भारत में पशुपालन तो बड़े पैमाने पर होता है, लेकिन हरे चारे की समस्या हमेशा से बनी हुई है. आज भी किसान और पशुपालक हरे चारे की समस्या से जूझ रहे हैं. हालांकि, अब किसान इस समस्या से निपटने के लिए खुद ही चारे की खेती को बढ़ावा देने लगे हैं. वहीं, सरकारें और कृषि संस्थान भी विभिन्न हरी चारा फसलों की किस्मों का विकास कर रहे हैं, जिनसे अच्छा उत्पादन हो और पशुओं को पोषणयुक्त चारा उपलब्ध हो सके. अब मई का महीना चल रहा है और कई किसानों के खेत इस समय खाली पड़े होंगे. ऐसे में वे इनमें बंपर उत्पादन देने वाली हरी चारा फसलों की बुवाई सकते हैं.
हरे चारे के लिए किसान मई में बाजरा, ज्वार और मक्का फसल की बुआई कर सकते हैं. वैसे तो इसकी बुआई मार्च के अंत या अप्रैल तक कर दी जाती है, लेकिन मई में भी किसान बुवाई कर सकते है, लेकिन सिंचाई का खास ध्यान रखने की जरूरत होती है. कृषि वैज्ञानिक यह सिफारिश करते हैं कि कि चारा फसलें मिलाकर बोने से चारा पौष्टिक बनता है और पैदावार भी ज्यादा होती है और ज्यादा कटाई मिलती है.
किसान मई महीने में सिंचित अवस्था के लिए बाजरा की पीसीबी 141 किस्म, मकचरी टीएल-1 किस्म, नेपियर-बाजरा संकर (पीवीएन-233 और 83, संकर-21) किस्मों का चयन कर सकते हैं.
वहीं, अगर चारा फसल ज्वार की बुवाई की योजना बना रहे हैं तो जे.एम. 20, एच.सी. 136, एच.सी. 171, एच.सी. 260, एच.सी. 308, एस.एल. 44 और पंजाब सूडेक्स चरी-1 किस्मों काे चुन सकते हैं.
वहीं, मक्का के लिए किस्में-जे. 1006, प्रभात, प्रताप, केसरी और मेघा का चयन कर सकते हैं. इसके अलावा गिनी घास की पी.जी.जी. 518 और 101, जबकि ग्वार की एफ.एस. 277 और ग्वार-80. वहीं, लोबिया की लोबिया-88 और लोबिया 90 किस्मों की बुवाई कर सकते हैं.
किसानों को चारा फसलों के पोषक तत्व के प्रबंधन के लिए मिश्रित चारे में सही मात्रा में बीजों को उपचारित करने की सलाह दी जाती है. इसके बाद वे खेत की 2 से 3 बार जुताई करने के बाद 10 टन देसी गोबर खाद और 1 बोरा यूरिया डालकर बिजाई कर सकते हैं. अगर आपने ज्वार की एक कटाई वाली प्रजातियों की फसल बोई है तो नाइट्रोजन की आधी मात्रा को पहली सिंचाई के बाद खेत में इस्तेमाल करें.
वहीं, बहुकटाई वाली चरी में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन या 65 किलोग्राम यूरिया और मक्का में 40 किलोग्राम नाइट्रोजन या 87 किलोग्राम यूरिया से बुआई के 30 दिनों बाद टॉप ड्रेसिंग करनी चाहिए. वहीं, हर प्रत्येक कटाई के बाद चारे की अच्छी बढ़वार के लिए बची हुई नाइट्रोजन को बराबर मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिए. जब अच्छी बढ़वार तो जाए तो जरूरत के हिसाब से चारे की कटाई करें और कटाई के बाद आधा बोरा यूरिया छिड़क दें. इसके अलावा हर कटाई के बाद सिंचाई जरूर करें.