केंद्र सरकार ने उन ग्रुपों और ताकतों को जोरदार झटका दिया है जो देश में गेहूं संकट का माहौल पैदा करने की कोशिश में जुटे हुए हैं. उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि सरकार के पास गेहूं का पर्याप्त भंडार है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 80 करोड़ लोगों को फ्री गेहूं बांटने के बावजूद अच्छी मात्रा में गेहूं बचेगा. जो बढ़ते दाम को कंट्रोल करने के काम आ सकता है. इसलिए सरकार गेहूं की इंपोर्ट ड्यूटी में कोई बदलाव नहीं करेगी. दरअसल, निजी क्षेत्र के खिलाड़ी पिछले कुछ दिनों से ऐसा माहौल बना रहे हैं जैसे कि भारत में गेहूं का संकट है. अब मोदी सरकार के इस फैसले से ऐसे लोगों को जोरदार झटका लगा है. अगर गेहूं की इंपोर्ट ड्यूटी कम कर दी जाती तो इससे भारत के किसानों को नुकसान उठाना पड़ता, क्योंकि निजी क्षेत्र दूसरे देशों से आयात करता और उससे यहां दाम कम हो जाता.
दरअसल, गेहूं और आटे का बिजनेस करने वाले कुछ लोग यह चाहते हैं कि सरकार इंपोर्ट ड्यूटी जीरो कर दे और वो दूसरे देशों से सस्ते दर पर गेहूं मंगा सकें. उनकी दरकार सिर्फ सस्ते गेहूं की है न कि सस्ता आटा बेचने की. वो महंगाई कम करने के नाम पर सरकार से ओपन मार्केट सेल स्कीम के तहत सस्ता गेहूं तो ले लेते हैं लेकिन आटा का दाम सस्ता नहीं करते. वो दूसरे देशों से सस्ता गेहूं मंगाना चाहते हैं, लेकिन अपने देश के किसानों को अच्छा दाम देने में उन्हें दिक्कत है. ऐसे लोगों की मंशा पर सरकार ने इंपोर्ट ड्यूटी में कमी न करने का एलान करके पानी फेर दिया है.
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दरअसल, कुछ रोलर फ्लोर मिलर्स ने यह मांग उठाई थी कि सरकार इंपोर्ट ड्यूटी खत्म कर दे. रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रमोद कुमार ने भी कहा था कि "भारत को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए शून्य शुल्क पर गेहूं आयात करने की जरूरत है." इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो दूसरे देशों से भारत में गेहूं मंगाना महंगा पड़ेगा.
शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड (सीबीओटी) पर गेहूं की कीमतें 6.84 डॉलर प्रति बुशल यानी 21,000 रुपये प्रति टन पर चल रही हैं, जबकि रूसी गेहूं, जो संभवतः आयातकों का पसंदीदा होगा वह 235 डॉलर प्रति टन यानी 19,575 रुपये के आसपास चल रहा है. यानी दूसरे देशों में 2000 से 2100 रुपये प्रति क्विंटल का भाव है. इस पर 40 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी और ढुलाई का खर्च लगने के बाद वह भारतीय गेहूं से महंगा हो जाएगा. इसलिए निजी क्षेत्र इंपोर्ट ड्यूटी को शून्य करने की मांग कर रहा था. अब सरकार ने दो टूक कह दिया है कि इंपोर्ट ड्यूटी में कोई बदलाव नहीं होगा.
खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने कहा है कि वो गेहूं के बाजार मूल्य पर सक्रिय रूप से नजर रख रहा है. इसके अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त कार्रवाई की जाएगी कि कोई जमाखोरी न हो सके और कीमत स्थिर रहे. वर्तमान रबी मार्केटिंग सीजन के दौरान सरकार ने 11 जून, 2024 तक लगभग 266 लाख टन गेहूं एमएसपी पर खरीदा है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए 184 लाख टन की ही जरूरत है. ऐसे में इसको पूरा करने के बाद भी अगर जरूरत पड़ी तो बाजार में हस्तक्षेप करने के लिए सरकार के पास पर्याप्त गेहूं का भंडार उपलब्ध होगा.
कुछ लोग यह भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं कि देश में गेहूं का स्टॉक कम है. लेकिन, मंत्रालय ने कहा है कि बफर स्टॉकिंग मानदंड वर्ष की प्रत्येक तिमाही के लिए अलग-अलग होते हैं. 1 जनवरी, 2024 तक गेहूं का भंडार 138 लाख मीट्रिक टन के निर्धारित बफर मानक के मुकाबले 163.53 लाख टन था. गेहूं का स्टॉक किसी भी समय तिमाही बफर स्टॉक मानदंडों से नीचे नहीं रहा है.
केद्रीय कृषि मंत्रालय ने वर्तमान सीजन में रिकॉर्ड 1129.25 लाख टन गेहूं उत्पादन होने का अनुमान लगाया है. जबकि देश में सालाना खपत 1050 लाख टन की बताई गई है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि फिर संकट जैसे हालात क्यों पैदा करने की कोशिश की जा रही है. आखिर ऐसा करने वाले लोग क्या चाहते हैं. बहरहाल, अब विदेशों से सस्ता गेहूं मंगाकर भारत के किसानों का नुकसान करने की मंशा रखने वालों को सरकार के इस फैसले के बाद झटका लगा है.
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