उत्तर प्रदेश में खरीफ के सीजन में धान मुख्य फसल है. किसान धान की फसल की रोपाई करने के लिए अपने खेतों में धान की नर्सरी तैयार कर रहे हैं. इसी कड़ी में चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (CSA), कानपुर के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दिलीप नगर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. खलील खान ने धान नर्सरी को पीली व सफेद होने से बचाने के लिए एडवाइजरी जारी की है.
उसमें बताया कि किसानों ने धान की नर्सरी डाल दी है. सूरज की तपिश व अधिक गर्मी से धान की नर्सरी पीली व सफेद तो हो ही रही है, इसके साथ ही खेतों में दरार पड़ने से नर्सरी के खराब होने की संभावना है.
कृषि वैज्ञानिक डॉ. खलील खान ने बताया कि पिछले एक सप्ताह से आग उगलती गर्मी के कारण पारा 43 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है. इससे खेतों में धान की नर्सरी सूखने जैसी लगी है. उन्होंने बताया कि जिले में 30 से 35 फीसदी से अधिक किसानों ने धान की नर्सरी डाल दी है. ऐसे में धान की नर्सरी पर मौसम का विपरीत प्रभाव पड़ रहा है.
कृषि वैज्ञानिक डॉ. खलील खान ने किसानों को सलाह दी कि धान की नर्सरी पीली व सफेद हो रही हो तो खेत में प्रति टंकी तीन सौ ग्राम यूरिया, 75 ग्राम जिंक सल्फेट, 75 ग्राम फेरस सल्फेट के साथ 23 मिलीग्राम मात्रा प्रोपिकोनाजोल का घोल बनाकर छिड़काव करें. छिड़काव करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि हवा न बह रही हो. साथ ही किसान भाई समय-समय पर सिंचाई भी करते रहें। खेत में नमी बनाए रखने की जरूरत है.
डॉ. खान ने किसानों को सुझाव देते हुए बताया कि शाम को खेत में पानी लगाएं तो सुबह निकाल दें. इससे धान की नर्सरी को फायदा होगा. उन्होंने बताया कि भीषण गर्मी को देखते हुए खेत में नमी बनाए रखने की जरूरत है, ताकि नर्सरी सूखने न पाए. समय-समय पर सिंचाई करते रहें.
डॉ. खलील खान का कहना हैं कि किसानों को नर्सरी तैयारी करते समय बीज की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. कई बार किसान महंगा बीज खरीद तो लेते हैं, लेकिन सही उपज नहीं मिल पाती है. इसलिए बुआई से पहले बीज अच्छे स्रोत से खरीदें व खेत का उपचार कर लेना चाहिए. इसमें कोई भी समझौता नहीं करें. उन्होंने बताया कि बीज महंगा होना जरूरी नहीं है, विश्वसनीय और क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के मुताबिक होना चाहिए. जिससे धान की फसल में लगने वाली बकानी, झुलसा जैसी बीमारियों से बचा जा सकें.
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