 160 से 175 दिनों में पक जाती है.
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धान की यह किस्म जल्दी पकने वाली किस्मों में से एक है. यह किस्म लगभग 130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. यह किस्म उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा और असम राज्यों के लिए उपयुक्त पाई गई है.
धान की यह किस्म सूखे की स्थिति के लिए बहुत अच्छी है. यह बिना पानी के 21 दिनों तक जीवित रह सकती है. इसे बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है. ऐसे में यह किस्म सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकती है. इस किस्म को बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) ने विकसित किया है. इस किस्म का बीज आईआर-64 को अपग्रेड करके तैयार किया गया है. यह किस्म पहाड़ी क्षेत्रों और उन जगहों के लिए बहुत उपयोगी है जहां पानी की कमी है. यह किस्म कम बारिश और सूखे की स्थिति में भी अच्छी उपज देती है. यह बुवाई के 110 दिन बाद तैयार हो जाती है. इससे एक एकड़ में 16 क्विंटल और एक हेक्टेयर में करीब 40 क्विंटल उपज मिल सकती है.