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Pm Kisan: खेती में पुरुषों के साथ कंधा मिलाकर काम कर रही हैं महिला किसान, फिर 'सम्‍मान' में भेदभाव क्‍यों

Pm Kisan: खेती में पुरुषों के साथ कंधा मिलाकर काम कर रही हैं महिला किसान, फिर 'सम्‍मान' में भेदभाव क्‍यों

ग्रामीण महिलाएं खेतों में काम करते हुए वर्षों से कृष‍ि क्षेत्र की तरक्की में अपना योगदान दे रही हैं, लेकिन ज्यादातर मजदूर के रूप में काम करती हैं न क‍ि “किसान” के रूप में. आखिर इसकी वजह क्या है? प्रोग्रेस‍िव स्टेट माने जाने वाले पंजाब में पीएम क‍िसान योजना में एक फीसदी भी मह‍िला लाभार्थी नहीं हैं. सरकार उन्हें क्या स‍िर्फ इसल‍िए क‍िसान नहीं मानती क‍ि उनके नाम खेती योग्य जमीन नहीं है? 

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क‍ितनी मह‍िलाओं को म‍िल रही पीएम क‍िसान योजना की रकम. क‍ितनी मह‍िलाओं को म‍िल रही पीएम क‍िसान योजना की रकम.

धान के खेतों से लेकर चाय बागानों तक आपको महिला किसानों का बराबर दखल दिखाई देगा. मसलन, पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर महिला किसान खेती को संवारने में जुटी हैं, लेकिन आम बोलचाल से लेकर सरकारी नीतियों तक, जब भी किसान का जिक्र आता है, तब इसकी परिभाषा में पुरुषों को ही फिट बैठाया जाता है और महिला किसानों का जिक्र किसान परिवार तक सिमट जाता है. सवाल ये है कि क्‍या महिलाएं 'किसान' नहीं हो सकतीं. सवाल ये भी हैं कि सदन में महिलाओं की बराबर भागीदारी की तैयारी कर रहे इस देश में अभी तक खेतों में ही महिला किसानों की भागीदारी क्‍यों सुनिश्‍चित नहीं हो सकी है. आखिरकार क्‍यों महिला किसानों को भेदभाव का शिकार होना पड़ रहा है.

मसलन, किसानों को डायरेक्ट फायदा देने वाली प्रधानमंत्री क‍िसान सम्मान न‍िध‍ि स्कीम में भी मह‍िला क‍िसानों की भागीदारी न के बराबर है. जबक‍ि यह मोदी सरकार की सबसे बड़ी योजना है. इसमें महिला लाभार्थियों की संख्या सिर्फ 22.97 फीसदी है.  सबसे कम महिला लाभार्थी पंजाब में हैं, जहां सिर्फ 0.34 फीसदी को ही इस योजना का लाभ मिल रहा है. हालांक‍ि, आपने देखा ही होगा कि किसान आंदोलन पार्ट-1 में पंजाब की महिलाओं की अच्छी भागीदारी थी. उन्होंने आंदोलन में भी मोर्चा संभाला और खेती का काम भी क‍िया. इसके बावजूद वहां पीएम क‍िसान की मह‍िला लाभार्थी पुरुषों के मुकाबले एक फीसदी भी नहीं हैं. 

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पीएम क‍िसान योजना में महिला लाभार्थी.

पंजाब में सबसे कम मह‍िला लाभार्थी 

सवाल यह है क‍ि क्या महिलाओं के नाम जमीन नहीं है या फिर उन्होंने अप्लाई ही नहीं किया. जानकार बताते हैं क‍ि ज‍िस पंजाब को लोग बहुत प्रोग्रेस‍िव मानते हैं, वहां मह‍िलाओं के नाम जमीन बहुत कम है. ज्यादातर खेती पुरुषों के ही नाम है. असल में इस स्कीम के तहत उन्हीं लोगों को सालाना 6000 रुपये उनके बैंक अकाउंट में डाले जाते हैं ज‍िनके नाम खेती योग्य जमीन है. जमीन न होने की वजह से पंजाब की मह‍िलाओं को इस योजना का फायदा नहीं म‍िल पाता. केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय के अनुसार पंजाब में कुल 6,42,043 लाख क‍िसानों को पीएम क‍िसान योजना का फायदा म‍िल रहा है, ज‍िसमें स‍िर्फ 2189 मह‍िलाएं हैं. इसका मतलब स‍िर्फ 0.34 फीसदी मह‍िला लाभार्थी. 

मह‍िलाओं के नाम खेती 

ग्रामीण महिलाएं खेतों में काम करते हुए वर्षों से कृष‍ि क्षेत्र की तरक्की में अपना योगदान दे रही हैं, लेकिन ज्यादातर मजदूर के रूप में काम करती हैं न क‍ि “किसान” के रूप में. आखिर इसकी वजह क्या है? सरकार क्या स‍िर्फ इसल‍िए उन्हें क‍िसान नहीं मानती क‍ि उनके नाम खेती योग्य जमीन नहीं है? 

न‍िश्च‍ित तौर पर यह कहा जा सकता है क‍ि ऐसा इसल‍िए है क्योंक‍ि मह‍िलाओं के नाम पर खेती योग्य जमीन बहुत कम है. बाकी शहरों में उनके घर हो सकते हैं, उनके नाम प्रॉपर्टी हो सकती है, लेक‍िन खेती की जमीन नहीं के बराबर है. पंजाब में अगर पीएम क‍िसान योजना में एक फीसदी भी मह‍िला लाभार्थी नहीं हैं तो इसकी वजह यही हो सकती है क‍ि वहां मह‍िलाओं के नाम जमीन बहुत कम है. 

पीएम क‍िसान योजना में महिला लाभार्थ‍ियों की संख्या.

जमीन पर स्वाम‍ित्व कैसे बढ़ेगा?   

जानेमाने कृष‍ि अर्थशास्त्री देव‍िंदर शर्मा का कहना है क‍ि “ऐसा नहीं है क‍ि पंजाब में महिलाओं के नाम खेती की जमीन नहीं है, लेक‍िन अन्य राज्यों के मुकाबले बहुत कम है यह सच है. देश विभाजन से पहले भी पैतृक जमीन का हिस्सा पुरुषों को ही मिलता था और बाद भी ऐसी ही परंपरा जारी रही है. अध‍िकांश मह‍िला क‍िसानों के नाम न तो मायके में जमीन होती है और न ससुराल में. इस सेटअप को अब तोड़ने की जरूरत है. इसमें सरकार अहम भूम‍िका न‍िभा सकती है. सरकार खेती से जुड़ी की हर स्कीम में महिलाओं के लिए पुरुषों से अधिक छूट या पैसा दे तो उनके नाम जमीन का ऑनरश‍िप बढ़ सकती है.”  

क्या है पात्रता 

पीएम किसान स्कीम में पात्रता की सबसे बड़ी शर्त खेती योग्य जमीन का होना है. अगर इस योजना के तहत महिला किसानों को बहुत कम लाभ मिला है तो यह अपने आप में साफ संकेत है कि महिलाओं से खेती में काम तो भरपूर ल‍िया जाता है, लेकिन उनके नाम जमीन नहीं की जाती. राज्यसभा में 2 फरवरी 2024 को पेश की गई एक र‍िपोर्ट के अनुसार अब तक, पीएम-किसान योजना में 8,70,12,401 पात्र किसान थे, जिनमें से स‍िर्फ 1,99,87,669 महिला लाभार्थी हैं. 

कृष‍ि क्षेत्र में मह‍िलाओं का योगदान.

जमीन नाम होने का मुद्दा 

भारत के कृषि क्षेत्र में महिलाओं का योगदान लगभग 32 प्रतिशत है. यह बात संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृष‍ि संगठन (FAO) ने कही है. हालांक‍ि, कुछ राज्‍यों, ज‍िनमें पूर्वोत्‍तर और केरल का नाम ल‍िया जा सकता है, में कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था में महिलाओं का योगदान पुरुषों के मुकाबले कहीं अधिक है. करीब 48 फीसदी महिलाएं कृषि संबंधी रोजगार में शामिल हैं.

जबक‍ि 7.5 करोड़ से अध‍िक महिलाएं दूध उत्‍पादन और पशुधन मैनेजमेंट में अपनी अहम भूमिका निभा रही हैं. इतने काम के बावजूद कृष‍ि क्षेत्र में मह‍िलाओं के योगदान को रेखांकित नहीं क‍िया जाता. हालांक‍ि, साल 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में महिला किसानों की संख्या 3,60,45,846 थी. जबकि खेती में महिला मजदूरों की संख्या 6,15,91,353 थी.  

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