केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय ने इस साल गेहूं का रिकॉर्ड 115.43 मिलियन टन उत्पादन होने का अनुमान जताया है, लेकिन गेहूं व्यापार निकाय आंकड़ों से असंतुष्ट है और अनुमान को मानने से इनकार कर रहा है. यहां तक कि इसने रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (RFMFI) के अनुमान को भी नकार दिया है, जिसने 110 मीट्रिक टन उत्पादन की बात कही है. व्यापार संस्था का कहना है कि 2025 में गेहूं का उत्पादन सिर्फ 104-106 मीट्रिक टन की रेंज में रहने का अनुमान है.
व्यापार संस्था ने पिछले साल भी कृषि मंत्रालय के 2024 वर्ष के 113.25 मीट्रिक टन गेहूं उत्पादन के अनुमान को नकार दिया था, जबकि उस समय RFMFI ने 105 मीट्रिक टन उत्पादन का अनुमान लगाया था. ‘बिजनेसलाइन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर भारत के एक मिलर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हम इस साल RFMFI का अनुमान स्वीकार नहीं हैं. साथ ही पिछले साल और इस साल कृषि मंत्रालय ने उत्पादन को लेकर जो अनुमान जारी किया है, उससे भी सहमत नहीं हैं.
वहीं, दक्षिण भारत के एक मिलर ने पिछले साल के सरकारी गेहूं उत्पादन के आंकड़ों पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर 2024 में रिकॉर्ड 113.25 मीट्रिक टन गेहूं उत्पादन का अनुमान था तो स्टॉक कहां है? हम सप्लाई में कमी झेल रहे हैं. मैकडोनाल्ड पेल्ज़ ग्लोबल कमोडिटीज के एशिया बिजनेस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुमित गुप्ता ने पिछले हफ्ते गोवा में गेहूं सम्मेलन में एक प्रजेंटेशन दी. इसमें उन्होंने कहा कि विभिन्न व्यापारियों ने गेहूं का उत्पादन 82-105 मीट्रिक टन रहने का अनुमान लगाया है, जबकि खपत 85-98 मीट्रिक टन रह सकती है.
रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2023 में गेहूं की फसल गर्मी से प्रभावित होने के बाद से व्यापार और उद्योग जगत सप्लाई में कमी की बात कहकर उत्पादन में कमी की बात कर रहा है और सरकारी अनुमानों पर सवाल उठा रहा है. साल 2023 में सरकार ने 110.55 मीट्रिक टन गेहूं उत्पादन के अनुमान की बात कही थी, लेकिन व्यापार ने इसे भी अस्वीकार करते हुए चुनौती दी थी. निकाय ने तर्क दिया था कि उत्पादन 100 मीट्रिक टन से ज्यादा नहीं था.
वहीं, एक ट्रेड एनालिस्ट ने व्यापारियों के द्वारा अनुमान के आंकड़ों पर सवाल उठाए जाने पर सवाल उठाए हैं. ट्रेड एनालिस्ट ने व्यापारियों के अनुमान के सोर्स पर ही सवाल उठाते हुए पूछा कि गेहूं उत्पाद का अनुमान कैसे अनुमान सरकार के अनुमान से कम है? उन्होंने कैसे इसका आकलन किया? हालांकि, खपत को लेकर विश्लेषक और व्यापार जगत एकमत हैं.