हरियाणा के सहकारिता मंत्री डॉ. बनवारी लाल ने कहा है कि राज्य की सभी सहकारी चीनी मिलों में नवंबर के पहले सप्ताह से गन्ने की पिराई का काम शुरू किया जाएगा. इस वर्ष 424 लाख क्विंटल गन्ने की पेराई का लक्ष्य रखा गया है. तय किया गया है कि 10 प्रतिशत रिकवरी रेट हो. इस साल मिल में पेराई के लिए गन्ना लाने वाले किसानों की सुविधा के लिए उनके मोबाईल पर मैसेज भेजा जाएगा. जिसमें उन्हें आने का दिन और टाइम दिया जाएगा. ऐसे में उन्हें लाइन में नहीं लगना होगा. दिक्कत एवं देरी का सामना नहीं करना पड़ेगा. मिलों में गन्ना लेकर आने वाले किसानों के लिए केवल 10 रुपये में सस्ते दर पर पौष्टिक एवं गुणवत्ता युक्त आहार मुहैया करवाने की भी व्यवस्था की गई है.
सहकारिता मंत्री किसानों और उनके संगठनों के प्रतिनिधियों से बातचीत कर रहे थे. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा चीनी मिलों की क्षमता और उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. राज्य की सभी सहकारी चीनी मिलों का कलस्टर बनाकर इथेनॉल प्लांट लगाए जाने की महत्वाकांक्षी योजना क्रियान्वित की जा रही है. ताकि चीनी मिलों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जा सके. शाहाबाद की चीनी मिल में इथेनॉल प्लांट ने कार्य करना शुरू कर दिया है. पानीपत में भी जल्द ही इथेनॉल प्लांट लगाया जाएगा.
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सहकारिता मंत्री ने कहा कि चीनी मिलों में रिफाइंड चीनी, बकेटस, कम्पेक्ट बायोगैस आदि बनाने का कार्य किया जा रहा है. इसके साथ ही प्रेस मड और गुड आदि बनाने की भी संभावनाएं तलाशी जा रही हैं. उन्होंने कहा कि राज्य की पैक्स को बहुउद्देशीय बनाने के लिए इनमें जन औषधि केंद्र खोलने की योजना है. हैफेड, शुगरफेड एवं डेयरी के उत्पाद उपलब्ध करवाने का भी कार्य किया जा रहा है, ताकि लोगों को सस्ते एवं उचित दर पर अच्छे उत्पाद मिल सकें. इस तरह के उत्पाद बनाने से शुगर मिलों की आय बढ़ेगी और युवाओं के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे.
हरियाणा की देश के कुल गन्ना उत्पादन में हिस्सेदारी सिर्फ 2 फीसदी है. यहां पर 372 रुपये प्रति क्विंटल पर गन्ना खरीदा जा रहा है. जबकि पंजाब में देश का सबसे ज्यादा 380 रुपये क्विंटल का भाव है. हरियाणा में कुल कुल 16 चीनी मिलें हैं, जिनमें से 11 सहकारी क्षेत्र की हैं. सहकारी मिलों में चीनी रिकवरी सिर्फ 9.75 फीसदी ही है. जबकि 2020-21 के दौरान हरियाणा की प्राइवेट मिलों में चीनी की रिकवरी 10.24 फीसदी थी. सहकारी मिलों पर 5292 करोड़ रुपये का घाटा बताया गया है. घाटे से उबरने के लिए चीनी मिलें अब इथेनॉल उत्पादन पर जोर दे रही हैं.
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