गेहूं की नई किस्म पूसा गौरव में 12 फीसदी अधिक प्रोटीन होने के अलावा पानी सोखने की क्षमता के चलते रोटी और पास्ता बनाने के लिए यह बेस्ट बताई गई है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के इंदौर केंद्र ने गेहूं की पूसा गौरव किस्म को विकसित किया है और यह किस्म जलवायु अनुकूल बीजों में शामिल है. वैज्ञानिकों के अनुसार इस किस्म के गेहूं की पैदावार औसत सिंचाई के साथ 31 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि सिंचाई की बढ़िया व्यवस्था के साथ की उपज 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हासिल की जा सकती है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के इंदौर स्थित क्षेत्रीय स्टेशन के प्रमुख और प्रधान वैज्ञानिक (पौधा प्रजनन) डॉ. जंग बहादुर सिंह ने गेहूं की नई जलवायु अनुकूल किस्म पूसा गौरव (HI 8840) को विकसित किया है. बीते दिनों पीएम मोदी ने देश को समर्पित की गई फसलों की 109 जलवायु अनुकूल और बायो फोर्टिफाइड किस्मों को लॉन्च किया था, जिनमें पूसा गेहूँ गौरव (HI 8840) और ड्यूरम गेहूं की किस्म शामिल थी. ड्यूरम गेहूं की किस्म और पूसा गौरव किस्म को इस तरह से विकसित किया गया है कि इसका इस्तेमाल बेहतर बनावट वाली चपाती और पास्ता के लिए किया जा सकता है. गेहूं की यह दोनों किस्में भारतीय ही नहीं विदेशी लोगों को स्वादिष्ट लगने वाली है.
IARI) के इंदौर के वैज्ञानिक डॉ. जंग बहादुर सिंह ने पीटीआई को बताया कि पूसा गौरव (HI 8840) गेहूं की किस्म से बना आटा ड्यूरम गेहूं की तुलना में पानी को बेहतर तरीके से सोख सकता है, जिससे नरम चपाती बनती है. उन्होंने कहा कि ड्यूरम गेहूं के आटे से चपाती बनाना एक समस्या थी, जो 'पूसा गेहूं गौरव' के मामले में नहीं है. उन्होंने कहा कि ड्यूरम किस्म की तुलना में पूसा गौरव आटे की बेहतर जल सोखने की क्षमता के चलते नरम चपाती बनती है. उन्होंने कहा कि पूसा गौरव और इसके सख्त दाने में पीले रंग की अधिक से बेहतरीन क्वालिटी वाला पास्ता बनाना संभव है. वैज्ञानिक ने कहा कि पूसा गेहूं गौरव किस्म में पोषक तत्वों की मात्रा भरपूर है. उन्होंने कहा कि इसमें प्रोटीन 12 फीसदी, आयरन 38.5 पीपीएम और जिंक की मात्रा 41.1 पीपीएम है.
पूसा गौरव किस्म को जलवायु बदलावों की चुनौती को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया है. यह कम सिंचाई और ज्यादा तापमान स्थितियों में भी अच्छी उपज दे सकती है. सीमित सिंचाई सुविधाओं में पूसा गौरव किस्म की औसत उपज क्षमता 31 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि भरपूर सिंचाई के बाद उपज क्षमता 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. विशेषज्ञों के अनुसार ड्यूरम गेहूं को आम बोलचाल में मालवी या कठिया गेहूं भी कहा जाता है और इसके दाने गेहूं की सामान्य किस्मों की तुलना में सख्त होते हैं. उन्होंने कहा कि पास्ता, सूजी और दलिया बनाने के लिए सर्वाधिक इस्तेमाल होने वाला ड्यूरम गेहूं की अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी मांग है. उम्मीद जताई जा रही है कि विदेसी बाजारों में पूसा गौरव गेहूं ड्यूरम किस्म का विकल्प बन सकता है.