मध्‍य प्रदेश में जायद मूंग फसल को लेकर बड़ा अपडेट, कृषि एक्‍सपर्ट ने किसानों से की ये अपील

मध्‍य प्रदेश में जायद मूंग फसल को लेकर बड़ा अपडेट, कृषि एक्‍सपर्ट ने किसानों से की ये अपील

मध्‍य प्रदेश में किसानों को हिदायत दी गई है कि वे मूंग की फसल को जल्दी पकाने के लिए खरपतवार नाशक पैराक्वेट और ग्लाइफोसेट का ज्‍यादा इस्‍तेमाल न करें. इससे फसल जल्दी तो पक जाती है, लेकिन इसका बुरा असर वातावरण पर पड़ता है और उत्पादित मूंग को भी यह खाने लायक नहीं रहने की देती है.

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क‍िसान तक
  • Noida,
  • May 09, 2025,
  • Updated May 09, 2025, 6:33 PM IST

मध्‍य प्रदेश में बड़ी संख्‍या में किसानों ने इन दिनों खेतों में किसानों ने मूंग की फसल बोई हुई है, जिसमें अब खाद-पानी देने का समय चल रहा है. ऐसे में राज्‍य सरकार ने किसानों को हिदायत दी है कि वे मूंग की फसल को जल्दी पकाने के लिए खरपतवार नाशक पैराक्वेट और ग्लाइफोसेट का ज्‍यादा इस्‍तेमाल न करें. इससे फसल जल्दी तो पक जाती है, लेकिन इसका बुरा असर वातावरण पर पड़ता है और उत्पादित मूंग को भी यह खाने लायक नहीं रहने की देती है. इस केमिकल दवा से जल्‍दी पकाई गई मूंग इसे खाने वाले लोगों की सेहत पर भी गंभीर असर डालती है. इससे लोगों को कई प्रकार की बीमारियां होने का खतरा है, जिसमें कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी शामिल है. 

किसानों को दी जा रही समझाइश

जानकारी के अनुसार, पिछले कुछ सालों में यह देखा गया है कि प्रदेश में मूंग को जल्‍दी पकाने के लिए इन खरपतवार नाशकों का इस्‍तेमाल धड़ल्‍ले से किया जा रहा है. ऐसे में इस बार सरकार के मंत्री और कृषि एक्‍सर्ट और विभ‍िन्‍न कृषि कॉलेज के प्रोफेसर्स आदि किसानों को इसका इस्‍तेमाल न करने की समझाइश दे रहे हैं.

इसी क्रम में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वाविद्यालय, जबलपुर और राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के ग्वालियर वाइस चांसलर रहे प्रोफेसर डॉ. विजय सिंह तोमर ने जानकारी दी कि लगातार खरपतवार नाशकों के इस्‍तेमाल से मिट्टी में उपयोगी सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं और मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता घटती है. 

जायद की मूंग से भू-जल स्‍तर हो रहा कम 

उन्‍होंने कहा कि ग्रीष्मकालीन यानी जायद सीजन में मूंग की खेती में कम से कम 3-4 बार सिंचाई करनी पड़ती है. इससे भूमि का जल स्तर भी लगातार नीचे गिर रहा है. उन्‍होंने कहा कि किसानों को खेती के लिए ज्‍यादा टिकाऊ और पर्यावरण अनुकूल पद्धतियों को अपनाने के लिए जागरूक किया जा रहा है. साथ ही उन्‍हें प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे ग्रीष्मकालीन मूंग में कीटनाशक और खरपतवार नाशक का इस्‍तेमाल न के बराबर करें, क्‍योंकि यह प्राकृतिक रूप से पक जाती है. 

10 साल पहले तक खरीफ में उगाई जाती थी मूंग

प्रोफेसर विजय सिंह तोमर ने कहा कि वर्तमान में किसान जायद सीजन में बड़े पैमाने पर मूंग की खेती कर रहे हैं. आज से 10 साल पहले तक किसान खरीफ सीजन में मूंग की खेती किया करते थे, जो पर्यावरण के अनुकूल थी और बारिश से ही इसकी सिंचाई की जरूरत पूरी हो जाती थी. मूंग के पौधों की जड़ों में नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया की मौजूदगी होने से यह फसल मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ाती है.

उन्‍होंने कहा कि आज मूंग की खेती का क्षेत्रफल तीन गुना से भी ज्‍यादा बढ़ गया है, लेकिन यह फसल गर्मियों में उगाई जाने लगी है, जिससे लगातार भू-जल स्तर का जरूरत से ज्‍यादा इस्‍तेमाल हो रहा है. बता दें कि मध्‍य प्रदेश में नर्मदापुरम, हरदा, सीहोर, नरसिंहपुर, बैतूल, जबलपुर, विदिशा, देवास और रायसेन में सहित कई जिलों में किसानों के लिए ग्रीष्मकालीन मूंग तीसरी फसल का अच्छा विकल्प बन चुकी है.

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