Linseed farming: रबी मौसम में कम लागत और कम मेहनत में करें अलसी की खेती, जानिए बेहतर किस्में और खेती के टिप्स

Linseed farming: रबी मौसम में कम लागत और कम मेहनत में करें अलसी की खेती, जानिए बेहतर किस्में और खेती के टिप्स

Linseed farming: अलसी को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुपर फूड का दर्जा दिया गया है. इस चमत्कारिक फ़सल अलसी की खेती कभी बड़े पैमाने पर होती थी, लेकिन अब बहुत कम हो गई है. वर्षा आधारित अंसिचित दशा में अलसी की खेती काफी लाभकारी है, क्योंकि इसमें ज्यादा देखरेख और खाद पानी की जरूरत नहीं होती है. आज रबीनामा जानिए अलसी की बेहतर किस्में और खेती के टिप्स...

किसान अलसी की खेती से कर सकते हैं बंपर कमाईकिसान अलसी की खेती से कर सकते हैं बंपर कमाई
जेपी स‍िंह
  • New Delhi,
  • Oct 17, 2023,
  • Updated Oct 17, 2023, 2:00 PM IST

रबीनामा: तिलहन फसलों में अलसी दूसरी सबसे अहम फसल है. इसका पूरा पौधा आर्थिक महत्व का होता है. इसके तने से लिनेन नामक बहुमूल्य रेशा प्राप्त होता है और इसके बीज का इस्तेमाल तेल बनाने के साथ-साथ औषधीय रूप में भी किया जाता है. आयुर्वेद में अलसी को दैविक भोजन माना गया है. इंग्लिश में इसे लिनसीड या फ्लेक्ससीड कहते हैं. यह हाई क्वालिटी वाला एंटी ऑक्सीडेंट है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ता है. अलसी के बीजों में ओमेगा-3 फैटी एसिड प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. अलसी का इस्तेमाल ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, हार्ट स्ट्रोक, डायबिटीज, मोटापा, गठिया, अवसाद, दमा और यहां तक कि कैंसर जैसे रोगों में भी लाभकारी माना गया है. इसलिए विश्व स्वास्थय संगठन द्वारा इसको सुपर फूड का दर्जा दिया गया है.

ऐसी चमत्कारिक फसल अलसी की खेती जो कभी बड़ै पैमाने पर होती थी, अब बहुत कम हो गई है. वर्षा आधारित अंसिचित दशा में अलसी की खेती काफी लाभकारी है क्योंकि इसमें ज्यादा देखरेख और खाद पानी की जरूरत नहीं है. रबीनामा के माध्यम से अलसी की खेती कैसे फायदेमंद है और इसकी खेती कैसे करें, इसकी जानकारी लेंगे.

कम पानी वाले क्षेत्र के लिए बेहतर फसल

दरअसल, अलसी के तेजी से घटे रकबे के बावजूद, दुनिया में इसके उत्पादन में भारत का स्थान तीसरा है. पहले स्थान पर कनाडा और दूसरे स्थान पर चीन है. भारत में मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, राजस्थान, ओडिशा, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में इसकी खेती की जाती है. अलसी की फसल के लिए काली, भारी और दोमट मटियार मिट्टी काफी उपयुक्त मानी जाती है. अलसी एक ऐसी फसल है जिसे किसान कम पानी वाले क्षेत्र में उगा सकते हैं. सिंचाई दशा में ये फसल एक से दो पानी में तैयार हो जाती है.

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कैसे फायदेमंद है अलसी की खेती?

इस फसल पर कोई कीट नहीं लगता और मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों का भी इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. इस फसल को जंगली जानवर और नीलगाय नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. इस फसल की खेती चना, मटर, जौ के साथ मिश्रित फसल के रूप में की जा सकती है. इसमें अन्य फसलों की तुलना में आधी मेहनत और आधी लागत लगती है. अलसी के पौधे के तने के रेशे की मांग देश-विदेश में बहुत अधिक है. इसके बीजों में 33 से 45 प्रतिशत तेल, 20 से 30 प्रतिशत प्रोटीन और 04 से 08 प्रतिशत फ़ाइबर पाया जाता है.

असिंचित दशा में अलसी की बेहतरीन किस्में

सामान्य तौर पर असिंचित क्षेत्रों में अक्टूबर के पहले पखवाड़े में और सिंचित क्षेत्रों में नवंबर के पहले पखवाड़े में इसकी बुवाई होती है. अलसी की बुआई के लिए 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से करनी चाहिए. अलसी की बेहतरीन किस्मों की बात करें, तो अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना अलसी के अनुसार वर्षा आधारित और अंसिंचित दशा के लिए पद्मनिया, लक्ष्मी-27, शारदा, जेएलएस-73, जेएलएस-66, जेएलएस-67, जेएलएस-95, इंद्रा अलसी-32, कार्तिकेय, दीपिका, मऊ आज़ाद अलसी-2 बीयूटी अलसी-किस्में हैं जो बेहतर उपज देती हैं. इन किस्मों की पैदावार प्रति एकड़ 05 से 06 क्विंटल तक होती है.

सिंचित में लगाएं ये अलसी की किस्में

अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना, अलसी के अनुसार सिंचित क्षेत्रों के लिए पार्वती सुयोग, जेएलएस-23, मऊ आज़ाद अलसी-1, पूसा-2, पीकेडीएल-41, टी-397 आदि किस्में प्रमुख हैं. इन किस्मों को सिंचित क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है. इन किस्मों को लगभग किसी भी क्षेत्र में उगाया जा सकता है और इनकी उपज 07 से 08 क्विंटल प्रति एकड़  मिल जाती है. इसके अलावा अलसी की कई अन्य उन्नत किस्में हैं जैसे - आर-7 (जवाहर-7), आर-1 (जवाहर-1), किरण, इंदिरा अलसी-32, आरएलसी-143, आरएलसी-161, आरएलसी-153 और आरएलसी-148 किस्में  जिनकी  किसान खेती कर सकते हैं.

अलसी की उतेरा तकनीक से बुवाई

असली की उतेरा विधि से बुवाई धान उत्पादक क्षेत्रों में प्रचलित है. धान की खेती में नमी का उपयोग करने के लिए धान के खेत में अलसी बोई जाती है. इस विधि में अलसी को धान की खड़ी फसल में छिड़क दिया जाता है. परिणामस्वरूप, धान की कटाई से पहले ही अलसी अंकुरित हो जाती है. अलसी की फसल संचित नमी से ही पककर तैयार होती है. अलसी की इस विधि को पैरा/ उतेरा विधि कहते हैं. इस विधि का ज्यादा इस्तेमाल छत्तीसगढ़ सहित उन क्षेत्रों में की जाती है जहां कृषि पूरी तरह से वर्षा आधारित है. वहां इस विधि से खेती है जहां सिंचाई के सीमित साधन होने के कारण रबी मौसम में खेत खाली रहते हैं या परती रहते हैं. इस तकनीक से ऐसे क्षेत्रों के लिए सघन खेती को प्राथमिकता दी जाती है. उतेरा खेती का मुख्य उद्देश्य खेत में उपलब्ध नमी का उपयोग करना है. यह अगली फसल के अंकुरण और वृद्धि के लिए किया जाता है. 

सामान्य दशा में ऐसे बोएं अलसी

अगर सिंचित और समान्य दशा में अलसी बुवाई करनी है तो बीज को भूमि में 02 से 03 सेंमी की गहराई पर बोना चाहिए. बुवाई से पहले बीज को कार्बेन्डाजिम की 2.5 से 03 ग्रा. मात्रा प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिए. अलसी की खेती के साथ एक और अच्छी बात ये है कि इसमें ज्यादा सिंचाई की ज़रूरत नहीं होती. अच्छे उत्पादन के लिए विभिन्न अवस्थाओं में 02 से 03 सिंचाई ही काफी है. अलसी की फसल को सिंचित अवस्था में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश क्रमशः 32:16:16 किग्रा/एकड़ देना चाहिए.

नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई से पहले टॉप ड्रेसिंग के रूप में और शेष नाइट्रोजन की मात्रा पहली सिंचाई के तुरंत बाद देनी चाहिए. अलसी एक तिलहन फसल है जिसकी अधिक उपज प्राप्त करने के लिए 10 किलोग्राम/एकड़ सल्फर भी डालना चाहिए. अलसी को असिंचित अवस्था में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश क्रमशः 16:8:8 किग्रा/एकड़ प्रयोग करें. बुवाई से पहले सीड ड्रिल से 02-03 सेमी. उर्वरक की पूरी मात्रा गहराई पर देनी चाहिए.

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इस तरह विलुप्ति की कगार पर पहुंचती जा रही अलसी की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. आप भी आने वाले दिनों में इसकी बढ़ती मांग को ध्यान में रख कर अलसी की जैविक खेती कर सकते हैं और इसकी ऊंची क़ीमत पा सकते हैं.

 

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