
रबी के मौसम में चना किसानों की बहुत ही जरूरी फसल है. अगर इसकी सही देखभाल की जाए तो अच्छी पैदावार मिलती है. लेकिन चना बोने के बाद शुरुआती 40-45 दिन सबसे ज्यादा ध्यान देने वाले होते हैं. खासकर पहले 22 दिन अगर लापरवाही हो जाए, तो पूरी फसल खराब हो सकती है. इस समय मिट्टी से फैलने वाली बीमारियां पौधों को नुकसान पहुंचाती हैं.
चना बोने के बाद जब किसान पहली बार सिंचाई करते हैं, उसी समय बीमारी फैलने का खतरा बढ़ जाता है. छोटे पौधों के तने और जमीन के जोड़ वाले हिस्से में संक्रमण शुरू हो जाता है. अगर समय पर ध्यान न दिया जाए, तो पौधे सूखकर मर जाते हैं.
कॉलर रॉट बीमारी में पौधे का निचला हिस्सा सड़ने लगता है. जहां जमीन और तना मिलता है, वहां सफेद रूई जैसा फफूंद दिखता है. धीरे-धीरे पूरा पौधा सूख जाता है. ज्यादा नमी और पानी मिलने पर यह बीमारी तेजी से फैलती है और खेत में कई पौधे खत्म हो सकते हैं.
इस बीमारी में पौधा ऊपर से सूखने लगता है. जब पौधे को जमीन से निकालकर देखते हैं, तो उसकी जड़ें काली हो जाती हैं. जड़ें इतनी कमजोर हो जाती हैं कि हल्के से छूने पर टूट जाती हैं. इससे पौधा बढ़ नहीं पाता.
उगटा रोग या चना विल्ट फूल आने के समय दिखाई देता है. इसमें पौधा अचानक मुरझा जाता है. यह बीमारी भी मिट्टी से फैलती है और जल्दी पूरे खेत में फैल सकती है.
कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि इन बीमारियों से बचने के लिए सबसे जरूरी है मिट्टी और बीज का सही इलाज. अगर बुवाई से पहले यह काम कर लिया जाए, तो फसल सुरक्षित रहती है.
चना बोने से पहले 1 किलो बीज में 10 ग्राम राइजोबियम मिलाएं. बीज को अच्छी तरह मिलाकर 15–20 मिनट तक छोड़ दें. इसके बाद ट्राइकोडर्मा पाउडर को बीज के ऊपर डालकर अच्छी तरह मिला लें. जब बीज सूख जाए, तब ही उसे बोएं.
अगर किसान समय रहते बीज और मिट्टी का उपचार कर लें, तो चना की फसल को बीमारियों से बचाया जा सकता है. इससे पौधे स्वस्थ रहते हैं और पैदावार भी अच्छी होती है. थोड़ी सी सावधानी से बड़ा नुकसान टाला जा सकता है.
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