आनुवंशिक रूप से संशोधित Genome-Edited धान की दो नई किस्में - 'डीआरआर धान 100 (कमला)' और 'पूसा डीएसटी राइस 1' अब खेतों में उतरने के लिए तैयार हैं, भारत सरकार के सरल नियमों के तहत जैव सुरक्षा की हरी झंडी मिलने के बाद, ये जीनोम-एडिटेड किस्में आज कृषि मंत्री शिवराज सिह चौहान जारी करेगे.भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) इन किस्मों से अधिक उपज का दावा कर रहा है. हालांकि जीएम फसलों को लेकर देश में लंबे समय से बहस जारी है, आईसीएआर इन नई किस्मों को कृषि उत्पादन बढ़ाने और किसानों को लाभ पहुंचाने वाला बता रहा है. इन किस्मों के जारी होने से देश में जीएम फसलों को लेकर एक नया अध्याय शुरू हो सकता है, जिसमें वैज्ञानिक दावों और जनमानस की आशंकाओं के बीच संतुलन बनाना होगा. यह देखना अहम होगा कि इन किस्मों को किसानों और उपभोक्ताओं द्वारा किस प्रकार स्वीकार किया जाता है. आईसीएआऱ के अनुसार इन दो किस्मों को अथक परिश्रम के बाद दो ऐसी चावल की किस्में विकसित कीं, जो न केवल अधिक उपज देंगी, बल्कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को भी मात देंगी. साथ ही इन किस्मों से कृषि क्षेत्र में एक नए युग का सूत्रपात होने की उम्मीद है.
हैदराबाद स्थित आईसीएआर का -भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान आईआईपीआप के वैज्ञानिकों ने 'सांबा मसूरी' की लोकप्रिय किस्म में जीनोम एडिटेड तकनीक का उपयोग करके एक नई किस्म विकसित की है जिसे 'डीआरआर धान 100 को कमला नाम दिया गया है. वैज्ञानिकों ने साइटोकिनिन ऑक्सीडेज 2 (CKX2) जीन में बदलाव करके हर बाली में दानों की संख्या में खासी वृद्धि की है. साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज 1 (SDN1) तकनीक का उपयोग करते हुए, इस प्रक्रिया में किसी भी बाहरी डीएनए का इस्तेमाल नहीं किया गया है, जिससे यह किस्म पारंपरिक तौर पर विकसित किस्मों के समान ही सुरक्षित है. परीक्षणों में 'कमला' ने अपनी जनक किस्म 'सांबा मसूरी' की तुलना में 19 फीसदी अधिक उपज दी है, जिसकी औसत उपज 21.48 किवंटल प्रति एकड दर्ज की गई है, जबकि अनुकूल परिस्थितियों में यह 36 कुंतल प्रति एकड़ तक उपज दे सकती है. सबसे खास बात यह है कि यह किस्म लगभग 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जो 'सांबा मसूरी' से लगभग 20 दिन कम है. इसके अलावा, 'कमला' सूखा के प्रति सहनशील अधिक नाइट्रोजन उपयोग दक्षता और मजबूत तने जैसी विशेषताओं से भी लैस है, जबकि इसने 'सांबा मसूरी' जैसी बेहतर चावल अनाज और खाना पकाने की गुणवत्ता को भी बरकरार रखा है.
नई दिल्ली -भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा( IARI) के वैज्ञानिकों ने 'एमटीयू1010' नामक एक अन्य लोकप्रिय और महीन अनाज वाली किस्म में जीनोम एडिटेड के माध्यम से सुधार कर 'पूसा डीएसटी राइस 1' नामक एक नई किस्म विकसित की है, जो सूखा और मिट्टी की लवणता यानि ऊसर के प्रति अधिक सहनशील है.साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज 1 (SDN1) तकनीक का उपयोग करके विकसित की गई इस किस्म में सूखा और नमक सहिष्णुता (DST) जीन को डाला गया है. इस प्रक्रिया में भी किसी बाहरी डीएनए का उपयोग नहीं किया गया है.फील्ड परीक्षणों में 'पूसा डीएसटी राइस 1' ने विभिन्न तनावपूर्ण परिस्थितियों में भी बेहतर उपज दिया है. इसने न केवल 'एमटीयू1010' की खास अनाज गुणवत्ता को बनाए रखा है, बल्कि सूखा और लवणता के प्रति इसकी प्रतिरोधक क्षमता में भी काफी वृद्धि हुई है. यह विकास उन क्षेत्रों के किसानों के लिए विशेष रूप से अहम है, जहां खारा और क्षारीय मिट्टी य़ानि ऊसर के कारण पारंपरिक किस्में बैहतर उपज नहीं कर पाती हैं
इन दोनों किस्मों का विकास जीनोमएडिटेडजैसी आधुनिक तकनीक इसे प्रमाण है. CRISPR-Cas जैसी तकनीकों ने वैज्ञानिकों को बिना किसी बाहरी डीएनए को डाले, पौधों के मूल जीनों में सटीक बदलाव करने की क्षमता प्रदान की है, जिससे नई और वांछनीय विशेषताओं वाली किस्में विकसित करना संभव हो गया है.ICAR ने इस दिशा में 2018 में ही 'राष्ट्रीय कृषि विज्ञान कोष' के तहत अनुसंधान शुरू कर दिया था, और केंद्र सरकार ने भी बजट 2023-24 में कृषि फसलों में जीनोमएडिटेडके लिए 500 करोड़ रुपये आवंटित करके इस तकनीक के महत्व को स्वीकार किया है. वर्तमान में, ICAR में तिलहन और दालों जैसी अन्य महत्वपूर्ण फसलों में भी जीनोम एडिटेडपर अनुसंधान कार्य प्रगति पर है
जैसे-जैसे दुनिया बढ़ती आबादी, जलवायु परिवर्तन और विभिन्न जैविक तथा अजैविक तनावों से जूझ रही है, कृषि में तेजी से और अधिक सटीक नवाचारों की जरूरत बढ़ती जा रही है. 'कमला' और 'पूसा डीएसटी राइस 1' जैसी जीनोम-एडिटेड किस्में इस दिशा में एक अहम कदम हैं, जो न केवल भारत की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करेंगी, बल्कि टिकाऊ कृषि के एक नए युग की शुरुआत भी करेंगी. य.अनुमान है कि लगभग 50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में इन नई किस्मों की खेती से देश को 45 लाख टन अधिक धान उपज मिलेगी, जो न केवल हमारी बढ़ती आबादी की खाद्य जरूरतों को पूरा करने में सहायक होगा, बल्कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को भी लगभग 20 फीसदीतक कम करेगा. 'कमला' तो एक कदम और आगे बढ़कर पानी की बचत में भीअहम योगदान देगी. इसकी कम परिपक्वता अवधि के कारण तीन सिंचाई कम लगेंगी, जिससे लगभग 7,500 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी बचाया जा सकेगा, जिसका उपयोग अन्य फसलों के लिए किया जा सकेगा.
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