पंजाब में लगातार बढ़ते पारे ने किसानों के सामने कई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. धान की बुवाई का सीजन शुरू हो चुका है लेकिन यहां पर मजदूर चिलचिलाती धूप में धान की बुवाई करने से कतरा रहे हैं. इसके अलावा पांच जून से गर्मी और लू के मौसम के चलते मजदूरी की लागत में भी इजाफा हुआ है. किसान संगठनों के अनुसार सरकार ने इस साल रोपाई की तारीख 1 जून की थी लेकिन इसके बाद भी भीषण गर्मी के चलते बुवाई धीमी रही है.
अखबार द ट्रिब्यून ने कंसोर्टियम ऑफ इंडियन फार्मर्स एसोसिएशन के सतनाम सिंह बेहरू के हवाले से लिखा है कि मई में भारत-पाकिस्तान सीमा संघर्ष के चलते मजदूर पंजाब आने से हिचक रहे थे. अब इतनी गर्मी के समय में मजदूर राज्य में आने लगे हैं. लेकिन गर्मी की वजह से धान की रोपाई मुश्किल हो रही है. बेहरू ने बताया कि प्रवासी मजदूर सस्ते हैं और अपने दुबले-पतले शरीर की वजह से वो कीचड़ भरे, पानी से भरे धान के खेतों में कहीं ज्यादा कुशलता से काम करते हैं.
बेहरू ने बताया कि पहले, 15 जून से जुलाई के मध्य तक की छोटी बुवाई की अवधि के कारण मजदूरों की कमी हो जाती थी. इस वजह से अक्सर शोषण होता था और मजदूरी बढ़ जाती थी. वहीं पीएयू किसान क्लब के अध्यक्ष कुलविंदर सिंह ने कहा कि रोपाई की तारीख पहले करने पर किसानों को बिना किसी आखिरी समय की भागदौड़ के सही कीमत पर मजदूर मिल गए और वह भी सही कीमत पर. लेकिन अब बढ़ता पारा खेल बिगाड़ने वाला साबित हुआ है. उनका कहना था कि गर्मी की वजह से रोपाई को 15 जून तक के लिए टालना पड़ गया.
दशकों से पंजाब की धान की खेती मुख्य तौर पर प्रवासी मजदूरों पर ही निर्भर रही है. खास तौर पर पूर्वी बिहार और उत्तर प्रदेश से आने वाले श्रमिक पंजाब के किसानों का बड़ा सहारा होते हैं. हर साल इन मजदूरों के आने का स्वागत बहुत धूमधाम से किया जाता है. पटियाला के किसान जस्सा सिंह ने कहा, 'इस महत्वपूर्ण अवधि के दौरान, इन प्रवासी मजदूरों के साथ शादी के मेहमानों जैसा व्यवहार किया जाता है.' उनकी मानें तो बड़ी जोत वाले किसान मजदूरों को सहज महसूस कराने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि वे बीच में ही काम छोड़कर न चले जाएं या किसी और के पास न चले जाएं.
लुधियाना के आलमगीर इलाके के किसान बेअंत सिंह ग्रेवाल ने कहा कि स्थानीय मजदूर 6,000 से 7,000 रुपये प्रति एकड़ के बीच मजदूरी लेते हैं. जबकि प्रवासी मजदूर 4,000 से 4,500 रुपये प्रति एकड़ लेते हैं. इससे वह एक ज्यादा किफायती और पसंदीदा विकल्प बन जाते हैं. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट के अधिकारी जगविंदर सिंह के अनुसार प्रवासी श्रमिक ज्यादातर बिहार के मोतिहारी, हाजीपुर, बेगूसराय, पूर्णिया और मधेपुरा जिलों से आते हैं.
पंजाब में धान की रोपाई पूरी करने के बाद, वे अक्सर गुजरात जैसे राज्यों में चले जाते हैं या फिर सर्दियों के दौरान दिल्ली की आजादपुर मंडी में काम करते हैं. वहीं पटियाला में पंजाबी यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर केसर सिंह भंगू ने भारत के चावल उत्पादन में पंजाब की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि पंजाब में धान की खेती के तहत करीब 32 लाख हेक्टेयर जमीन है जिसमें बासमती चावल के लिए 6.39 लाख हेक्टेयर जमीन शामिल है. राज्य केंद्रीय खाद्यान्न पूल में 18 से 22 प्रतिशत का योगदान देता है.
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