कोलकाता में गुरुवार को इंडियन टी एसोसिएशन (आईटीए) की वार्षिक आम बैठक आयोजित हुई, जिसमें कई हितधारक शामिल हुए. बैठक में चाय उद्योग की मुख्य समस्याओं में मूल्य स्थिरता, श्रमिकों की कमी और जलवायु परिवर्तन का जिक्र किया गया. साथ ही बैठक में दार्जिलिंग में बाढ़, भूस्खलन से मची तबाही को लेकर क्षेत्रीय चाय उद्योग को आर्थिक राहत देने की मांग भी उठाई गई. असम के मुख्य सचिव रवि कोटा ने कहा है कि चाय उद्योग की मौजूदा दोहरी संरचना यानी बड़े संगठित उत्पादकों और छोटे चाय उत्पादकों (एसटीजी) की सह-अस्तित्व व्यवस्था तभी टिकाऊ रह सकती है, जब दोनों ही वर्ग आर्थिक रूप से लाभदायक और स्थायी बने रहें. उन्होंने कहा कि देश में चाय उद्योग के दीर्घकालिक हित के लिए यह बेहद जरूरी है कि दोनों पक्ष एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाए बिना संतुलित ढंग से काम करें.
असम भारत का सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य है और देश की कुल वार्षिक चाय फसल का लगभग आधा हिस्सा यहीं से आता है. कोटा ने आईटीए की वार्षिक आम बैठक में कहा, “चाय उद्योग की दोहरी संरचना- बड़े संगठित उद्यम और छोटे चाय उत्पादक, दोनों के लिए टिकाऊ रहना अनिवार्य है. दोनों को बिना एक-दूसरे को नीचा दिखाए साथ-साथ आगे बढ़ना होगा.”
उन्होंने बताया कि बड़े संगठित क्षेत्र को प्लांटेशन अधिनियम के तहत श्रमिक कल्याण और सामाजिक दायित्वों का पालन करना पड़ता है, जबकि छोटे चाय उत्पादकों पर ऐसे दायित्व नहीं हैं. “इसके बावजूद दोनों खंडों को लाभकारी बने रहना होगा और उद्योग को दीर्घकालिक स्थिरता प्रदान करनी होगी.”
मुख्य सचिव ने चाय की न्यूनतम टिकाऊ कीमत तय करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा कि ऐसी मूल्य निर्धारण व्यवस्था बनाई जानी चाहिए जो सभी के लिए न्यायसंगत और व्यवहार्य हो. साथ ही उन्होंने चाय आयात के मामलों में उत्पाद के मूल स्रोत का खुलासा अनिवार्य करने की बात कही, ताकि ट्रैसेबिलिटी और पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके.
बैठक में आईटीए के अध्यक्ष हेमंत बांगुर ने कहा कि चाय उद्योग इस समय कई चुनौतियों से जूझ रहा है, जिनमें मूल्य स्थिरता, श्रमिकों की कमी और जलवायु परिवर्तन प्रमुख हैं. उन्होंने कहा कि संगठित चाय क्षेत्र की संचालन लागत बहुत बढ़ जाने के कारण उसका कारोबार दिन-ब-दिन अलाभकारी होता जा रहा है और अब समय आ गया है कि उसे ‘लेवल प्लेइंग फील्ड’ प्रदान किया जाए.
बांगुर ने रूढ़िवादी चाय उत्पादन को प्रोत्साहित करने की मांग की और कहा कि इसके लिए प्रोत्साहन दर (RoDTEP) बढ़ाई जानी चाहिए. यह योजना 1 जनवरी 2021 से लागू है और इसका उद्देश्य निर्यातकों को उन करों और शुल्कों की भरपाई करना है, जो अन्य योजनाओं के तहत वापस नहीं किए जाते.
उन्होंने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तन का असर चाय उत्पादन पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है. हाल ही में उत्तर बंगाल में आई भीषण बारिश और भूस्खलन इसका उदाहरण हैं. बांगुर ने सरकार से दार्जिलिंग चाय उद्योग के लिए विशेष वित्तीय पैकेज की मांग की, ताकि यह ऐतिहासिक उद्योग मौजूदा संकट से उबर सके.