
आज साल 2025 का आखिरी दिन है और कई राज्यों में ठंड का प्रकोप तेज है. ऐसे में हाल ही में कृषि वैज्ञानिकों ने मौजूदा मौसम और फसलों की स्थिति को देखते हुए किसानों के लिए सलाह जारी की है. इस सलाह में मुख्य रूप से देर से बोई गई गेहूं की फसल पर खास ध्यान देने को कहा गया है, जबकि सरसों, चना, सब्जी और दलहनी फसलों के लिए भी जरूरी दिशा-निर्देश दिए गए हैं. वैज्ञानिकों ने एडवाइजरी में कहा है कि जिन किसानों ने गेहूं की बुवाई देर से की है और फसल की उम्र 21 से 25 दिन हो चुकी है, उन्हें अब पहली सिंचाई फसल की जरूरत के अनुसार करनी चाहिए. इसके 3 से 4 दिन बाद नाइट्रोजन की शेष मात्रा का छिड़काव करना फसल की बढ़वार के लिए लाभकारी रहेगा.
कृषि वैज्ञानिकों की ओर से सामान्य सलाह भी दी गई है कि गेहूं में यूरिया की टॉप ड्रेसिंग हमेशा सिंचाई से ठीक पहले ही की जाए, ताकि पौधे ज्यादा से ज्यादा पोषक तत्वों काे सोख सकें. गेहूं की फसल में इस समय दीमक का खतरा भी बना हुआ है. अगर खेत में दीमक का प्रकोप दिखाई दे तो किसान क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी की 2 लीटर मात्रा को 20 किलोग्राम बालू में मिलाकर शाम के समय खेत में छिड़काव करें और इसके बाद हल्की सिंचाई जरूर करें. इससे दीमक पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है.
देशभर में गेहूं की बुवाई इस समय अच्छी रफ्तार से चली और पिछले साल की तुलना में कुल रकबे में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. मॉनसून के बाद मिट्टी में मौजूद नमी ने फसल के लिए अनुकूल माहौल बनाया है. हालांकि, पंजाब और हरियाणा के कुछ इलाकों में धान की देर से कटाई और अधिक बारिश के कारण गेहूं की बुवाई में थोड़ी देरी जरूर हुई है, लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर किसान तय समय सीमा के भीतर बुवाई पूरी कर पाए. गेहूं का रकबा बढ़ने और मौसम अनूकूल रहने के चलते पिछली बार से ज्यादा उत्पादन का अनुमान है.
सामान्य सलाह में कृषि वैज्ञानिकों ने कहा है कि गेहूं किसान नाइट्रोजन की पूरी मात्रा बुवाई के 40 से 45 दिन के भीतर जरूर दे दें. उर्वरक, सिंचाई, कीटनाशक और शाकनाशी का संतुलित इस्तेमाल करें, ताकि लागत कम रहे और उत्पादन बेहतर हो. सिंचाई से पहले मौसम पूर्वानुमान देखने की भी सलाह दी गई है, ताकि बारिश की स्थिति में गैर-जरूरी सिंचाई से बचा जा सके.
इसके अलावा गेहूं की फसल में रतुआ रोग की नियमित निगरानी जरूरी बताई गई है. संक्रमण के लक्षण दिखने पर तुरंत नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या राज्य कृषि विश्वविद्यालय से संपर्क करने को कहा गया है. सरसों की फसल में सफेद रतुआ और चेपा की निगरानी, चना और सब्जियों में कीट नियंत्रण तथा आलू, टमाटर और प्याज में रोग प्रबंधन की सलाह भी वैज्ञानिकों ने दी है.