देश के कृषि प्रधान राज्य पंजाब और हरियाणा में किसान धान की खेती से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. पर्यावरण संबंधी बढ़ती चिंताओं और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने वाली सरकारी योजनाओं की शुरूआत के बावजूद किसान इसकी खेती करना जारी रखे हैं. एक रिपोर्ट पर अगर यकीन करें तो दोनों राज्यों में धान की खेती का रकबा इस साल फिर से बढ़ने वाला है.अधिकारियों को उम्मीद है कि धान की खेती का रकबा पिछले साल के करीब 19 लाख हेक्टेयर के आंकड़ें से कहीं ज्यादा होने वाला है.
संडे गार्जियन कीरिपोर्ट के अनुसार पंजाब में पिछले साल इसी अवधि के दौरान धान का रकबा 18.50 लाख हेक्टेयर था. जबकि इस साल अब तक करीब 23 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी है और रोपाई जुलाई के अंत तक जारी रहने की संभावना है. किसान और विशेषज्ञ पंजाब सरकार के 15 जून के बजाय 1 जून से जल्दी रोपाई की अनुमति देने के फैसले का हवाला देते हैं. माना जा रहा है कि इससे भूजल संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है.
आंकड़ों के अनुसार, पंजाब में 2024 में रिकॉर्ड 32.44 लाख हेक्टेयर में धान की खेती हुई थी. इसमें बासमती चावल के तहत 6.39 लाख हेक्टेयर शामिल हैं. धान की रोपाई राज्य में जोरों पर है. अधिकारियों का अनुमान है कि राज्य में इस बार रकबा पिछले साल के बराबर या उससे भी ज्यादा होने वाला है. सरकार की तरफ से कई प्रयासों और फसल विविधीकरण पर सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद, धान अब पंजाब के कुल खरीफ-बोए गए 36 लाख हेक्टेयर क्षेत्र के 90 प्रतिशत से ज्यादा पर हावी हो चुका है. यह राज्य के कृषि कैलेंडर में फसल के दबदबे को दिखाता है.
इसी तरह, हरियाणा में धान की खेती का रकबा पारंपरिक 15 लाख हेक्टेयर से बढ़कर होने की आशंका है. यह राज्य के कुल 30 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि का 50 फीसदी है. पारंपरिक विधि की तुलना में 90 फीसदी कम पानी का उपयोग करने वाली डायरेक्ट सीड राइस (DSR) तकनीक को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयासों ने पिछले कुछ वर्षों में हरियाणा में बेहतर परिणाम दिए हैं. इसमें करीब पांच लाख एकड़ भूमि DSR के तहत आ गई है.
पंजाब और हरियाणा लंबे समय से हरित क्रांति का केंद्र थे. अब धान भूजल के लिए खतरा बन गया है क्योंकि इसकी खेती में बहुत पानी लगता है. विशेषज्ञों के अनुसार प्रति किलोग्राम चावल के लिए 4000 से 5000 लीटर पानी की जरूरत होती है. खेतों में 3 से 4 इंच पानी भरने के अलावा, धान की बुवाई के लिए कटाई तक लगभग 20 से 25 सिंचाई चाहिए होती हैं. इस वजह से दोनों ही राज्यों में किसान भूजल का ज्यादा प्रयोग करते हैं.
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