केंद्र सरकार ने गेहूं की महंगाई कम करने के लिए ओपन मार्केट सेल स्कीम (OMSS) की घोषणा की है, जिसके तहत गेहूं का आरक्षित मूल्य 2,300 रुपये प्रति क्विंटल और चावल का 2,800 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है. इस बार, सरकार ने कहा है कि ट्रांसपोर्ट लागत को आरक्षित मूल्य में जोड़ा जाएगा, जबकि पिछले साल पूरे देश में एक ही दर थी. यह भी तय किया गया है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून, कल्याणकारी योजनाओं और बफर मानदंडों के लिए जरूरी गेंहूं के बाद जो अतिरिक्त मात्रा बचेगी उसी को ही इस योजना के तहत जारी किया जाएगा. ओएमएसएस नीति 31 मार्च, 2025 तक वैध रहेगी. चावल नीति 1 जुलाई से और गेहूं की नीति 1 अगस्त से शुरू हो सकती है.
खाद्य मंत्रालय ने कहा है कि "स्टॉक की मात्रा और ई-नीलामी का समय स्टॉक को ध्यान में रखते हुए मंत्रालय की सलाह से भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा तय किया जा सकता है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली और अन्य योजनाओं के तहत गेहूं की वार्षिक आवश्यकता लगभग 184 लाख टन है, जबकि 1 अप्रैल को बफर मानदंड 74.6 लाख टन है. 1 जुलाई, 2024 को एफसीआई के पास केंद्रीय पूल स्टॉक में 282.6 लाख टन गेहूं और 485 लाख टन चावल था.
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रोलर फ्लोर मिलर्स लगातार इस योजना के लिए सरकार पर दबाव बना रहे थे और वो इसमें कामयाब हुए हैं. उनकी यह मांग भी सरकार ने मान ली है कि गेहूं के रिजर्व प्राइस में माल ढुलाई को भी जोड़ा जाए. इससे उनके लिए गेहूं और सस्ता पड़ेगा. हालांकि, आईग्रेन इंडिया के राहुल चौहान ने कहा कि देश भर में एक समान दर के कारण, 2023-24 के दौरान ओएमएसएस के तहत 100 लाख टन गेहूं की रिकॉर्ड बिक्री हुई. चौहान ने कहा कि नई नीति व्यापारियों को पहले की तरह स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति देगी और उम्मीद है कि बाजार में अधिक मात्रा में गेहूं आएगा, जिससे एफसीआई पर बोझ कम होगा.
हालांकि, कुछ विशेषज्ञ सरकार के इस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं, क्योंकि पहले इसे वन नेशन वन रेट नारे के तहत उपलब्धि के रूप में दावा किया गया था और अब इसे हटाने का कोई औचित्य नहीं दिख रहा है. यह नीति एफसीआई से केंद्रीय सहकारी संगठनों जैसे कि नेफेड, एनसीसीएफ और केंद्रीय भंडार को 2,300 रुपये प्रति क्विंटल पर गेहूं की बिक्री की भी अनुमति देगी. केंद्र इन एजेंसियों को 275 रुपये प्रति 10 किलोग्राम बैग पर आटा बेचने के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष से लगभग 10 रुपये की सब्सिडी भी देता है.
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