देश में सदियों से गन्ने के रस से गुड़ बनाने की परंपरागत विधि प्रचलित है. ग्रामीण स्तर पर यह किसानों के लिए, ग्रामीण युवाओं के लिए बहुत अच्छा व्यापार है, लेकिन परंपरागत तरीके से गुड़ बनाने में जो लागत आती है, और जो क्वालिटी बनाते हैं, उसमें बहुत सुधार की जरूरत है. दरअसल, टेक्नोलॉजी के विकास के साथ कई ऐसे संसाधन और तकनीक विकसित हुई हैं, जिसका फायदा किसानों को मिल रहा है. भारतीय गन्ना शोध संस्थान, लखनऊ ने गुड़ बनाने की बेहतर तकनीक विकसित की है जिसमें लागत आधी और क्वालिटी बेहतर की जा सकती है. गुड़ बनाने में नई तकनीकों और विधियों को अपनाकर कम लागत में अच्छी क्वालिटी का गुड़ बनाकर सालाना लाखों की कमाई की जा सकती है.
भारतीय गन्ना शोध संस्थान, लखनऊ के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. दिलीप कुमार ने किसान तक से कहा कि किसानों को गुड़ बनाना है, तो इसमें नई तकनीकों को समाहित करके गुड़ की मात्रा और गुणवत्ता दोनों को बढ़ाया जा सकता है. इससे उन्हें बेहतर मूल्य मिल सकता है. उन्होंने बताया कि भारतीय गन्ना शोध संस्थान, लखनऊ ने प्रतिदिन 10 क्विंटल गुड़ बनाने वाली तीन भट्टियों वाली मॉडर्न गुड़ यूनिट विकसित की है. इस तकनीक माध्यम से गन्ने का अधिक रस के साथ स्वच्छ और बेहतर क्वालिटी का गुड़ बनाकर अधिक लाभ कमाया जा सकता है.
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कृषि वैज्ञानिक का कहना है कि मॉडर्न गुड़ यूनिट बनाने के लिए भट्टी और गन्ना क्रशर के लिए 100 वर्ग मीटर क्षेत्र वाला कमरा जरूरी है. साथ ही गन्ना स्थानांतरण और सुखाने के लिए 200 वर्ग मीटर की जगह की जरूरत होती है. गुड़ बनाने की प्रक्रिया में सबसे पहली मशीन है क्रशर, जिससे गन्ने का रस निकाला जाता है. इसके लिए सबसे पहले गन्ने की कटाई के समय, उसकी अच्छी तरह से सफाई करनी चाहिए. इसके अलावा, गन्ने की जड़ें भी साफ होनी चाहिए. गन्ना कटाई के 6 घंटे बाद और 12 घंटे के पहले इसकी पेराई करना जरूरी है, जिससे गन्ने के रस की गुणवत्ता बनी रहती है. इसके साथ ही, गन्ने की ब्रिक्स-रीडिंग को 20 से 21 के बीच रखना चाहिए, जिससे बेहतर क्वालिटी का गुड़ बनाया जा सकता है.
डॉ दिलीप ने बताया, बाजार में मॉडर्न गन्ना क्रशर मशीन आ गई है जो 100 किलो गन्ने से 65 से 70 किलो गन्ना रस निकालती है जबकि पुरानी क्रशर मशीन से 45 किलो गन्ना रस ही प्राप्त होता था. उनका कहना था कि मशीन 10 हॉर्सपावर की है जिसे आसानी से चला सकते हैं. उन्होंने बताया कि गन्ने का रस निकालने के बाद बारी आती है, इसे उबालकर सुखाने की, जिसके लिए इस संस्थान ने भट्टी में भी आधुनिक प्रयोग किए हैं. इसमें तीन लेयर वाली स्पेशल भट्ठी है जो से आपको कम ऊर्जा में, कम समय में गुड़ तैयार कर देती है. उन्होंने बताया कि गुड़ बनाने में जिस काम में पहले डेढ़ से 2 घंटे लगते थे, उसे मात्र 30-45 मिनट में कर लिया जाता है.
आमतौर पर गन्ने के रस को उबालने के दौरान, इसकी सफ़ाई और रंग बेहतर करने के लिए, कई केमिकल भी मिलाए जाते हैं. लेकिन संस्थान के कृषि वैज्ञानिक दिलीप कुमार की सलाह है कि केमिकल की जगह सिर्फ़ वानस्पतिक शोधक से ही बेहतर सफ़ाई संभव है. इसके लिए वो जंगली भिंडी के तने का इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने कहा कि 1 हज़ार लीटर गन्ने के रस की गंदगी निकालने के लिए 2 किलो भिंडी या फालसा के रस को कड़ाहे में डालना चाहिए और गर्म करते समय जो अशुद्ध पदार्थ आए, उन्हें 15 मिनट के अंदर निकाल दें. गुड़ में कठोरता यानी ठोसपन लाने के लिए अरंडी या मूंगफली का 200 मिली तेल डालना चाहिए. गन्ने के रस का तापमान 97 डिग्री हो जाए, उस समय 250 ग्राम चूना डालें. इससे गुड़ का पीएच मान 6.50 से 5.50 तक आ जाता है. इससे गुड़ का रंग बढ़िया होता है और उसकी स्टोरेज क्षमता भी बढ़ जाती है.
डॉ दिलीप कुमार का कहना है कि आज जमाना वैल्यू एडिशन का है. यानी अपने प्रोडक्ट में कुछ दूसरी चीज़ें जोड़ कर उसकी क्वालिटी कई गुना बेहतर करना जरूरी है ताकि मांग बढ़े. इसके लिए भी आप अपने गुड़ में सौंठ, बादाम, मुंगफली, तिल, अलसी, हल्दी, आजवायन या आंवला जैसी चीज़ें मिला सकते हैं. इसके लिए सस्थान से ट्रेनिग लेकर 200 से लेकर 250 किलो वाले गुड़ को भी बनाया जा सकता है. अगर कोई किसान अपने गांव में, गुड़ बनाने की ऐसी यूनिट लगाकर अपना व्यवसाय खड़ा करना चाहता है तो इस प्रकार की यूनिट पर 15 लाख की लागत आएगी. इससे हर दिन 10 क्विंटल गुड़ बनाया जा सकता है. अगर इस यूनिट का इस्तेमाल साल में 200 दिन किया जाए तो 2000 क्विंटल गुड़ बनाकर और खर्च काटकर सालना 35 से 40 लाख रुपये कमा सकते हैं.
अगर टैग लगाकर ब्रैंडिंग के साथ गुड़ बेचना चाहते हैं तो, आपको खाद्य विभाग से ट्रेड लाइसेंस का पंजीकरण करवाना होगा. आप 200-500 ग्राम तक के बेहतर पैकेट्स बना कर इसे मार्केट में उतार सकते हैं. इस तरह आप भी अपने गन्ने से खुद अच्छी गुणवत्ता वाला गुड़ बना कर, अधिक मुनाफ़ा कमा सकते हैं.
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भारतीय गन्ना शोध संस्थान विकसित यूनिट है, जहां आकर आप पूरी तकनीक और विधियां सीख सकते हैं. संस्थान ट्रेनिंग देता है, प्रैक्टिकल करवाता है अगर कोई आपकी यूनिट लगवाना चाहते हैं तो इसमें आपकी पूरी मदद भी करता है. अगर कोई स्टार्ट-अप या कोई किसान इस व्यवसाय को करना चाहता है तो भारतीय गन्ना शोध संस्थान, लखनऊ का एग्री बिजनेस इनक्यूबेशन सेंटर इच्छुक किसान संगठन एफपीओ युवा को सपोर्ट करता है. इसके लिए तकनीक ट्रेनिंग के साथ नई तकनीक, उद्योग स्थापित करने के लिए मार्गदर्शन और उनके उत्पाद को मार्केटिग में सपोर्ट करता है.