''मझधार में नैया डोले तो मांझी पार लगाए, मांझी जो नाव डुबोए, उसे कौन बचाए...फिल्म 'अमर प्रेम' के गाने की ये लाइनें इन दिनों प्याज किसानों पर फिट बैठ रही है. जिस पर किसानों को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है वही उन्हें चोट पहुंचा रहे हैं. एक तरफ सरकार कह रही है कि किसानों की आय डबल करनी है तो दूसरी तरफ जैसे ही कृषि उत्पादों के दाम बेहतर हो रहे हैं वैसे ही आम आदमी को राहत देने के नाम पर सरकार पूरा जोर लगाकर दाम गिरा दे रही है. उपभोक्ताओं को खुश करने के लिए किसानों को रुलाया जा रहा है. प्याज एक्सपोर्ट बैन का लिया गया फैसला इसका ताजा उदाहरण है. इस फैसले ने प्याज किसानों की कमर तोड़ कर रख दी है. नतीजतन प्याज किसान मायूस हैं. लेकिन प्याज किसानों की ये मायूसी और ये आंसू ही आने वाले समय में सरकार और आम आदमी दोनों के लिए भारी पड़ेंगे. क्योंकि कम दाम की वजह से इसकी खेती कम हो जाएगी और प्याज के दाम भी अगले साल तक लहसुन की तरह आसमान पर पहुंच जाएंगे.
सरकार को महंगाई दिख रही है लेकिन प्याज की लागत और उसकी खेती से कम होती किसानों की कमाई पर उसका ध्यान नहीं जा रहा. सरकार उन किसानों की बदौलत उपभोक्ताओं को खुश करने की कोशिश में जुटी हुई है जिनकी खेती से आय सिर्फ 28 रुपये रोजाना है. आखिर इतनी कम आय वाले किसानों के कंधों पर ही महंगाई कम करने का भार क्यों है?
पिछले पांच महीने में सरकार ने जान बूझकर प्याज के दाम घटाने वाले ऐसे कई फैसले लिए हैं जिसने किसानों की कमर तोड़ दी है. इसलिए किसान अब प्याज की खेती कम करने और बंद करने की कस्में खाने लगे हैं. अगर खेती और कम हो गई तो यकीन मानिए कि अगले साल उपभोक्ताओं और सरकार दोनों को बड़ा झटका लगने वाला है. प्याज पर बढ़ते सरकारी हस्तक्षेप और कम दाम की वजह से पांच राज्यों में बड़े पैमाने पर प्याज की खेती का रकबा कम हुआ है.
बहरहाल, आईए पहले कुछ ऐसे किसानों से मिलवाता हूं जिन्होंने प्याज की खेती कम या बंद करने का फैसला लिया है.
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तो फिर बाकी बचे 9 एकड़ में इस बार किन फसलों की खेती करेंगे? इस सवाल के जवाब में बताते हैं कि गेहूं, मक्का और चने की बुवाई होगी. ये फसलें घाटा नहीं देंगी. देवरे कहते हैं कि पिछले सप्ताह उनके पास रबी सीजन का 250 क्विंटल प्याज था, जिसे वो अब सिर्फ 680 से 700 रुपये प्रति क्विंटल पर बेच रहे हैं. अच्छे दाम की उम्मीद में प्याज स्टोर करके रखा था, तब तक सरकार ने एक्सपोर्ट बैन कर दिया. जिससे बाजार में आवक बढ़ गई और दाम गिर गए. अब अगले साल के लिए रिस्क नहीं ले सकते. इसलिए खेती कम कर दी.
यह कहानी सिर्फ कमलाकर देवरे, दत्ता नाना शेजुल और बाजीराव गागरे की ही नहीं है. महाराष्ट्र के काफी किसानों ने दाम पर बढ़ते सरकारी हस्तक्षेप की वजह से या तो प्याज की खेती कम कर दी है या फिर छोड़ने का फैसला कर लिया है. क्योंकि उन्हें नुकसान हो रहा है. महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक है. जिसकी देश के कुल उत्पादन में करीब 43 फीसदी की हिस्सेदारी है. यहीं पर सबसे ज्यादा एरिया कम हुआ है और उत्पादन में भी कमी आई है. पिछले एक साल में ही 1,37,000 हेक्टेयर एरिया घटा है और अब इस साल किसान इसे और घटा रहे हैं.
महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि हम 100 रुपये या 200 रुपये किलो प्याज नहीं बेचना चाहते, लेकिन यह भी नहीं चाहते कि किसान 2-4 रुपये किलो पर बेचने के लिए मजबूर हो. सरकार अगर दाम बढ़ने पर घटाती है तो दाम घटने पर हमारी हमारे घाटे की भरपाई भी करे. एक तरफ आप ओपन मार्केट की वकालत करते हैं तो दूसरी तरफ दाम बढ़ने पर सरकारी हस्तक्षेप भी करते हैं. किसानों के साथ दोहरी चाल क्यों? क्या सरकार सिर्फ उपभोक्ताओं के लिए बनी है, किसान उसके अपने नहीं हैं? महाराष्ट्र देश में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या वाला सूबा है, फिर भी सरकार यहां के किसानों को अपनी नीतियों से और दबाए जा रही है.
प्याज को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी के दायरे में लाने की मांग को लेकर राज्य के किसानों ने मार्च 2023 में नासिक से मुंबई तक का पैदल मार्च किया था. तब भी किसानों का कहना था कि जो भी उत्पादन लागत आती है उसके ऊपर लाभ तय करके सरकार प्याज का न्यूनतम दाम फिक्स कर दे. लेकिन, इस आंदोलन का कोई असर नहीं हुआ.
यहां के किसान एक से लेकर सात-आठ रुपये तक के औसत दाम पर करीब दो साल से प्याज बेच रहे हैं. उसके बावजूद केंद्र सरकार ने उनकी सुध नहीं ली. लेकिन जैसे ही अगस्त में दाम बढ़ने शुरू हुए उसे घटाने के लिए डंडा लेकर सामने आ गई. दरअसल, सरकार किसी भी पार्टी की रही हो, प्याज उत्पादक किसान दाम न मिलने वाली समस्या को झेलते रहे हैं. इसे आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं.
नासिक निवासी किसान दत्तात्रय शंकर दिघोले तो अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन एक दशक पहले उनके द्वारा बेचे गए प्याज की एक पर्ची उनके बेटे के पास है. उन्होंने फरवरी 2012 में 2.80 रुपये प्रति किलो की दर पर प्याज बेचा था. उनके बेटे और किसान नेता भारत दिघोले ने 'किसान तक' को इसकी रसीद उपलब्ध करवाई है. उधर, केंद्रीय कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार उस समय महाराष्ट्र में प्याज की उत्पादन लागत 353.11 रुपये प्रति क्विंटल आती थी.
इसका मतलब साफ है कि यानी उस वक्त भी किसान कम दाम की समस्या से जूझ रहे थे और अब भी उन्हें उनकी उत्पादन लागत नहीं मिल पा रही. अब इतने साल बाद भी किसान दो से 10 रुपये किलो तक पर ही प्याज बेचने को मजबूर हैं. सरकार की एक ही पॉलिसी है कि उपभोक्ताओं के लिए सस्ता प्याज चाहिए. ताकि वोटर नाराज न हों, भले ही किसानों का नुकसान क्यों न हो जाए?
वर्तमान में भी किसानों को प्याज का औसत दाम 700 से लेकर 1000 रुपये क्विंटल तक ही मिल रहा है. आरबीआई के कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर बैंकिंग ने नेशनल हॉर्टिकल्चरल रिसर्च एंड डेवलपमेंट फाउंडेशन के हवाले से अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि साल 2014 के खरीफ सीजन के दौरान महाराष्ट्र में प्याज की उत्पादन लागत 724 रुपये प्रति क्विंटल आती थी. साल 2023 की शुरुआत में किसानों ने 2 रुपये किलो भी प्याज बेचा है. मतलब इस वक्त यानी 2023 में किसानों को एक दशक पुरानी उत्पादन लागत भी नहीं मिल रही है. जबकि, किसानों का दावा दावा है कि अब प्याज की उत्पादन लागत 15 से 20 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है. क्योंकि खाद, पानी, श्रम, खेती की जुताई, बीज की कीमत और कीटनाशक आदि का खर्च काफी बढ़ चुका है.
ये तो रही बीते वक्त की बात. फिलहाल, वर्तमान में रबी सीजन वाले प्याज की रोपाई चल रही है और किसान इसकी खेती कम कर रहे हैं. महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का दावा है कि कम से कम इस साल राज्य में रबी सीजन के दौरान प्याज की खेती का रकबा पिछले साल से भी 20 फीसदी तक घट जाएगा. इसके लिए सिर्फ केंद्र सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं. केंद्र सरकार हमारी बात नहीं सुन रही है तो हम किसानों ने विरोध का यही तरीका निकाला है.
पहले सरकार ने प्याज किसानों को पहुंचाई चोट, अब किसानों के इस दांव ने सरकार की चिंता बढ़ेगी. दरअसल, उपभोक्ताओं को सस्ता प्याज देकर खुश करने वाली जो केंद्र सरकार की पॉलिसी है वो अगले साल अपना रंग दिखाएगी. जब उत्पादन कम होगा और दाम आसमान पर चले जाएंगे. दिघोले का कहना है कि अगर उपभोक्ताओं के लिए किसानों को मारा जाएगा तो कुछ वर्षों में सरकार को खाद्य तेलों और दालों की तरह प्याज भी आयात करना पड़ेगा. हम प्याज निर्यातक से प्याज आयातक देश बन जाएंगे.
जब आप किसानों को उनकी लागत भी नहीं देंगे तो वो खेती क्यों करेंगे? न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि तेलंगाना, तमिलनाडु, गुजरात और कर्नाटक के किसानों ने भी प्याज की खेती कम कर दी है. किसानों के इस अलर्ट पर अगर सरकार नहीं संभलती है तो आम आदमी को अगले साल किसानों के इस फैसले का खामियाजा भुगतना होगा.
इस साल अगस्त के बाद प्याज के दाम में इसलिए तेजी आई है क्योंकि उत्पादन कम हो गया है. किसान कई साल से कह रहे हैं कि वो खेती कम कर देंगे और आखिरकार कम दाम की वजह से उनका धैर्य टूट गया है. उन्होंने प्याज की खेती कम करने की शुरुआत पिछले साल ही कर दी थी. इस साल दायरा और घटा रहे हैं. इसकी तस्दीक केंद्रीय कृषि मंत्रालय भी कर रहा है. मंत्रालय के अंदर यह मंथन भी चल रहा है कि प्याज की खेती कैसे बढ़ाई जाए. लेकिन कड़वा सच तो यही है कि जब तक आप किसानों को सही दाम नहीं देंगे तब तक इसकी खेती नहीं बढ़ेगी. सरकार बिना अच्छा दाम दिए ही किसानों से खेती बढ़ाने की उम्मीद पाले बैठी है, जैसे कि किसान कोई चैरिटी कर रहे हैं.
पिछले एक साल में ही देश में करीब 10 फीसदी प्याज की खेती कम हो गई है. यह अलर्ट सरकार को संभलने के लिए काफी है. प्याज की खेती का रकबा 2 लाख हेक्टेयर कम हो चुका है. जिसकी वजह से उत्पादन में करीब 15 लाख मीट्रिक टन की कमी दर्ज की गई है. जो सरकार के बफर स्टॉक के डबल से भी अधिक है. इसकी वजह से अगस्त, सितंबर में आम आदमी को प्याज के बढ़े हुए दाम का ट्रेलर देखने को मिल चुका है. यह सब किसानों को अच्छा दाम न मिलने की वजह से हुआ है. इस साल तो एक्सपोर्ट बैन करके जैसे तैसे सरकार ने स्थिति संभाल ली है. लेकिन अगले साल जब रकबा और कम होगा तब क्या होगा?
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यकीन मानिए कि अगर आप एक-दो साल तक किसानों को मजबूर करके उसने कोई कृषि उपज बहुत सस्ते में खरीद लेंगे या बेचने पर मजबूर कर देंगे तो दूसरे या तीसरे साल उसका दाम बढ़ जाएगा. क्योंकि खेती कम हो जाएगी. जैसे लहसुन और अदरक के मामले में हुआ है. दोनों के दाम पिछले साल बहुत कम थे. प्याज किसान भी इस साल सरकार के सामने यही चुनौती पेश कर रहे हैं, क्योंकि उनका आरोप है कि सरकार तो उनकी बात सुन ही नहीं रही. यह चुनौती भारी पड़ने वाली है.
भारत दिघोले का कहना है कि महंगाई किसान नहीं बल्कि व्यापारी बढ़ाते हैं. इसलिए सरकार किसानों के लिए प्याज का न्यूनतम दाम और व्यापारियों के लिए अधिकतम मुनाफे का परसेंटेज फिक्स कर दे. इससे किसान और कस्टमर दोनों की समस्या का समाधान हो जाएगा. लागत के हिसाब से प्याज का कोई कम से कम दाम तय कर दीजिए कि इससे कम पर प्याज नहीं बिकेगा. ऐसा करने से किसानों को घाटा नहीं होगा. घाटा नहीं होगा तो वो अचानक इतनी खेती कम नहीं करेंगे. खेती कम नहीं होगी तो दाम स्थिर रहेंगे. दूसरी ओर व्यापारियों के लिए तय कर दीजिए कि वो 50 फीसदी से अधिक मुनाफा नहीं ले सकते. जितने दाम पर वो हमसे खरीदें उससे डबल से अधिक दाम पर किसी सूरत में न वसूलने पाएं. इससे कस्टमर को भी राहत मिलेगी.