महाराष्ट्र के जालना जिले के भोकरदन तालुका में ग्रीष्मकालीन मिर्च की खेती ने रिकॉर्ड बना दिया है. पिछले साल की तुलना में यहां खेती दोगुनी हो गई है. इस वर्ष, तालुका के अधिकांश हिस्सों में 100 प्रतिशत सूखे के बावजूद, किसानों ने मिर्च की खेती के लिए कुओं में पानी जमा किया है और लगभग छह हजार हेक्टेयर में ड्रिप और मल्चिंग सिंचाई के माध्यम से तालुका में नकदी फसल के रूप में ग्रीष्मकालीन मिर्च लगाई गई है. रोपण के दो माह बाद उपज निकलना शुरू हो जाती है. पहला ब्रेक कम हो जाता है. लेकिन दूसरे ब्रेक से अच्छी आमदनी होती है.
मिर्च की खेती किसानों को आर्थिक तंगी से निकालने का काम कर रही है. दरअसल, जून-जुलाई में किसानों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इसलिए, तालुका के किसानों ने इस साल मिर्च की फसल की ओर रुख किया है. भोकरदन और जाफराबाद जालना जिले के दो तालुका हैं जिन्हें मिर्च के हब के रूप में जाना जाता है. मिर्च खरीदने में जाफराबाद नंबर एक और भोकरदन नंबर दो है. प्रदेश के बाहर से व्यापारी यहां मिर्च खरीदने आते हैं. यहां काफी किसानों की आजीविका इसी पर निर्भर है.
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मिर्च की नर्सरी लगाने का काम करने वाले अमोल पवार ने कहा कि मेरी नर्सरी से पौधों की बुकिंग पिछले साल की तुलना में दोगुनी हो गई है. अभी भी बुकिंग के ऑर्डर मिल रहे हैं. हमारे क्षेत्र में मिर्च की खेती बड़े पैमाने पर होती रही है. कई किसान जून में बारिश के बाद मिर्च लगाने जा रहे हैं. मिर्च की खेती आमतौर पर फायदा ही देकर जाती है इसलिए इस ओर किसानों का रुझान है. मिर्च के बीज से नर्सरी डालने के बाद उसकी रोपाई करनी पड़ती है.
यहां स्थित दानापुर के किसान राजेश दलवी का कहना है कि इस वर्ष उन्होंने 11000 मिर्च के पौधे लगाए हैं. उम्मीद है कि इससे अच्छी कमाई होगी. जून-जुलाई में किसानों के पास आमतौर पर पैसे का संकट रहता है, इसलिए ग्रीष्मकालीन मिर्च अप्रैल-मई में लगाई जा रही है. उसके बाद जून-जुलाई में मिर्च की फसल होने लगेगी और किसानों के सामने आ रही पैसों की कमी की समस्या से कुछ राहत मिलेगी. एक एकड़ में अगर मिर्च की खेती करते हैं तो 70 हजार रुपये तक का खर्च आता है. मिर्च की फसल गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी पैदावार देती है. मिर्च की खेती के लिए जहां आंध्र प्रदेश मशहूर है वहीं महाराष्ट्र भी कम नहीं है.
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