हरियाणा में बाजरा और अन्य खरीफ फसलों के बाद अब कपास किसानों को भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी ) नहीं मिल पा रहा है. व्यापारियों का कहना है कि फसल की गुणवत्ता खराब है. इस बीच, कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) जो आमतौर पर तब बाजार में हस्तक्षेप करती है जब कीमतें एमएसपी से नीचे चली जाती हैं, उसने अभी तक खरीद प्रक्रिया शुरू नहीं की है. नतीजतन, किसान परेशान और निराश हैं.
अखबार ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार हिसार के किसानों के अनुसार, हाल ही में हुई भारी बारिश के कारण उन्हें खरीफ सीजन में भारी नुकसान उठाना पड़ा है. किर्तन गांव के किसान दयानंद सिंह ने बताया, 'अब जो भी फसल बची है, उसे सरकारी एजेंसियां खरीद नहीं रही हैं. हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचा है, इसलिए हमें इसे निजी व्यापारियों को बहुत कम दामों पर बेचना पड़ रहा है.' दयानंद सिंह ने दो एकड़ जमीन पर कपास की बुवाई की थी. उनकी कुछ फसल बारिश से बच गई थी और उन्हें उम्मीद थी कि कम से कम वह अपनी लागत वसूल कर पाएंगे, लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि यह भी मुश्किल होता जा रहा है.
एक अन्य किसान लदवी गांव के मुकेश कुमार ने चार एकड़ जमीन पर कपास की खेती की थी. उन्होंने ने बताया कि हाल की बारिश में उनकी पूरी फसल बह गई. उन्होंने कहा, 'फिर भी हमने कुछ कपास तोड़ ली थी और उम्मीद थी कि इसके अच्छे दाम मिल जाएंगे. लेकिन निजी व्यापारी सिर्फ 6,000 रुपये प्रति क्विंटल का भाव दे रहे हैं, जो बिल्कुल भी पर्याप्त नहीं है.'
किसान नेताओं ने मांग की है कि सीसीआई को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि बाजार में कपास के दाम स्थिर हो सकें और किसानों को एमएसपी मिल सके. केंद्र सरकार ने 27 एमएम गुणवत्ता वाली कपास के लिए 7,860 रुपये प्रति क्विंटल और 28 एमएम की उच्च गुणवत्ता वाली कपास के लिए 8,910 रुपये प्रति क्विंटल का एमएसपी तय किया है. लेकिन किसानों को मजबूरी में इससे कहीं कम दामों पर अपनी उपज बेचनी पड़ रही है. वहीं, व्यापारियों का कहना है कि मंडियों में आ रही कपास की गुणवत्ता बेहद खराब है. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यही स्थिति रही तो आने वाले दिनों में दाम और भी नीचे जा सकते हैं.
वहीं सीसीआई के एक अधिकारी ने बताया कि संस्था बहुत जल्द एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर कपास की खरीद शुरू करेगी. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि हाल ही में हुई भारी बारिश की वजह से फसल की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ा है. अधिकारी ने बताया, 'कपास में अभी भी नमी की मात्रा ज्यादा है. इसके अलावा हम सरकार और जिनिंग मिलों से खरीदी गई कपास की सप्लाई को लेकर बातचीत कर रहे हैं.' हरियाणा में इस साल करीब 3.80 लाख हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती हुई है. लेकिन यह क्षेत्रफल हर साल घटता जा रहा है. अधिकारी के अनुसार, 'सितंबर और अक्टूबर में हुई हालिया बारिश ने फसल को भारी नुकसान पहुंचाया है. कपास के पौधों में बोल रॉट और रूट रॉट जैसी बीमारियों की शिकायतें सामने आई हैं, जिससे पैदावार बुरी तरह प्रभावित हुई है.'
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