कहते हैं ना जीवन में कभी देर नहीं होती, बस आपके अंदर जीत का जज्बा होना चाहिए, उसके बाद आप कभी हार नहीं सकते हैं. ओडिशा के रहने वाले युवा किसान कृष्णचंद्र अटाका ने इस कहावत को अपनी लगन और मेहनत से सच कर दिखाया है. कृष्णचंद्र की कहानी में गरीबी है मजबूरी है मेहनत है संघर्ष है और जीत है. पहले गरीबी के कारण पढ़ाई छूट गई. फिर पेट भरने के लिए मजदूरी करना पडा, मजदूरी करके किसी तरह पढ़ाई ही, फिर से पेट भरने के लिए पलायन करना पड़ा. ईट भट्ठे से लेकर माचिस फैक्ट्री तक में काम किया. इसके बाद फिर वापस लौटे. आगे पढ़ाई करने का मन बनाया और फिर नीट की परीक्षा क्वालिफाई की. मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया और अभी पढ़ाई कर रहे हैं.
ओडिशा के रायगढ़ जिला अंतर्गत बीस्मकटाका प्रखंड के थाउपदी गांव के रहने वाले कृष्णचंद्र अताका राज्य की कोंध जनजाति से ताल्लुक रखते हैं. इसकी गिनती अति पिछड़ी जनजातियों में होती है. इस समुदाय में शिक्षा का स्तर बेहद ही कम है. किसान तक से बात करते हुए कृष्णचंद्र ने बताया कि उनकी जानकारी के मुताबिक उनके प्रखंड क्षेत्र में वो पहले युवक है जिन्होंने नीट क्वालिफाई किया है और भविष्य में डॉक्टर बनेंगे. उन्होंने बताया कि वो अपने समाज के युवकों को जानते हैं जो इंजीनियरिंग कर रहे हैं.
कृष्णचंद्र के लिए नीट क्वालिफाई करना इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि पढ़ाई छूटने के 15 साल बाद उन्होंने यह सफलता हासिल की है. इस बीच 13 साल तक उन्होंने कृषि मजदूर के तौर पर कार्य किया और दो साल तक केरल में कार्य किया. इसके बाद राष्ट्रीय प्रवेश पात्रता परीक्षा पास करने के बाद रेंडो मांझी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पीटल भवानीपटना कालाहांडी में नामांकन कराया. 2006 में 58 फीसदी अंको के साथ दसवीं पास करने के बाद कृष्ण चंद्र का नामाकंन खलीलकोटे जूनियर कॉलेज में नहीं हो पाया क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे और उनकी मदद के लिए कोई भी आगे नहीं आया.
पांच भाईयो वाले परिवार में आर्थिक तंगी होने के कारण कृष्णचंद्र के बड़े भाई ने भी बीच में पढ़ाई छोड़ दी. कृष्णचंद्र भी कृषि मंजदूर के तौर पर कार्य करने लगे. 2012 में काम करने के लिए केरल गए फिर वहां से 2014 में लौटने के बाद फिर से कृषि मजदूरी करने लगे. इस कार्य के लिए उन्हें रोज के 100 रुपये मिलते थे. इस बीच उनकी शादी भी हो गई. जिस लड़की से उनका रिश्ता तय हो रहा था पहले तो लकड़ी के घरवालों से बेरोजगार कहते हुए शादी करने से इनकार कर दिया था. पर कृष्णचंद्र की होनेवाली पत्नी ने उन्हें समझा और शादी के लिए मान गई. आज वो एक बेटी और बेटे के माता-पिता हैं.
इसके बाद साल 2021 में कृष्णचंद्र को उनके स्कूल के शिक्षक एक दिन मिले. उन्होंने कृष्णचंद्र से कहा कि वो डॉक्टर बन सकता है. बस इसके बाद कृष्ण ने मेहनत करना शुरु किया और 2021 में दोबारा पढ़ाई शुरू की. 2022 में उन्होंने परीक्षा पास की लेकिन पैसे की कमी के कारण काउसेंलिंग में नहीं जा पाए. पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और 2023 में नीट क्वालिफाई कर लिया. उनका स्टेट रैंक 3902 रहा. इस तरह से किसान पिता के बेटे ने पढ़ाई छोड़ने के बाद जीत हासिल की. अपनी योजनाओं को लेकर उन्होंने कहा कि वो डॉक्टर बनने के बाद समाज की सेवा करेंगे साथ ही अपने समाज के युवाओं को आगे लाने के लिए प्रयास करेंगे.