कम पानी में पैदा होने वाली आलू की किस्में कौन-कौन सी हैं, एक क‍िलो आलू के ल‍िए क‍ितना खर्च होता है पानी?  

कम पानी में पैदा होने वाली आलू की किस्में कौन-कौन सी हैं, एक क‍िलो आलू के ल‍िए क‍ितना खर्च होता है पानी?  

Low Water Use Potato Varieties: पानी की कमी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने 2005 में सूखा सहिष्णु प्रजातियों के विकास का एक कार्यक्रम शुरू किया था. फ‍िर आलू अनुसंधान संस्थान ने कम पानी की खपत वाली तीन प्रजातियां विकसित की गईं. इनमें कुफरी थार-1, कुफरी थार-2 व कुफरी थार-3 शाम‍िल हैं. इन किस्मों को उगाने के लिए वर्ष 2020 में नोट‍िफाई किया गया. 

कम पानी में भी होगी आलू की बंपर पैदावार. कम पानी में भी होगी आलू की बंपर पैदावार.
क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Sep 06, 2024,
  • Updated Sep 06, 2024, 7:28 PM IST

जलवायु पर‍िवर्तन के दौर में अब खेती के जर‍िए भू-जल बचाने की कोश‍िश शुरू हो गई है. इसके ल‍िए धान की खेती कम करने या फ‍िर उसकी ऐसी क‍िस्मों के व‍िकास की कोश‍िश जारी है ज‍िनमें पानी की खपत कम हो. क्योंक‍ि एक क‍िलो चावल पैदा करने में करीब 3000 लीटर पानी की खपत होती है. इससे आगे बढ़कर अब सब्जी फसलों में भी पानी बचाने वाली क‍िस्मों की बुवाई के ल‍िए क‍िसानों को प्रोत्साह‍ित क‍िया जा रहा है. इसी कड़ी में अब वैज्ञान‍िकों ने आलू की कम पानी में पैदा होने वाली किस्मों का व‍िकास क‍िया है. दरअसल, अलग-अलग स्थ‍ित‍ियों में एक किलो आलू पैदा करने में 125 से 250 लीटर तक पानी की खपत होती है, इसल‍िए कम पानी वाली क‍िस्मों का व‍िकास हो रहा है.

भारत में आलू एक मुख्य सब्जी फसल है. विश्व में भारत इसका दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है. वर्ष 2020-21 में लगभग 22.4 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में 5.3 करोड़ टन आलू का उत्पादन हुआ है. कृष‍ि वैज्ञान‍िक सतीश कुमार लूथरा, पूजा मानकर, संजय रावल और विजय किशोर गुप्ता ने आलू की कम पानी उपयोग वाली प्रजातियों की जानकारी दी है.    

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क‍िन क्षेत्रों में ज्यादा पैदा होता है आलू 

वैज्ञान‍िकों ने बताया है क‍ि आलू की खेती में पानी की आवश्यकता, फसल की अवधि, जलवायु, मिट्टी के प्रकार तथा उगाई जाने वाली प्रजाति के अनुसार अलग-अलग होती है. उथली जड़ों वाली इस फसल में पूरी फसल अवधि में लगभग 400 से 600 मिलीमीटर पानी की आवश्यकता होती है. लू के मौसम में हिमालय के पर्वतीय तथा दक्षिण पठारी क्षेत्रों को छोड़कर देश के सभी भागों में बार‍िश कम होती है. राष्ट्रीय स्तर पर लगभग 90 फीसदी आलू क्षेत्रफल उत्तरी मैदानी भागों में है. यहां रबी के मौसम में आलू उगाया जाता है. इस समय बरसात कम होती है. इसल‍िए अच्छी फसल के लिए सिंचाई की भरपूर जरूरत होती है. 

क‍ितना पानी खर्च होगा 

आलू की फसल सूखे के लिए संवेदनशील होती है. इसल‍िए पानी की कमी के प्रति सहिष्णु आलू की प्रजाति का विकास जलवायु परिवर्तन के असर को सहन करने के लिए एक अनुकूल रणनीति है. पानी की कमी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने 2005 में सूखा सहिष्णु प्रजातियों के विकास का एक कार्यक्रम शुरू किया था. फ‍िर आलू अनुसंधान संस्थान ने कम पानी की खपत वाली तीन प्रजातियां विकसित की. 

इनमें कुफरी थार-1, कुफरी थार-2 व कुफरी थार-3 हैं. इन किस्मों को उगाने के लिए वर्ष 2020 में नोट‍िफाई किया गया. नई क‍िस्मों का एक क‍िलो आलू पैदा होने में लगभग 80-100 लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है. इस तरह इनमें पानी की काफी बचत हो जाती है. अब कम पानी वाले क्षेत्रों में इन क‍िस्मों को उगाकर अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है. 

कुफरी थार-1 

यह मुख्य मौसम की, अच्छी उपज वाली और कम पानी उपलब्धता वाले क्षेत्रों की आलू की प्रजाति है. यह कुफरी बहार और सीपी-1785 के बीच क्रॉस से एक क्लोनल चयन है. इसमें उच्च पानी के उपयोग की दक्षता है. इसके पौधे लंबे और पिछेता झुलसा के लिए मध्यम प्रतिरोधक क्षमता रखते हैं. 

इसके कंद सफेद-क्रीमी रंग के, अंडाकार और उथले से मध्यम आंखों वाले होते हैं. इनका गूदा सफेद-क्रीमी रंग का होता है तथा इनकी गुणवत्ता अच्छी होती है. इनमें शुष्क पदार्थ लगभग 18 फीसदी होता है. इसकी नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटाश की आवश्यकता लगभग 180, 40 व 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. यह प्रजाति उत्तर प्रदेश और ओडिशा में 90 दिनों की अवधि में 30-35 टन प्रति हेक्टेयर की उपज देती है.

कुफरी थार-2

यह प्रजाति उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और छत्तीसगढ़ के कम पानी वाले क्षेत्रों में उपजाने के लिए उपयुक्त है. इसके पौधे मध्यम और सशक्त होते हैं. यह पिछेता झुलसा के लिए प्रतिरोधी है. यह उच्च सूखा सहिष्णु फसल है. इसमें प्रति किलोग्राम 74 लीटर पानी की ही खपत होती है. 

इस प्रजाति के कंद अच्छी गुणवत्ता वाले, हल्के पीले रंग के, अंडाकार, उथली आंखों और हल्के पीले गूदे वाले होते हैं. इसमें 20-21 फीसदी तक शुष्क पदार्थ होता है. यह कम पानी की उपलब्धता में 30 टन प्रति हेक्टेयर तक की उपज दे सकती है. इसमें सामान्य सिंचाई की अवस्था में 35 टन प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देने की क्षमता है. 

कुफरी थार-3

यह प्रजाति भारत के उत्तरी मैदानों विशेषतौर पर हरियाणा व राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ के लिए उपयुक्त है. कुफरी थार-3 का विकास कुफरी ज्योति एवं जेएन 2207 के बीच क्रॉस से किया गया है. इस प्रजाति ने सामान्य सिंचाई और पानी की कमी में बेहतर प्रदर्शन किया है. परीक्षणों के आधार पर कुफरी थार-3 ने प्रति किलोग्राम 38 लीटर पानी की बचत की. 

इस प्रजाति के कंद सफेद रंग के, अंडाकार, मध्यम-गहरी आंखों वाले होते हैं. इनका गूदा क्रीम रंग का होता है. यह किस्म पिछेता झुलसा रोग के प्रति कुछ हद तक प्रतिरोधी है. इसकी भंडारण क्षमता भी अच्छी है. इसके कंदों में लगभग 18 फीसदी शुष्क पदार्थ होते हैं. इस प्रजाति से 90 दिनों की अवधि में लगभग 32-34 टन प्रति हेक्टेयर की उपज प्राप्त की जा सकती है. 

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