पंजाब के इन 6 जिलों में शुरू हो गई धान की बुवाई, किसानों को सिंचाई के लिए मिलेगी 8 घंटे बिजली

पंजाब के इन 6 जिलों में शुरू हो गई धान की बुवाई, किसानों को सिंचाई के लिए मिलेगी 8 घंटे बिजली

पीएयू के कुलपति एसएस गोसल ने कहा कि मेरे विचार से किसान पूसा-44 से परहेज कर रहे हैं. ऐसे में किसान विकल्प को रूप में पीआर 116, 124 और 132 की बुवाई कर सकते हैं. इसकी अवधि 130 दिन की है. उन्होंने कहा कि पीएयू ने किसानों को 22,000 क्विंटल कम अवधि वाली किस्म के बीज दिए हैं, जो 27.5 लाख एकड़ में बोए जाएंगे.

पंजाब में धान की बुवाई. (सांकेतिक फोटो)पंजाब में धान की बुवाई. (सांकेतिक फोटो)
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jun 13, 2024,
  • Updated Jun 13, 2024, 5:22 PM IST

पंजाब के मुक्तसर, फरीदकोट, बठिंडा, मानसा, फाजिल्का और फिरोजपुर जिले में 11 जून से खेतों में धान की रोपाई शुरू हो गई है.  जबकि बाकी 17 जिलों में 20 जून से रोपाई शुरू की जाएगी. खास बात यह है कि इन जिलों में पहले धान की रुपाई इसलिए शुरू हुई, क्योंकि ये सिंचाई के लिए मुख्य रूप से नहर के पानी पर निर्भर हैं. इससे पहले पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने अप्रैल में 18 से 24 जून के बीच धान की बुवाई का प्रस्ताव दिया था. विश्वविद्यालय ने योजना बनाने और किसानों तक इसे पहुंचाने के लिए राज्य के कृषि विभाग को सिफारिशें भेजी हैं, हालांकि बुवाई एक सप्ताह पहले ही शुरू हो गई है.

हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में चरणबद्ध खेती के पीछे की वजह भूजल को बचाना और सभी 14 लाख से अधिक कृषि ट्यूबवेल को निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करना है. पंजाब में किसान लगभग 88 लाख एकड़ में ट्यूबवेल के सहारे ही सिंचाई करते हैं. सरकार ने इस साल ट्यूबवेल को 8 घंटे निर्बाध बिजली आपूर्ति की अधिसूचना और आश्वासन दे दिया है. पीएयू के निष्कर्षों के अनुसार, 1998 से 2018 की अवधि के बीच, राज्य के जल स्तर में गिरावट की औसत वार्षिक दर 0.53 मीटर थी. कुछ केंद्रीय जिलों में स्थिति और भी खराब है, जहां जल स्तर में गिरावट की दर प्रति वर्ष 1 मीटर से अधिक है.

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क्या है पंजाब उप-भूमि जल संरक्षण अधिनियम

गिरते जल स्तर को रोकने के लिए, पंजाब उप-भूमि जल संरक्षण अधिनियम 2009 में तैयार किया गया था, जिसमें 10 जून से आगे देरी से धान की बुवाई और नर्सरी स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू करने की तिथि 10 मई निर्धारित की गई थी. कानून में धान उत्पादक के लिए मानदंडों का उल्लंघन करने पर दंड का प्रावधान भी है. वर्ष 2014 में अधिनियम में संशोधन कर नर्सरी लगाने की तिथि 15 मई तथा पौध रोपण की तिथि 15 जून निर्धारित की गई. इससे पैदावार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. बल्कि वर्ष 2016 तथा 2017 में रिकॉर्ड पैदावार हुई.

क्या कहते हैं  कुलपति एसएस गोसल

पीएयू के कुलपति एसएस गोसल ने कहा कि किसान सरकार पर धान की रोपाई पहले करने का दबाव बनाते हैं, क्योंकि वे लंबी अवधि वाली किस्म पूसा-44 की खेती करते थे. लेकिन अब किसानों को घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि पीएयू द्वारा कम अवधि वाली किस्में दी जा रही हैं. उन्होंने कहा कि जून के शुष्क दिनों में वाष्पीकरण की दर सबसे अधिक होती है, क्योंकि तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहता है, इसलिए रोपाई में देरी करना बेहतर है. राज्य सरकार ने पिछले वर्ष लंबी अवधि वाली किस्म पूसा-44 पर प्रतिबंध लगाया था, जो 160 दिन में पकती है, लेकिन इस वर्ष इसमें छूट दी गई है.

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