
सरकार ने कश्मीर में अपनी सुगंध और स्वाद के लिए मशहूर चावल की किस्म मुश्क बुदजी का उत्पादन बढ़ाने की योजना बना ली है. योजना के मुताबिक अगले तीन वर्षों में पांच हजार हेक्टेयर भूमि पर इसकी खेती की जायेगी. कुछ कृषि वैज्ञानिकों की लगन और किसानों की कड़ी मेहनत के कारण यह एक बार फिर कश्मीरी चावल को दावतों का हिस्सा बनाने की कोशिश की जा रही है. शेर-ए-कश्मीर कश्मीर कृषि, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के अनुसार, चावल की उच्च मूल्य वाली पारंपरिक किस्म की खेती विलुप्त होने के कगार पर थी.
चावल की यह किस्म कश्मीर के कुछ भागों तक ही सीमित थी. क्योंकि चावल की इस किस्म पर कई रोगों का खतरा मंडरा रहा था. जिस वजह से इसकी खेती का रकबा सिमटता जा रहा था. वहीं उत्पादन में एकरूपता न होने, गुणवत्तापूर्ण बीजों की कमी, कम उपज क्षमता और अधिक खेती योग्य धान की किस्मों के तहत क्षेत्र के विस्तार के कारण इसके क्षेत्र में कमी आई.
दक्षिण कश्मीर के कोकेरनाग के पांच गांवों में 250 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर उगाए जाने वाले मुश्क बुदजी को कृषि विभाग और कृषि विश्वविद्यालय के प्रयासों से अगस्त में जीआई टैग मिला. यह विशेष फसल विशेष जलवायु परिस्थितियों में उगाई जाती है. अपने क्षेत्र का विस्तार करने के लिए घाटी के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न क्षेत्रों की खोज की जा रही है जहां इसकी खेती की जा सके.
कृषि उत्पादन एवं किसान कल्याण विभाग, कश्मीर के निदेशक चौधरी मोहम्मद इकबाल ने कहा कि हमारा लक्ष्य कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की समग्र विकास योजना के तहत अगले तीन वर्षों में पांच हजार हेक्टेयर भूमि पर इस फसल की खेती को सफलतापूर्वक करना है. हम मुश्क बुदजी को बडगाम तक विस्तारित करने में सफल रहे हैं. उम्मीद है कि अधिक किसान इस फसल की खेती करेंगे जिससे बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए इसका उत्पादन बढ़ेगा.
कोकरनाग के सागम गांव के मंजूर अहमद भट्ट ने कहा कि लगभग आधा दर्जन गांवों के 500 से अधिक किसान मुश्क बुदजी की खेती कर रहे हैं और जीआई टैगिंग से उनकी उपज को काफी फायदा होगा. एक किलो मुश्क बुदजी 260 रुपये में बिक रही है. श्रीनगर में इसे काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला है. इतना ही नहीं इस उत्पाद की मांग विदेशों में भी है. दुबई ने भी चावल की इस किस्म के लिए यहां के किसानों से संपर्क किया है. संगम गांव के किसान गुलाम मोहम्मद ने कहा कि उन्होंने काफी समय पहले फसल उगाना बंद कर दिया था और कुछ समय पहले सरकार की मदद से नए सिरे से खेती शुरू की थी. जिस वजह से उन्हें अब काफी फायदा भी हो रहा है.