संगरूर जिले के कई गांवों में इन दिनों धान की फसल पर रहस्यमयी चीनी वायरस का हमला देखा जा रहा है. किसानों का कहना है कि इस बीमारी ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया है. खास तौर पर गांव किला भरियां में हालात गंभीर बने हुए हैं. इस गांव के किसानों ने बताया कि लगभग 100 एकड़ धान की फसल इस वायरस से प्रभावित हो चुकी है. खेतों में साफ नज़र आता है कि एक तरफ पौधे सामान्य रूप से पक रहे हैं जबकि दूसरी तरफ जिन पौधों पर वायरस का असर हुआ है, वे धीरे-धीरे मुरझा कर सूख रहे हैं.
किसानों का कहना है कि उन्होंने कृषि विभाग के निर्देशों पर अब तक सात-आठ बार दवाइयों का छिड़काव किया है, लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि वास्तव में यह बीमारी क्या है और इसका स्थायी इलाज क्या हो सकता है. किसान सतनाम सिंह और गुरबख्श सिंह का कहना है कि उन्होंने विभाग पर भरोसा करके समय पर स्प्रे किए, लेकिन कोई असर नहीं हुआ.
ऐसे हालात सिर्फ उनके खेतों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आसपास के इलाकों में भी यही समस्या बड़े पैमाने पर दिखाई दे रही है. किसान अब उलझन में हैं कि आखिर कौन-सी दवा इस बीमारी से बचाव कर सकती है. संगरूर के लड्डी गांव में भी कई किसानों की फसलें इस वायरस की मार झेल रही हैं. किसान नेता जगतार सिंह लड्डी ने बताया कि यह समस्या केवल संगरूर तक सीमित नहीं है, बल्कि पहले पटियाला और फतेहगढ़ साहिब में भी देखने को मिली थी और अब संगरूर में भी तेजी से फैल रही है.
12 एकड़ में धान की खेती करन वाले किसान गुरजंत सिंह ने बताया कि उनकी 5 एकड़ फसल पूरी तरह प्रभावित हो चुकी है. वहीं, किसान राजवीर सिंह, जिसके पास अपनी 5 एकड़ जमीन और 55 एकड़ ठेके पर है, उनकी 20 एकड़ धान की फसल इस वायरस की वजह से बर्बाद हो चुकी है. किसानों ने आरोप लगाया कि उन्होंने पूसा-44 किस्म का धान बोया था, लेकिन जब वे कृषि अधिकारियों के पास मदद लेने गए तो अधिकारियों ने कहा कि पूसा-44 की खेती की मंजूरी नहीं है और खेत देखने तक नहीं आए.
स्थिति और भी गंभीर इसलिए है, क्योंकि धान की फसल पर सिर्फ चीनी वायरस ही नहीं, बल्कि काले तिल्ले (ब्लास्ट रोग) का हमला भी दर्ज किया जा रहा है. इस वजह से जब फसल पक कर तैयार होनी चाहिए, तब उत्पादन लगभग नगण्य रह जाएगा. हालांकि, संगरूर के मुख्य कृषि अधिकारी डॉ. धर्मिंदरजीत सिंह का कहना है कि जिले में यह हमला अभी तक केवल 682 एकड़ तक ही सीमित है.
वहीं, किसानों का दावा है कि असल आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है और अगर समय पर समाधान नहीं निकाला गया तो आने वाले दिनों में फसल पूरी तरह चौपट हो सकती है. किसानों का गुस्सा यह भी है कि कृषि विभाग ने समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाया. उनका कहना है कि वे बार-बार समस्या बताने के बावजूद केवल औपचारिक जवाब देकर टालमटोल कर रहे हैं.
जब धान की फसल पकने के बिल्कुल करीब है, उस समय इस बीमारी का फैलना किसानों के लिए बड़ी चिंता का कारण बन गया है. अगर हालात ऐसे ही बने रहे तो इस सीजन में पैदावार बेहद कम होगी और किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा. किसानों की मांग है कि सरकार और कृषि विभाग तुरंत इस बीमारी का वैज्ञानिक समाधान निकालें और प्रभावित किसानों को मुआवजा देकर राहत पहुंचाई जाए. (कुलवीर सिंह की रिपोर्ट)