धान की खेती भारतीय कृषि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह देश की खाद्यान्न सुरक्षा में भी एक अहम भूमिका निभाता है. जहां एक ओर जलवायु परिवर्तन और पानी की कमी जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं, वहीं दूसरी ओर किसानों को उच्च उत्पादन और कम पानी की खपत वाली किस्मों की आवश्यकता महसूस हो रही है. ऐसे में उन्नत किस्मों की खेती न केवल उत्पादन बढ़ाने में मदद करती है, बल्कि जल की बचत भी सुनिश्चित करती है. इस लेख में हम आपको कुछ उन्नत धान की किस्मों के बारे में बताएंगे जो पानी की कम खपत के साथ अधिक उत्पादन देती हैं.
ध्यान देने की बात यह है कि जलवायु परिवर्तन के कारण खेती में पानी की उपलब्धता में कमी आ रही है. ऐसे में, किसान पारंपरिक किस्मों की तुलना में उन्नत किस्मों का चयन करें, जो कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती हैं. इन किस्मों की विशेषता यह है कि वे सूखा प्रतिरोधक होती हैं और इन्हें कम सिंचाई की आवश्यकता होती है.
पूसा बासमती 1847 चावल की एक लोकप्रिय किस्म है. यह बासमती धान की एक उन्नत किस्म है. धान की यह किस्म बैक्टीरियल ब्लाइट और ब्लास्ट रोग के प्रति प्रतिरोधी है. यह किस्म अपने लंबे, पतले दानों के लिए जानी जाती है. साथ ही धान की यह किस्म अपने सुगंध और स्वाद की वजह से भी जानी जाती है.
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पूसा बासमती 1509 एक कम समय में तैयार होने वाली बासमती धान की किस्म है जिसे आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में विकसित किया गया है. धान की यह किस्म केवल 120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. वहीं औसत उपज की बात करें तो 25 क्विंटल/हेक्टेयर है. पिछले सात वर्षों के दौरान प्रति वर्ष 11.65 लाख टन औसत वार्षिक उत्पादन के साथ देश के बासमती उत्पादक जीआई क्षेत्र में ~2.68 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती की जा रही है. यह किस्म किसानों और निर्यातकों के बीच बहुत लोकप्रिय है और पिछले सात वर्षों के दौरान कुल 471 क्विंटल प्रजनक बीज का उत्पादन और बिक्री की गई है.
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स्वर्ण शक्ति धान को हैदराबाद चावल अनुसंधान निदेशालय द्वारा विकसित किया गया है. धान की यह किस्म कई रोगों और कीटों के प्रति प्रतिरोधी है. यह मध्यम अवधि की किस्म है जो 115 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है. स्वर्ण शक्ति धान से किसानों को प्रति हेक्टेयर 45 से 50 क्विंटल उत्पादन मिलता है. इतना ही नहीं स्वर्ण शक्ति धान में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, आयरन, जिंक और मैग्नीशियम जैसे कई पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं.
भूमि की तैयारी: उन्नत किस्मों की खेती के लिए भूमि की अच्छी तैयारी जरूरी होती है. अच्छे जल निकासी के लिए खेत की मिट्टी को उर्वरक और जैविक खाद से उपजाऊ बनाना चाहिए.
सिंचाई का उचित प्रबंधन: सिंचाई के दौरान यह ध्यान रखना चाहिए कि पानी की अधिक खपत न हो. ड्रिप सिंचाई जैसे विधियों का उपयोग कम पानी में अधिक फसल लेने में मदद करता है.
कीट और रोग नियंत्रण: उन्नत किस्मों के लिए कीट और रोगों का नियंत्रण भी महत्वपूर्ण है. इसके लिए जैविक कीटनाशक और फफूंदी नियंत्रण उपायों का उपयोग करें.
समय पर बुआई: उन्नत किस्मों की खेती के लिए समय पर बुआई करना जरूरी होता है. सही मौसम में बुआई से अधिक उत्पादन और कम पानी की आवश्यकता होती है.
धान की उन्नत किस्मों का चयन पानी की बचत और अधिक उत्पादन के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. इन किस्मों को अपनाकर किसान न केवल अधिक मुनाफा कमा सकते हैं, बल्कि वे जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्याओं से भी बच सकते हैं. इसलिए, किसानों को उन्नत किस्मों की ओर रुख करना चाहिए, जो उन्हें कम पानी में अधिक लाभ देने में सक्षम हों.