भारत ने चावल उत्पादन में तोड़ा चीन का रिकॉर्ड, ताइवान ने की मदद...कामयाबी पर अमेर‍िका की मुहर

भारत ने चावल उत्पादन में तोड़ा चीन का रिकॉर्ड, ताइवान ने की मदद...कामयाबी पर अमेर‍िका की मुहर

Rice Production Record: चीन को पीछे छोड़कर चावल उत्पादन के मामले में भारत ने जो र‍िकॉर्ड बनाया है वह न‍िश्च‍ित तौर पर क‍िसानों और हमारे वैज्ञान‍िकों की बड़ी मेहनत का फल है. भारत की इस सफलता के पीछे बहुत बड़ा हाथ ताइवान और इंटरनेशनल राइस इंस्टीट्यूट का भी है. ज‍िसका ज‍िक्र बेहद जरूरी है.

भारत में क‍ितना चावल पैदा होता है? भारत में क‍ितना चावल पैदा होता है?
ओम प्रकाश
  • New Delhi,
  • Dec 31, 2025,
  • Updated Dec 31, 2025, 3:56 PM IST

चावल के क्षेत्र में वर्षों से चली आ रही चीन की बादशाहत को भारत ने ध्वस्त कर दिया है. हम चीन को पीछे छोड़कर चावल उत्पादन के मामले में दुनिया में पहले नंबर पर पहुंच गए हैं. विश्व के कुल चावल उत्पादन में भारत का शेयर 28 फीसदी से भी अध‍िक हो गया है. अमेरिका के कृषि विभाग (USDA) ने भी भारत की इस कामयाबी का लोहा मान लिया है. उसने दिसंबर 2025 की अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत का चावल उत्पादन 152 मिलियन मीट्रिक टन हो गया है, जबकि चीन का उत्पादन 146 मिलियन मीट्रिक टन है. इस तरह भारत दुनिया का 'राइस किंग' बन गया है. इस रिकॉर्ड के साथ ही उन लोगों को अपना सामान्य ज्ञान दुरुस्त करना पड़ेगा जो वर्षों से चीन को दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश जानते और पढ़ते आए हैं. दिलचस्प बात यह है कि भारत की इस सफलता में ताइवान का बड़ा योगदान है.

भारत में प्राचीन काल से चावल उगाया और खाया जाता रहा है. जब भी चावल की उत्पत्ति की बात होती है, भारत का नाम सबसे आगे आता है. दुनिया में 1,23,000 प्रकार के चावल हैं, जिनमें से लगभग 60,000 भारत के हैं. यह र‍िकॉर्ड बताता है क‍ि चावल के मामले में भारत काफी समृद्ध रहा है, लेकिन उत्पादन के मामले में हम लंबे समय से चीन से बहुत पीछे थे. पहली हमने उसे पीछे छोड़ा है. इंटरनेशनल राइस इंस्टीट्यूट में साउथ एश‍िया रीजनल सेंटर के डायरेक्टर डॉ. सुधांशु सिंह का कहना है क‍ि दुन‍िया के सबसे बड़े चावल उत्पादक के रूप में भारत का स्थाप‍ित होना न‍िश्च‍ित तौर पर एक बड़ी उपलब्ध‍ि है. दुन‍िया के 172 देशों में भारत का चावल एक्सपोर्ट होता है. चावल भारत की व‍िदेश नीत‍ि का भी एक बड़ा टूल है. 

चावल से कमाई

भारत ने 2024-25 में रिकॉर्ड  450,840 करोड़ रुपये की कृषि उपज का एक्सपोर्ट किया, जिसमें सबसे ज्यादा करीब 24 फीसदी हिस्सेदारी चावल की है. हमने बासमती और गैर बासमती चावल एक्सपोर्ट करके एक साल में 1,05,720 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा अर्जित की. इससे पता चलता है कि चावल हमारी इकोनॉमी के लिए भी कितना महत्वपूर्ण है.

ताइवान का योगदान

आजादी के वक्त हम सालाना महज 20.58 म‍िल‍ियन मीट्र‍िक टन चावल उत्पादन कर रहे थे और 2025 में 152 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुंच गए. चावल उत्पादन के मामले में यह जो र‍िकॉर्ड बना है वह न‍िश्च‍ित तौर पर क‍िसानों और हमारे वैज्ञान‍िकों की बड़ी मेहनत का फल है. लेक‍िन, भारत में चावल की खेती की इस सफलता के पीछे बहुत बड़ा हाथ ताइवान का भी है. ज‍िसका ज‍िक्र बेहद जरूरी है. दरअसल, 60 के दशक में भारत अन्न की कमी से जूझ रहा था. उस वक्त यहां लंबे तने वाली धान की पारंपरिक किस्में ही हुआ करती थीं. तब यहां प्रत‍ि हेक्टेयर चावल की उपज लगभग 800 क‍िलो ही थी.

तब तक रासायन‍िक उर्वरक के तौर पर यूर‍िया आ चुका था. यूर‍िया और ज्यादा पानी के इस्तेमाल से उत्पादन बढ़ जाता था. लेक‍िन, खाद-पानी का फायदा उठाने के लिए बौनी और कड़े तने वाली किस्मों की जरूरत थी, जो भारत के पास नहीं थी. भारतीय क‍िस्मों में खाद और पानी का अच्छा इस्तेमाल करने पर धान जल्दी ग‍िर जाता था, क्योंक‍ि उसका तना लंबा था. तब बौने क‍िस्म की जरूरत लगने लगी, ताक‍ि उत्पादन बढ़े और खाद्यान्न संकट का समाधान हो.

ताइवान भारत की इस जरूरत को पूरा करने के ल‍िए आगे आया. उसने अपने यहां उगने वाली बौने धान की प्रजाति ताइचुंग नेटिव-1 (TN1-Taichung Native-1) भारत को द‍िया. इसने भारतीय कृषि क्षेत्र की काया पलट दी. ताइचुंग नेटिव-1 ने हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. ताइवान में विकसित टीएन-1 को दुनिया में चावल की पहली अर्ध-बौनी किस्म माना जाता है.

आईआर-8 बदल दी दुनिया

देश में धान की दूसरी बौनी किस्म 'आईआर-8' आई. ज‍िसे 1968 में भारत को इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने द‍िया. इसके जर‍िए तेजी से उत्पादन उत्पादन बढ़ने की शुरुआत हो गई. इसकी क्रांतिकारी उत्पादकता के कारण इसे "मिरेकल राइस" (Miracle Rice) कहा जाता है. उसके बाद 1969 में हमारे वैज्ञानिकों ने इन प्रजातियों से क्रॉस ब्र‍िड‍िंग की शुरुआत की. ओडिशा में चावल की एक किस्म थी टी-141, ज‍िसका ताइचुंग नेटिव-1 से क्रॉस ब्रिड‍िंग करके 'जया' नाम का धान तैयार किया गया, जो भारत में विकसित चावल की पहली बौनी किस्म है. इसका तना 150 सेंटीमीटर से घटकर 90 का हो गया. इस कोश‍िश से उत्पादन में भारी उछाल आया. इसके बाद भारत ने चावल के क्षेत्र में मुड़कर नहीं देखा. 

बासमती की कामयाबी 

भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल उत्पादक भी है. बासमती चावल का एक्सपोर्ट भी 50 हजार करोड़ रुपये के पार हो गया है. आज भारत के बासमती चावल की क‍िस्म की एक अलग वैश्व‍िक मार्केट व‍िकस‍ित हो चुकी है. दुन‍िया के सबसे लंबे चावल का र‍िकॉर्ड भी भारत के पास है. पूसा बासमती-1121 (PB 1121) के नाम यह र‍िकॉर्ड है. दावा है क‍ि ब‍िना इस क‍िस्म का ब‍िना पका चावल 9 एमएम और पकने के बाद 15 से 22 एमएम तक हो जाता है. भारत में बासमती के अलावा कम से कम 15 और चावल की खास क‍िस्में हैं ज‍िन्हें जीआई (Geographical Indication) टैग हास‍िल है. 

भारत के सामने चुनौती

चावल उत्पादन और एक्सपोर्ट में नंबर वन होने की बड़ी सफलता के बावजूद अभी एक मामले में भारत बहुत पीछे है. भारत में धान की खेती का दायरा चीन से बड़ा है, फ‍िर भी प्रति हेक्टेयर उपज के मामले में हम चीन से बहुत पीछे हैं. केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय की र‍िपोर्ट के मुताब‍िक आजादी के बाद 1950-51 में हम प्रत‍ि हेक्टेयर स‍िर्फ 668 क‍िलो चावल पैदा करते थे, जो 1975-76 में 1235 क‍िलो तक पहुंच गया. क्यों‍क‍ि तब तक बौनी क‍िस्मों का धान आ चुका था और खाद का इस्तेमाल बढ़ने लगा था. साल 2000-01 में उपज 1901 क‍िलो प्रत‍ि हेक्टेयर थी, फिर इसका आंकड़ा 2021-22 में 2809 क‍िलोग्राम तक पहुंचा. 

यूएसडीए के मुताबिक 2025-26 में भारत में धान की औसत उपज प्रति हेक्टेयर 4390 किलोग्राम हो जाएगी. हालांकि यह भी विश्व औसत से कम है. जो हमारे ल‍िए च‍िंता की बात है. प्रत‍ि हेक्टेयर उपज के मामले में अगर हम चीन के 7100 क‍िलो प्रत‍ि हेक्टेयर के बराबर हो जाएं तो असल मायने में यह सबसे बड़ी सफलता होगी, क्योंक‍ि चावल उत्पादन में पानी की भारी खपत होती है. 

इसे भी पढ़ें: AQI: 6 साल में स‍िर्फ 9 दिन ही साफ रही द‍िल्ली की हवा, बाकी समय प्रदूषण का पहरा....ज‍िम्मेदार कौन?   

इसे भी पढ़ें: ICAR-ASRB में इतना बड़ा 'कांड' होने के बावजूद क्यों दर्ज नहीं कराई गई FIR, कौन देगा इन सवालों के जवाब?

MORE NEWS

Read more!