बीटी कपास की बढ़ती कीमतों को देखते हुए बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर इस ओर ध्यान दिलाया है। राकेश टिकैत ने कहा केंद्र सरकार ने बीटी कपास के बीजों की कीमतों में बढ़ोतरी का बेहद चिंताजनक फैसला लिया है. बीटी कपास की विफलता के कारण कपास की पैदावार में भारी गिरावट आ रही है और हाल के वर्षों में देश के विभिन्न हिस्सों में कीटों, विशेष रूप से गुलाबी बॉलवर्म के हमले बढ़े हैं. इससे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है.
ऐसे में केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने 28 मार्च 2025 को बोलगार्ड II (बीजी-II) के बीटी कपास के बीजों की कीमत में पिछले साल की तुलना में 37 रुपये या 4.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है. कीमतों में यह बढ़ोतरी जून में कपास की बुवाई शुरू होने से ठीक पहले की गई है, जिसका फायदा बीटी कपास के व्यापार से जुड़ी कंपनियों को ही होगा. बीटी कपास के बीजों की विफलता के बाद भी केंद्र सरकार ने बीजों की कीमत में बढ़ोतरी की है, यह निंदनीय कदम है.
मंत्री ने कहा कि हम यह भी जानते हैं कि कुछ समूहों को लगता है कि बोलगार्ड III (बीजी-III) या एचटी बीटी कपास कपास की समस्या का समाधान करेगा, लेकिन जिस तरह बीटी कपास के बोलगार्ड II (बीजी-II) ने बोलगार्ड (बीजी-1) की विफलता का समाधान नहीं किया, उसी तरह यह भी कोई ठोस समाधान नहीं होगा. मौजूदा जीएम कपास और भी महंगी जीएम कपास तकनीक को जन्म देगा जो कुछ वर्षों में फिर से विफल हो जाएगी. ऐसा पहले भी हुआ है और भविष्य में भी होगा. केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. केशव क्रांति ने अपने शोध के माध्यम से बताया कि कपास उत्पादन में वृद्धि के लिए गलत तरीके से बीटी कपास को श्रेय दिया गया, जबकि उत्पादन कुछ अन्य कारणों से बढ़ा.
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अब समय आ गया है जब केंद्र सरकार देसी कपास को बढ़ावा दे. देसी कपास को कम पानी की जरूरत होती है और आज पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और कई अन्य राज्यों में पानी गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है. इसमें कृषि रसायनों के इस्तेमाल की जरूरत नहीं होती, वहीं बीटी कपास के आने से रासायनिक खादों और कीटनाशकों का इस्तेमाल भी बढ़ गया है. बीटी कपास के आने के बाद मधुमक्खियों पर होने वाले दुष्प्रभावों की जानकारी भी मधुमक्खी पालकों से मिलती है. देसी कपास किसानों और पर्यावरण के लिए बेहतर है. दूसरी ओर, सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (सीएसए) ने हाल ही में गैर-बीटी कपास पर कई राज्यों में किए गए प्रयोगों में सफलता पाई है. इसी तरह, रायथु साधिकारा संस्था को भी आंध्र प्रदेश में गैर-जीएम कपास में अच्छे परिणाम मिले हैं. यह भी उल्लेखनीय है कि ये परिणाम रासायनिक खादों और कीटनाशकों के इस्तेमाल के बिना आए और इसके खर्च और दुष्प्रभावों से भी मुक्त थे. देश-विदेश में इस तरह के जैविक कपास की भारी मांग है और जैविक कपास के नाम पर जीएम कपास के निर्यात से होने वाली धोखाधड़ी से भारत की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है.
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वर्ष 2004 में सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि किस तरह केंद्र सरकार के राष्ट्रीय पौध आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (एनबीपीजीआर) द्वारा बहुत सारे देशी कपास के जर्मप्लाज्म को नष्ट कर दिया गया. जिस तरह बीटी कपास की शुरुआत के समय देशी कपास के बीज हटा दिए गए थे, उसी तरह बीटी कपास की विफलता के बाद अब केंद्र सरकार को बड़े पैमाने पर जैविक देशी कपास को बढ़ावा देना चाहिए. डॉ. क्रांति पहले ही कपास की पैदावार बढ़ाने के लिए गैर-जीएम कपास में उच्च घनत्व रोपण प्रणाली की आवश्यकता के बारे में बात कर चुके हैं. इसमें देशी कपास को बढ़ावा देने के लिए हरियाणा सरकार के सराहनीय प्रयास से सीख लेने की जरूरत है. हरियाणा सरकार ने देशी कपास को बढ़ावा देने के लिए किसानों को 3,000 रुपये प्रति एकड़ देने की योजना लाई है. हालांकि, पर्याप्त मात्रा में देशी कपास के बीज न मिलने के कारण यह योजना उतनी सफल नहीं हो पाई. शुरुआती 1-2 साल तक सरकार को किसानों के साथ मिलकर बीज उत्पादन या उनके अपने खेतों में बीज उत्पादन करके इसे आगे बढ़ाना होगा. हमें उम्मीद है कि आप देश और किसानों के हित में निर्णय लेंगे और स्वदेशी कपास को बढ़ावा देंगे.